हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
अफज़ल (सर्वश्रेष्ठ) यह है कि इमाम के साथ नमाज़ को मुकम्मल किया जाए यहाँ तक कि वह फारिग हो जाए, भले ही वह ग्यारह रकअत से अधिक हो जाए।क्योंकि अधिक पढ़ना जायज़ है, इसलिए कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह कथन सर्वसामान्य है कि : ''जो व्यक्ति इमाम के साथ क़ियाम करे यहाँ तक कि वह फारिग हो जाए तो उसके लिए रात भर कियाम लिखा जायेगा।'' इसे नसाई वगैरह ने रिवायत किया है : सुनन नसाई : बाब कियाम शह्र रमज़ान।
तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का कथन है : ‘‘ रात की नमाज़ दो दो रकअत है, सो जब तुम्हें सुबह (भोर) हो जाने का भय होने लग तो एक रकअत वित्र पढ़ लो।’’ इसे सात मुहद्देसीन ने रिवायत किया है और हदीस के ये शब्द नसाई के हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत का पालन करना ही सबसे अच्छा और सबसे बेहतर और सबसे अधिक अज्र व सवाब वाला है जबकि उसे लंबी और संवार कर पढ़ी जाए। लेकिन जब मामला संख्या की वजह से इमाम से अलग होने के बीच और वृद्धि करने की अवस्था में उसके साथ सहमति जताने के बीच घूमता है तो बेहतर यही है कि पिछली हदीसों के आधार पर वह नमाज़ी उसके साथ सहमति बनाए। इसके साथ ही इमाम को सुन्नत का लालायित होने की नसीहत करनी चाहिए।