मंगलवार 9 रमज़ान 1445 - 19 मार्च 2024
हिन्दी

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के फरमान "कोई संक्रमण नहीं है" का अर्थ

45694

प्रकाशन की तिथि : 08-12-2021

दृश्य : 15828

प्रश्न

हदीस "धर्म में कोई संक्रण नहीं है" का मूल शब्द क्या है ? और उसका क्या मतलब है ?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

उक्त हदीस कई शब्दों के साथ वर्णित हुई है, उन्ही में से वह हदीस है जिसे बुखारी (हदीस संख्या : 5776) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 2224) ने अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत करते हैं कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "प्राकृतिक रूप से कोई संक्रमण प्रभावी नहीं है, न कोई बुरा शकुन है, और मुझे फाल लेना पसंद है।" लोगों ने कहा : फाल क्या है ? आप ने फरमाया : "अच्छी बात।"

तथा बुखारी (हदीस संख्या :5316)ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "प्राकृतिक रूप से कोई संक्रमण प्रभावी नहीं है, न कोई बुरा शकुन है, न उल्लू के बोलने का कोई प्रभाव है, और न ही सफर का महीना ही (मनहूस या दुर्भाग्य) है।"

शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह फरमाते हैं कि : आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान "ला अदवा" (कोई संक्रमण या छूत नहीं है) जाति के निषेद्ध के लिए है, और पूरी जाति का निषेद्ध करना, एक-दो और तीन का निषेद्ध करने से अधिक सामान्य है ; क्योंकि वह पूरी जाति का निषेद्ध है, चुनाँचि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हर प्रकार के छूत और संक्रमण का निषेद्ध किया है।

"अदवा" (छूत-छात) का अर्थ है : रोग का रोगी आदमी से स्वस्थ आदमी को लगना, और यह संक्रमण जिस प्रकार शारीरिक बीमारियों में होता है उसी प्रकार नैतिक बीमारियों में भी होता है, इसी लिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सूचना दी है कि बुरे आदमी की संगत में रहने वाला आदमी धौंकनी चलाने वाले के समान है ; या तो वह आप के कपड़े जला देगा, या आप उस से दुर्गन्ध पायेंगे।

आप का फरमान : "कोई छूत-छात या संक्रमण नहीं है" शारीरिक और नैतिक दोनों रोगों को शामिल है, भले ही यह शारीरिक रोगों के संबंध में अधिक स्पष्ट है।

आप का फरमान : "कोई बुरा शकुन नहीं है" का अर्थ है किसी देखी जाने वाली, या सुनी जाने वाली या ज्ञात चीज़ से नहूसत और बुरा शकुन लेना।

आप का फरमान : "और कोई हामा नहीं है" यहाँ पर हामा की दो व्याख्या की गई है:

प्रथम : यह उल्लू के समान एक प्रसिद्ध पक्षी है, या यह उल्लू ही है। अरब का मानना था कि जब किसी आदमी की हत्या कर दी जाती है तो उस की हडि्डयाँ हामा नामी पक्षी बन कर उड़ती और चिल्लाती रहती हैं यहाँ तक कि उस का बदला ले लिया जाये, कुछ लोगों का मानना यह था कि यह उस की आत्मा ही है।

दूसरी व्याख्या : यह है कि कुछ अरब का कहना है कि : हामा एक प्रसिद्ध पक्षी है, किन्तु वे उस से अपशकुन लेते थे, जब वक किसी के घर पर उतरता और आवाज़ करता, तो वह कहते कि : यह इस लिए चिल्लाता है कि वह मर जाये, और यह आस्था रखते थे कि यह इस बात का संकेत है कि उस की मौत का समय निकट है, और इस में कोई सन्देह नहीं कि यह सब झूठी मान्यतायें हैं।

आप का फरमान : "और सफर का महीना मनहूस नहीं है।" कहा गया है कि : इस से मुराद सफर का महीना है, अरब के लोग इस से बुरा शकुन लेते थे, और विशेष रूप से शादी-विवाह में।

और एक क्थन के अनुसार : यह पेट की एक बीमारी है जो ऊँट को लग जाती है, और एक ऊँट से दूसरे ऊँट में स्थानांतरित हो जाती है, इस आधार पर उस (यानी सफर) का अत्फ अदवा पर, खास का आम पर अत्फ करने के अध्याय से है।

. . .सब से निकट बात यह है कि सफर से मुराद सफर का महीना है, और इस से अभिप्राय उस के मनहूस अर्थात् अपशकुन वाला महीना होने का निषेद्ध करना है, और यह कि वह अपने अलावा अन्य ज़मानों के समान है, जिस में भलाई और बुराई दोनों मुक़द्दर (निहित) होती है।

उक्त हदीस में चार चीज़ों का निषेद्ध उन के अस्तित्व का निषेद्ध नहीं है ; क्योंकि वे चीज़ें पाई जाती हैं, किन्तु उन के प्रभाव का निषेद्ध किया गया है ; क्योंकि प्रभाव डालने वाला अल्लाह तआला ही है। अत: उन में से जिस चीज़ का कारण होना सर्वज्ञात है ; तो वह शुद्ध कारण है, और जिस का कारण होना भ्रमित है तो वह झूठा कारण है, और उस के स्वयं प्रभावी होने का निषेद्ध किया गया है यदि वह सही (शुद्ध कारण) है, और उस के कारण होने का निषेद्ध किया गया है यदि वह झूठा है।

आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान "कोई छूत या संक्रमण नहीं" : छूत या संक्रमण का अस्तित्व है, और इस के अस्तित्व पर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह कथन तर्क है कि : "एक बीमार को एक स्वस्थ के पास न लाया जाये।" अर्थात् रोगी ऊँटों का मालिक अपने ऊँटों को स्वस्थ ऊँटो के मालिक के पास न लाये ; ताकि छूत हस्तांतरित न हो जाये।

इसी तरह आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह फरमान भी तर्क है : "कोढ़ी से उसी तरह भागो जिस तरह तुम शेर से भागते हो।" कोढ़ (कुष्ठ रोग) एक गंभीर बीमारी है जो तेज़ी से संचारित होता है और इस से पीड़ित व्यक्ति का विनाश कर देता है, यहाँ तक कि इसे ताऊन कहा गया है ; तो कोढ़ी से भागने का आदेश इस लिये दिया गया है कि उस का संक्रमण तुम्हें लग न जाये, इस में छूत-छात (संक्रमण) के प्रभाव का प्रतिज्ञान है, किन्तु उस का प्रभाव अनिवार्य नहीं है कि वह अपरिहार्य रूप से प्रभावी हो। और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का कोढ़ी से भागने और बीमार ऊँटों को स्वस्थ ऊँटों के पास न लाने का हुक्म देना, कारणों से बचाव करने के अध्याय से है, उस का मतलब यह नहीं है कि कारण स्वयं प्रभाव डालते हैं ; क्योंकि कारण स्वत: प्रभाव नहीं डालते हैं, किन्तु हमारे लिए उचित है कि उन कारणों से बचाव करें जो आपदा का कारण बन सकते हैं ; इसलिए कि अल्लाह तआला का फरमान है : "अपने आप को विनाश न करो।" (सूरतुल बक़रा : 195)

यह कहना संभव नहीं है कि : अल्लाह के पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम छूत-छात (संक्रमण) के प्रभाव का इंकार करते हैं ; क्योंकि वस्तुस्थिति और दूसरी हदीसें इसका खण्डन करती हैं।

यदि कहा जाये कि : जब रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि "छूत और संक्रमण नहीं है" तो एक आदमी ने कहा : ऐ अल्लाह के पैग़ंबर! हिरण की तरह ऊँट स्वस्थ होते हैं, फिर एक खाज वाला ऊँट उन में प्रवेश करता है तो उन्हें भी खाज से ग्रस्त कर देता है ? इस पर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "तो पहले ऊँट को किस ने खाज से ग्रस्त किया ? अर्थात् पहले ऊँट पर बिना संक्रमण और छूत के बीमारी उतरी, बल्कि वह बीमारी अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल की तरफ से उतरी ; इसी प्रकार जब वह छूत के द्वारा हस्तांतरित हुई तो अल्लाह तआला के हुक्म ही से हस्तांतरित हुई है, और यह तथ्य है कि किसी चीज़ का कभी कोई ज्ञात कारण होता है और कभी उस का ज्ञात कारण नहीं होता है, चुनाँचि पहले ऊँट के खाज से ग्रस्त होने का कारण ज्ञात नहीं है, किन्तु यह अल्लाह की तक़्दीर (फैसले) से ही हुआ है, और उसके बाद वाले ऊँट के खाज से ग्रस्त होने का कारण ज्ञात है, किन्तु अगर अल्लाह तआला चाहता तो वह खाज से ग्रस्त न होता, इसीलिए कभी-कभार ऊँट खाज से ग्रस्त होता है, फिर वह बीमारी चली जाती है और वह नहीं मरता है, इसी तरह ताऊन (प्लेग) और हैज़ा संक्रामक रोग हैं, और कभी ये बीमारियाँ एक घर में आती हैं और कुछ लोग उन से पीड़ित हो कर मर जाते हैं, और कुछ दूसरे लोग सुरक्षित रहते हैं उन्हें बीमारी लगती ही नहीं है।

अत: मनुष्य को चाहिए कि अल्लाह तआला ही पर भरोसा रखे और उसी पर तवक्कुल करे, और यह बात वर्णित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास एक कुष्ठ रोग वाला आदमी आया, तो आप ने उस का हाथ पकड़ कर कहा : "खाओ" अर्थात् रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उस खाने से जिस से आप स्वयं खा रहे थे (उस आदमी को खाने के लिए कहा) ; आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ऐसा अपने तवक्कुल और विश्वास की शक्ति की वजह से किया था ; तो यह तवक्कुल उस संक्रामक कारण का प्रतिरोधी है।

यह मिलान जिसकी ओर हम ने संकेत किया है दोनों हदीसों के बीच मिलान का सब से अच्छा तरीक़ा है। (कितीबुत्तौहीद की शरह पृ0 2/80 से समाप्त हुआ। )

इस आधार पर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के फरमान (कोई संक्रमण और छूत नहीं है) का अर्थ यह है कि कोई बीमारी एक रोगी आदमी से एक स्वस्थ आदम को अपने आप ही नहीं लगती है, बल्कि वह अल्लाह तआला की तक़्दीर (फैसले और अनुमति) से हस्तांतरित होती है, अत: बीमार आदमी का स्वस्थ आदमी से मेल-मिलाप रखना बीमारी के संक्रमित होने के कारणों में से एक कारण है, परन्तु इस का मतलब यह नहीं है कि अपरिहार्य रूप से ऐसा होता ही है, बल्कि ऐसा केवल उसी समय होता है जब अल्लाह तआला चाहता है। इसीलिए हम अक्सर देखते हैं कि स्वस्थ लोग बीमारों से मेल-मिलाप रखते और बार-बार उन के पास आते जाते हैं और उन्हें बीमारी नहीं लगती है।

और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर