शुक्रवार 10 शव्वाल 1445 - 19 अप्रैल 2024
हिन्दी

मज़ी और मनी (वीर्य) के बीच अंतर

प्रश्न

कभी-कभार जब मैं प्रात: काल सोकर उठता हूँ तो अपने अन्डरवियर में कुछ गीलापन अनुभव करता हूँ। आप से अनुरोध है कि इस मामले को नींद के दौरान वीर्यपात या गैर इरादी (अनेच्छिक) तौर पर पेशाब करना न समझें, क्योंकि मज़ी या चिपकने वाला पदार्थ आम तौर से अगले दिन सुबह बेदार होने के बाद निकलता है, और अधिकतर मैं इस के कारण अपने अन्डरवियर और पाजामे को धुलता हूँ। मैं एक किताब में पढ़ चुका हूँ कि अगर वह पदार्थ वीर्य के जीवाणुओं पर आधारित न हो और वह मात्र मज़ी हो तो ऐसी हालत में स्नान अनिवार्य नहीं है और केवल नमाज़ के लिए वुज़ू कर लेना काफी है। अगर स्थिति ऐसी ही है तो हमें कपड़ों के साथ क्या करना चाहिए? तथा मैं ने यह नोट किया है कि यह मज़ी कुछ कठिन स्थितियों में भी निकलती है जबकि मैं अपने आप को उन सभी स्थितियों से दूर रखता हूँ जो मज़ी के पतन का कारण बनती हैं।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

पहला अंतर : गुणों में

पुरूष की मनी (वीर्य) : गाढ़ी और सफेद होती है, और स्त्री की मनी (वीर्य) : पीली और पतली होती है।

और इन गुणों के विषय में असल (आधार) वह हदीस है जो उम्मे सुलैम रज़ियल्लाहु अन्हा से वर्णित है कि उन्हों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से ऐसी औरत के बारे में प्रश्न किया जो अपने सपने में वही चीज़ देखती है जो मर्द देखता है। तो अल्लाह के पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "यदि औरत यह चीज़ देखे तो उसे स्नान करना चाहिए।" तो उम्मे सुलैम ने कहा कि : - और मैं इस से झेंप गई- : कहा : क्या ऐसा होता है? तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "तो फिर समानता (अर्थात् माता पिता और बच्चों के बीच मुशाबहत) कहाँ से होती है ? आदमी का पानी गाढ़ा और सफेद होता है और औरत का पानी पतला और पीला होता है, तो उन दोनों में से जो गालिब हो जाता या पहल कर जाता है (बच्चा) उसी से समानता (मुशाबहत) रखता है।" (सहीह बुखारी, सहीह मुस्लिम हदीस संख्या : 369)

इमाम नववी सहीह मुस्लिम की शरह (3/222) में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के फरमान : "आदमी का पानी गाढ़ा और सफेद होता है तथा औरत का पानी पतला और पीला होता है।" पर टिप्पणी करते हुये फरमाते हैं : मनी के गुण के उल्लेख में यह हदीस एक महान आधार है, और स्वास्थ्य की हालत में और आम तौर पर उसका यही गुण होता है, विद्वानों का कहना है कि : आदमी की मनी (वीर्य) स्वास्थ्य की हालत में गाढ़ी और सफेद होती है जो उछल-उछल कर निकलती है, तथा शह्वत के साथ निकलती है और उसके निकलने से लज़्ज़त का अनुभव होता है और उसके निकलने के बाद ढीलेपन और कमज़ोरी और खजूर के गाभे के समान एक महक का एहसास होता है, और खजूर के गाभे की महक आटे की महक से मिलती जुलती होती है, . . (और कुछ कारणों से वीर्य का रंग बदल भी जाता है, जैसे कि:) . . आदमी बीमार पड़ जाये तो उस की मनी पतली और पीली हो जाये, या मनी की थैली ढीली और शिथितल हो जाये तो मनी बिना शहवत और लज़्ज़त के बह जाये, या अधिक संभोग करने से लाल हो जाये और गोश्त के पानी के समान हो जाये, और कभी कभार ताज़ा खून की तरह निकलती है, . . फिर ज्ञात होना चाहिये कि मनी की ये विशेषताये और खास्सियतें जिन पर उसके मनी होने पर भरोसा किया जाता है तीन हैं : प्रथम : शहवत के साथ निकलना और उसके बाद शिथिलता और ढीलेपन का एहसास होना। दूसरा : महक (बू) का पाया जाना जो खजूर के गाभे की बू के समान होती है, जैसा कि पीछे गुज़र चुका। तीसरा : उछल-उछल कर और कई बार में निकलना। और इन तीनों गुणों में से हर एक उसके मनी होने को प्रमाणित करने के लिये काफी है, उन सब का एक साथ पाया जाना शर्त नहीं है, और जब इन में से कोई भी चीज़ न पायी जाये और अधिक गुमान उसके मनी न होने का हो तो उसके मनी होने का हुक्म नहीं लगाया जायेगा, ये सारी बातें आदमी की मनी के बारे में हैं।

जहाँ तक औरत की मनी का संबंध है तो वह पतली और पीले रंग की होती है, और कभी कभी उसकी अधिक शक्ति के कारण सफेद हो जाती है, और उसकी दो विशेषतायें (खास्सियतें) हैं जिन में से किसी एक के द्वारा उसकी पहचान होती है, उन में से एक यह है कि उसकी महक (बू) आदमी की मनी के बू के समान होती है, और दूसरी यह की उसके निकलते समय लज़्ज़त और मज़ा का अनुभव होता है और उसके निकलने के बाद उसकी शक्ति कमज़ोर होजाती और ढीली पड़ जाती है।" इमाम नववी की बात समाप्त हुई।

मज़ी : जहाँ तक मज़ी का संबंध है तो वह सफेद और लेसदार (चिपकने वाली) होती है जो संभोग के बारे में सोचने या उस की इच्छा करने के समय निकलती है, उसके निकलने से आदमी को शहवत और प्रवाह का अनुभव नहीं होता है और न ही उस के पश्चात कमज़ोरी और ढीलेपन का एहसास होता है, मज़ी पुरूष और स्त्री दोनों से निकलती है और औरतों में मर्दों से अधिक होती है। यह बात इमाम नववी ने सहीह मुस्लिम की शरह में कही है। (3/213)

दूसरा अंतर : उसके इंसान से निकलने पर निष्कर्षित होने वाले हुक्म में :

मनी के निकलने से जनाबत का गुस्ल (स्नान) करना अनिवार्य हो जाता है, चाहे वह बेदारी में संभोग या किसी अन्य कारण से निकली हो, या नींद में स्वपनदोष के कारण निकली हो।

किन्तु मज़ी निकलने से केवल वुज़ू करना अनिवार्य होता है। इस का प्रमाण अली रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस है वह कहते हैं : मैं एक बहुत अधिक मज़ी निकलने वाला आदमी था, तो मैं ने मिक़दाद को हुक्म दिया कि वह अल्लाह के पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से इसके बारे में पूछें, चुनाँचि उन्हों ने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से पूछा तो आप ने उत्तर दिया कि : "उस में वुज़ू करना है।" (सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम, और उक्त हदीस के शब्द सहीह बुखारी के हैं।)

इब्ने क़ुदामा मुग़नी (1/168) में कहते हैं : इब्ने मुंज़िर फरमाते हैं : इस बात पर विद्वानों की सर्वसहमति है कि पिछले हिस्से (गुदा) से मल का निकलना, पुरूष के लिंग और महिला की यौनि से मूत्र का निकलना, मज़ी का निकलना तथा पिछले हिस्से (गुदा) से हवा का निकलना ऐसी नापाकियाँ हैं जिन में से हर एक से पवित्रता समाप्त हो जाती है।

तीसरा अंतर : उनकी पवित्रता और अपवित्रता के ऐतिबार से हुक्म में :

विद्वानों के कथनों में से उच्च (राजेह़) कथन के अनुसार मनी पवित्र है, इसका प्रमाण वह हदीस है जिसे आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने रिवायत किया है, वह कहती हैं कि : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मनी को धुलते थे फिर नमाज़ के लिए निकलते थे और मैं उस में धुलने के निशान को देखती थी। (सहीह बुखारी एंव सहीह मुस्लिम)

तथा मुस्लिम की एक रिवायत में है : "मैं उसे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कपड़े से खुरचती थी फिर आप उस में नमाज़ पढ़ते थे।"

तथा एक दूसरी हदीस के शब्द यह हैं कि : "मैं उसे सूखी होने की हालत में अपने नाखून से रगड़ कर साफ करती थी।"

बल्कि यह भी साबित (प्रमाणित) है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उसे गीली होने की हालत में भी नहीं धुलते थे, बल्कि लकड़ी वगैरा से उसे पोंछ देने पर ही बस करते थे, जैसाकि इमाम अहमद ने अपनी मुस्नद (6/243) में आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है कि उन्हों ने फरमाया : अल्लाह के पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इज़खिर (नामी घास) की जड़ से मनी को अपने कपड़े से छुड़ा देते थे फिर उस में नमाज़ पढ़ते थे, तथा आप उसे सूखी होने की अवस्था में अपने कपड़े से रगड़ कर साफ कर देते थे फिर उस में नमाज़ पढ़ते थे।" तथा इब्ने खुज़ैमा ने भी इसे अपनी सहीह में रिवायत किया है और शैख अल्बानी ने इर्रवाउल ग़लील (1/197) में हसन कहा है।

जहाँ तक मज़ी का संबंध है तो वह अपवित्र है, इस का प्रमाण पीछे उल्लिखित अली रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस है जिसके कु़छ तरीक़ों में आया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने लिंग और दोनों अंडकोषों (फोते) को धुलने और वुज़ू करने का आदेश दिया, जैसाकि अबू ओवाना ने अपने मुस्तखरज में उल्लेख किया है, तथा इब्ने हजर ने अत्तल्खीस में फरमाया है कि : इसकी इसनाद में कोई आपत्तिजनक बात नहीं है। इस से ज्ञात हुआ कि मज़ी नापाक है, उसके निकलने से लिंग और दोनों फोतों को धुलना अनिवार्य है, और उस से पवित्रता भंग हो जाती है।

जब कपड़े में मनी और मज़ी लग जाये तो उसका क्या हुक्म है ?

इस कथन के आधार पर कि मनी पवित्र है, अगर वह कपड़े में लग जाये तो उसे नापाक नहीं करेगी, और अगर इंसान उसी कपड़े में नमाज़ पढ़े तो इस में कोई हरज की बात नहीं है। इब्ने क़ुदामा अल-मुग़नी (1/763) में कहते हैं : "अगर हम उस की पवित्रता की बात को मान लें तो उस को खुरचना मुस्तहब (ऐच्छिक) है, और अगर उस को खुरचे बिना नमाज़ पढ़ ले तो यह उसके लिए काफी है।"

जहाँ तक मज़ी का संबंध है तो कष्ट के कारण केवल कपड़े पर पानी छिड़क लेने पर बस किया जायेगा, इसका प्रमाण वह हदीस है जिसे अबू दाऊद ने अपनी सुनन में सहल बिन हुनैफ रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : मैं मज़ी के कारण बहुत कष्ट उठाता था और मैं बहुत स्नान किया करता था, तो मैं ने अल्लाह के पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से इसके बारे में प्रश्न किया तो आप ने फरमाया : "इस से तो तुम्हारे लिए वुज़ू कर लेना ही काफी है।" मैं ने कहा : ऐ अल्लाह के पैग़ंबर! उस का जो हिस्सा मेरे कपड़े में लग जाता है उसका क्या होगा ? आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "तुम्हारे लिए काफी है कि एक हथेली भर पानी लेकर अपने कपड़े पर उस जगह छिड़क दो जहाँ तुम समझते हो कि वह लगी हुई है।" इसे तिर्मिज़ी ने भी रिवायत किया है, और उन्हों ने कहा है कि यह हदीस हसन सहीह है और हम मज़ी के बारे में इस तरह की रिवायत केवल मुहम्मद बिन इसहाक़ की हदीस से ही जानते हैं। (इमाम तिर्मिज़ी की बात समाप्त हुई )

तथा तोहफतुल अहवज़ी (1/373) के लेखक फरमाते हैं : इस हदीस से यह दलील पकड़ी गई है कि जब मज़ी कपड़े में लग जाये तो उस पर पानी छिड़क लेना ही काफी है, उसे धुलना वाजिब नहीं है। और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।

स्रोत: शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद