रविवार 21 जुमादा-2 1446 - 22 दिसंबर 2024
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एक पेशेवर खिलाड़ी को "भगवान" या "ईश्वर जैसा" के रूप में वर्णित करने का हुक्म

प्रश्न

आजकल पश्चिमी इलेक्ट्रॉनिक गेम्स (खेल) व्यापक रूप से फैल गए हैं जो दो खिलाड़ियों के बीच प्रतियोगिता पर आधारित होते हैं। जब एक खिलाड़ी दूसरे को पराजित कर देता है, तो स्क्रीन के ऊपर एक वाक्यांश प्रकट होता है कि अमुक ने अमुक को हरा दिया। लेकिन यहाँ समस्या यह है कि जब वह कई सारे खिलाड़ियों को पराजित कर देता है, तो एक अजीब शब्द प्रकट होता है, जो यह कहता है किः "अमुक ईश्वर जैसा" है। अतः मैं इस शब्द के अर्थ की व्याख्या जानना चाहता हूँ। क्या इस शब्द को कहने, या खिलाड़ियों के बीच इसका इस्तेमाल करने की अनुमति हैॽ क्योंकि मैं कुछ खिलाड़ियों को देखता हूँ की वे पेशेवर खिलाड़ियों को "भगवान" या "ईश्वर जैसा" शब्द के साथ वर्णित करते हैं।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

किसी पेशेवर खिलाड़ी या किसी और को (God) "भगवान" के शब्द से वर्णित करना जायज़ नहीं है, क्योंकि उसका अर्थ ईश्वर या अल्लाह है, तथा न तो उसे (Godlike) “ईश्वर जैसा” के शब्द से वर्णित करना जायज़ है, क्योंकि इसका अर्थ दैवीय, या ईश्वरीय (रब्बानी) होता है।

इन खेलों में जो कुछ प्रकट होता है - जैसा कि आपने बताया - वह पुष्टि करता है कि उनका उद्देश्य यही अर्थ है और वह यह कि वह खिलाड़ी भगवान की तरह शक्तिशाली और प्रभुत्वशाली है।

जबकि यह बात अच्छी तरह से ज्ञात है कि अल्लाह के अलावा कोई इलाह (पूज्य) नहीं, वह अकेला है, उसका कोई साझी नहीं, तथा उसका कोई समवर्ती, सादृश्य और समकक्ष नहीं है। उसके अलावा जो कुछ भी है वह दास, पोषित और रचित है उसके अंदर ईश्वरत्व का कोई तत्व नहीं है, और वह किसी भी तरह से ईश्वर जैसा नहीं है।

यह रवैयाः प्राचीन काल से अनेकेश्वरवादियों (मुश्रिकों) का रवैया है, जो जिस चीज़ को भी पसंद करते और उसका सम्मान करते हैं उसे ईश्वरत्व का श्रेय दे देते हैं।

अर-राग़िब अल-असफ़हानी रहिमहुल्लाह कहते हैं : वे अपने हर एक माबूद (पूज्य) को संदर्भित करने के लिए “इलाह” (भगवान) शब्द का प्रयोग करते हैं। यही मामला ''अल्लात'' का भी है, और उन्होंने सूर्य को देवता का नाम दिया है, क्योंकि उन्होंने उसे पूज्य बना लिया है।

अरबी भाषा में “अलहा फ़ुलानुन यालहो” का अर्थ पूजा करना होता है। इस आधार पर इलाह का अर्थ माबूद (पूज्य) है।”  

“अल-मुफरदात” पृष्ठ 83 से समाप्त हुआ।

अतः ऐसे शब्दों का प्रयोग करने से बहुत सावधान रहें; क्योंकि एक शब्द के कारण आदमी पूर्व और पश्चिम के बीच की दूरी से भी अधिक दूर तक नरक में गिर सकता है।

बुखारी (हदीस संख्याः 6478) और मुस्लिम (हदीस संख्याः 2988) ने अबू हुरैरा से रिवायत किया है कि उन्होंने अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सुना कि आप फरमा रहे थे : "मनुष्य अल्लाह की प्रसन्नता की एक बात कहता है, जिसे वह कोई महत्व नहीं देता, परंतु उसके कारण अल्लाह उसके पद को कई गुना बढ़ा देता है, तथा आदमी अल्लाह के क्रोध का कोई शब्द बोलता है जिसे वह कोई महत्व नहीं देता, पर उसके कारण वह नरक में जा गिरता है।"

तथा बुखारी (हदीस संख्याः 6477) और मुस्लिम (हदीस संख्याः 2988) ने अबू हुरैरा से रिवायत किया है कि उन्होंने अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फरमाते हुए सुना : "एक व्यक्ति कोई शब्द बोलता है, जिसके बारे में वह पड़ताल नहीं करता, उसके कारण वह नरक में पूर्व और पश्चिम के बीच की दूरी से भी अधिक दूर जा गिरता है।"

तथा तिर्मिज़ी (हदीस संख्याः 2319) और इब्ने माजा (हदीस संख्याः 3969) में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथी (सहाबी) बिलाल इब्न अल-हारिस अल-मुज़नी से वर्णित है कि उन्होंने कहा : मैंने अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को कहते हुए सुना :

"तुम में से एक व्यक्ति अल्लाह को प्रसन्न करने वाला कोई ऐसा शब्द बोलता है, जिसके बारे में वह नहीं सोचता कि वह इतने दूर तक पहुँच जाएगा जितने दूर तक वह पहुँच चुका होता है, लेकिन अल्लाह उसके लिए उसके मुलाक़ात करने के दिन तक अपनी प्रसन्नता लिख देता है। तथा तुम में से कोई व्यक्ति अल्लाह के क्रोध का एक ऐसा शब्द बोल देता है, जिसके बारे में वह नहीं सोचता कि वह इतने दूर तक पहुंच जाएगा जितना वह पहुँच गया होता है, तो उसके कारण अल्लाह उसके ऊपर उससे मिलने के दिन तक अपनी नाराज़ी लिख देता है।"

अल्बानी ने ''सहीह अत-तिर्मिज़ी'' में इसे सही कहा है।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर