गुरुवार 20 जुमादा-1 1446 - 21 नवंबर 2024
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क्या क़ियामत के दिन मीज़ान (तराज़ू) के ज़ुबान होगी

प्रश्न

क्या इस बात की कोई दलील है कि पुनः जी उठने के दिन तराज़ू के ज़ुबान होगी ?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

वह मीज़ान – तराज़ू - जिस से क़ियामत के दिन आमाल – कार्यों - को तौला जायेगा,क़ुर्आन और मुतवातिर सुन्नत से प्रमाणित है, तथा उसके विवरण के बारे में साबित है कि उसके दो पल्ले या पलड़े होंगे जिनमें नेकियों और बुराईयों को रखा जायेगा जैसा कि कार्ड वाले की सुप्रसिद्ध हदीस में है, तथा कुछ विद्वानों का कहना है कि : मीज़ान के ज़ुबान होगी, और इसके बारे में इब्ने अब्बास और हसन अल-बसरी से असर वर्णित है, लेकिन इस बारे में कोई मरफूअ हदीस सही नहीं है। (जिस हदीस की सनद नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तक पहुँचती है उसे मरफूअ हदीस, तथा सहाबी या ताबई की बात को असर कहा जाता है ).

शैख सालेह बिन अब्दुल अज़ीज़ आलुश्शैख हफिज़हुल्लाह ने फरमाया: ‘‘हदीस में आया है कि मीज़ान के दो पलड़े होंगे : एक पलड़े में बुराईयों को रखा जायेगा, और दूसरे पलड़े में नेकियों को रखा जायेगा। अतः जिसकी नेकियों का पलड़ा भारी हो गया तो वह सफल और कामयाब रहा और वह जन्नत में दाखिल होगा, और जिसकी बुराईयों का पलड़ा भारी हो गया तो वह अल्लाह सर्वशक्तिमान के अज़ाब से दोचार होगा ।

सुन्नत के कुछ विद्वानों ने अपने अक़ाइद में कहा है : मीज़ान के दो पलड़े और ज़ुबान हैं।

और मीज़ान के ज़ुबान होने के बारे में जैसा कि इब्ने क़ुदामा ने ‘‘लुमअतुल एतिक़ाद” में और उनके अलावा अन्य ने उल्लेख किया है, मुझे इसके बारे में कोई स्पष्ट प्रमाण याद नहीं है, या मैं उसके बारे में किसी स्पष्ट प्रमाण से अवगत नहीं हुआ हूँ, किंतु लोगों ने उसे इस बात से निकाला है कि झुकाव में प्रत्यक्ष वज़न ज़ुबान के द्वारा स्पष्ट होता है, अतः उन्हों ने प्रत्यक्ष शब्द को अमल में लाते हुए उसे ज़ुबान के मौजूद होने का सबूत बना दिया, इसलिए उचित होगा कि उसे अनुसंधान और अन्वेषण का विषय बनाया जाए।”‘‘शर्हुल अक़ीदा अत्तहाविया”से समाप्त हुआ।

इब्ने क़ुदामा रहिमहुल्लाह की इबारत जिसकी ओर ‘‘लुमअतुल एतिक़ाद” में संकेत किया गया है, यह है: ‘‘मीज़ान के दो पलड़े होंगे और ज़ुबान होगी, जिसके द्वारा आमाल को तौला जायेगा:

فَمَنْ ثَقُلَتْ مَوَازِينُهُ فَأُوْلَئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ وَمَنْ خَفَّتْ مَوَازِينُهُ فَأُوْلَئِكَ الَّذِينَ خَسِرُوا أَنفُسَهُمْ فِي جَهَنَّمَ خَالِدُونَ

المؤمنون : 101 -102 

“अतः जिन लोगों के मीज़ान भारी होंगे तो वही लोग सफलता प्राप्त करने वाले हैं और जिन लोगों के मीज़ान हल्के होंगे तो वही लोग हैं जिन्हों ने अपना घाटा किया नरक में हमेशा रहेंगे।”(सूरतुल मोमिनून : 102, 103)” अंत.

तथा शैख अब्दुर्रज़्ज़ाक़ बिन अब्दुल मोहसिन अल-अब्बाद हफिज़हुल्लाह ने फरमाया : ‘‘(अल-मीज़ान) आखिरत के दिन पर ईमान रखने में मीज़ान पर ईमान रखना भी है जो क़ियामत के दिन क़ायम किया जायेगा :

وَنَضَعُ الْمَوَازِينَ الْقِسْطَ لِيَوْمِ الْقِيَامَةِ فَلا تُظْلَمُ نَفْسٌ شَيْئًا وَإِنْ كَانَ مِثْقَالَ حَبَّةٍ مِنْ خَرْدَلٍ أَتَيْنَا بِهَا وَكَفَى بِنَا حَاسِبِينَ

الأنبياء : 47

“और हम क़ियामत के दिन बीच में ला रखें गे ठीक ठीक तौलने वाली तराज़ू को। फिर किसी पर कुछ भी अत्याचार न किया जायेगा, और यदि एक राई के दाने के बराबर कोई अमल होगा तो हम उसे ला हाज़िर करें गे और हम काफी हैं हिसाब करने वाले।” (सूरतुल अंबिया : 47)

चुनांचे आमाल, सहीफों और लोगों को तौला जाम येगा। और वह एक वास्तविक मीज़ान है, उसके दो पलड़े होंगे, एक पलड़े में नेकियाँ रखी जायेंगी और एक पलड़े में बुराईयाँ रखी जायेंगी। और इसी में से कार्ड वाली हदीस भी है। और उस हदीस में तर्क का स्थान पलड़ों का वर्णन है और वह यह शब्द है: ‘‘कार्ड को एक पलड़े में रखा जायेगा और सहीफों (कर्म-पत्रों) को एक दूसरे पलड़े में रखा जायेगा।” तथा कुछ आसार में आया है कि (उसके ज़ुबान और दो पलड़े हैं) और वह असर इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है, जिसे अबुश्शैख ने कल्बी के तरीक़ से उल्लेख किया है, तथा वह हसन से भी वर्णित है, जबकि ज़ुबान का वर्णन किसी मरफूअ़ हदीस में नहीं आया है। मीज़ान की हदीसें मुतवातिर हैं, और क़ुरआन मीज़ान से संबंधित आयतों से भरा हुआ है, और ये ऐसे तराज़ू हैं जों कण के बराबर चीज़ों को भी तौल डालेंगे :

فَمَنْ يَعْمَلْ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ خَيْرًا يَرَهُوَمَنْ يَعْمَلْ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ شَرًّا يَرَهُ

الزلزلة : 7-8

“जिसने एक कण के बराबर नेकी की है वह उसे देख लेगा और जिसने एक कण के बराबर भी बुराई की है वह उसे देखे लेगा।” (सूरतुज़ ज़लज़ला : 7 - 8).

“अत्तोहफतुस्सनीयह शर्ह क़सीदतुब्ने अबी दाऊद अल-हाई” से अंत हुआ।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर