हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम:
जब पति ने अपनी पत्नी को एक तलाक़ दे दिया तो जब तक वह इद्दत में है उसके लिए उसे वापस लौटाना जाइज़ है, और वापस लौटाना कथन के द्वारा (अर्थात मुँह से कहकर), तथा वापस लौटाने की इच्छा से संभोग के द्वारा संपन्न होता है, यदि इद्दत समाप्त हो गई तो वह (पत्नी) उसके पास एक नये विवाह के द्वारा ही वापस लौट सकती है।
तथा पति के लिए, पहली पत्नी को तलाक़ देने से पहले और उसके बाद तथा इद्दत के अंतराल में, दूसरी बीवी से विवाह करना जाइज़ है ; क्योंकि दोनों मामलों में कोई संबंध नहीं है, तथा उसके लिए पहली पत्नी को सूचित करना या उसकी सहमति प्राप्त करना ज़रूरी नहीं है ; क्योंकि अल्लाह तआला ने आदमी के लिए न्याय की शर्त के साथ एक ही समय में चार औरतों से शादी करना वैध ठहराया है, अल्लाह तआला ने फरमाया :
“औरतों में से जो भी तुम्हें अच्छी लगें तुम उनसे निकाह कर लो, दो-दो, तीन-तीन, चार-चार से, लेकिन यदि तुम्हें न्याय न कर सकने का भय हो तो एक ही काफी है।” (सूरतुन्निसा : 4)
दूसरा:
मिस्यार नामक विवाह यदि उसके अंदर निकाह की शर्तें पूरी हैं जैसे कि महिला की सहमति, अभिभावक (वली, सरपरस्त), दो गवाह और महर की उपस्थिति, तो वह सही (शुद्ध) शादी है, और औरत के लिए अपने कुछ हुक़ूक़ (अधिकारो) जैसे कि निवास, या रात ग़ुजारना, या र्ख्च को त्याग कर देने में कोई आपत्ति की बात नहीं है। बिना वली (अभिभावक) की उपस्थिति के निकाह शुद्ध नहीं है, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है: ‘‘वली के बिना निकाह नहीं है।’’ इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या: 2085), तिर्मिज़ी (हदीस संख्या: 1101) और इब्ने माजा (हदीस संख्या: 1881) ने अबू मूसा अल अश्अरी की हदीसे से रिवायत किया है, और अल्बानी ने सहीह तिर्मिज़ी में इसे सहीह कहा है।
तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है: ‘‘वली और दो न्यायपूर्ण गवाहों के बिना निकाह नहीं है।’’ इसे बैहक़ी ने इम्रान और आइशा रज़ियल्लाहु अन्हुमा की हदीस से रिवायत किया है, और अल्बानी ने सहीहुल जामे में हदीस संख्या (7557) के अंतर्गत सहीह है कहा है।
तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है: ‘‘जिस औरत ने भी अपने वली (सरपरस्त) की अनुमति के बिना निकाह किया तो उसका निकाह बातिल (अमान्य और व्यर्थ) है, तो उसकानिकाह बातिल (अमान्य और व्यर्थ) है, तो उसका निकाह बातिल (अमान्य और व्यर्थ) है।’’ इसे अहमद (हदीस संख्या: 24417), अबू दाऊद (हदीस संख्या: 2083) और तिर्मिज़ी (हदीस संख्या: 1102) ने रिवायत किया है और अल्बानी ने सहीहुल जामे (हदीस संख्या: 2709) के तहत इसे सहीह कहा है।
अतः इस मामले को अभिभावक (वली) से छुपाना जाइज़ नहीं है, और निकाह शुद्ध नहीं हो सकता सिवाय इसके कि अभिभावक स्वयं उसे आयोजित करे या अभिभावक किसी को प्रतिनिध बना दे जो उसकी ओर से निकाह का आयोजन करे।
तथा इमाम के लिए जाइज़ नहीं है कि वह वली (अभिभावक) का स्थान ग्रहण करे सिवाय इसके कि वली उसे निकाह आयोजित करने के लिए प्रतिनिधि बना दे।
मिसयार नामक शादी में वली (अभिभावक) के उपस्थित होने की बहुत कड़ी शर्त है, ताकि उसके और व्यभिचार (अवैध संबंध) के बीच अंतर किया जा सके।