हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
ज़कातुल-फ़ित्र का निकालना ईद की नमाज़ से पहले अनिवार्य है, क्योंकि इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : “अल्लाह के पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ज़कातुल फित्र को रोज़ेदार की बेकार और अश्लील बातों से पवित्रता (शुद्धि) के रूप में, और मिसकीनों (गरीबों) को खिलाने के लिए अनिवार्य किया है, जिस व्यक्ति ने इसे ईद की नमाज़ से पूर्व अदा कर दिया तो यह स्वीकृत ज़कात है, और जिसने इसे नमाज़ के पश्चात अदा किया तो यह साधारण दान है।" इसे अबू दाऊद (हदीस संख्याः 1609) ने रिवायत किया है और अल्बानी ने सहीह अबू दाऊद वग़ैरह में इसे हसन कहा है।
हदीस का स्पष्ट अर्थ यह है कि ज़कातुल-फ़ित्र के समय को ईद की नमाज़ से संबंधित किया गया है। अतः जब नियमित इमाम अपनी नमाज़ से फारिग़ हो जाए तो उसका समय निकल गया। और अकेले व्यक्ति की नमाज़ का कोई एतिबार नहीं है, क्योंकि अगर हम यह कहें तो इसके लिए कोई ऐसा समय नहीं होगा जिससे उसे अनुशासित किया जा सके। इसलिए इमाम की नमाज़ का एतिबार किया गया है।
लेकिन यदि वह ऐसी जगह पर है जहाँ ईद की नमाज़ आयोजित नहीं की जाती है, जैसे उदाहरण के तौर पर रेगिस्तान, तो ऐसी स्थिति में उसे उस समय निकाला जाएगा जिस समय उसके निकटतम शहर में निकाला जाता है।
अल्लामा बहूती रहिमहुल्लाह कहते हैं : “सबसे अच्छा यह है कि ज़कातुल फ़ित्र को ईद के दिन नमाज़ से पहले या जिस जगह पर ईद की नमाज़ अदा नहीं की जाती है वहाँ उस समय के आसपास निकाला जाए। क्योंकि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा की हदीस के मुताबिक़ यह आदेश दिया है कि उसे लोगों के नमाज़ के लिए निकलने से पहले अदा कर दिया जाए। जबकि एक समूह का कहना है किः सबसे अच्छा यह है कि उसे ईदगाह के लिए निकलते समय निकाला जाए।”
“कश्शाफुल-क़िनाअ” (2/252) से उद्धरण समाप्त हुआ।
और अल्लाह तआला ही सबसे अच्छा जानता है।