हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम :
वाणिज्यिक बीमा निषिद्ध अनुबंधों में से है और यह अपने सभी रूपों में हराम (निषिद्ध) है। किसी के लिए भी इसमें भाग लेना जायज़ नहीं है, सिवाय इसके कि वह ऐसा करने के लिए विवश और मजबूर हो। इसके हुक्म का उल्लेख प्रश्न संख्या : (8889) और (39474) में किया जा चुका है। अतः उन्हें देखें।
द्वितीय :
बीमा में भाग लेने के हराम होने का मतलब यह नहीं है कि बीमा कंपनी से किसी का अधिकार लेना हराम और निषिद्ध है, यदि वह उस व्यक्ति की ओर से अधिकार का भुगतान करने के लिए प्रतिबद्ध है जिससे दुर्घटना हुआ है।
इसके आधार पर, किसी दुर्घटना में घायल या मृत व्यक्ति की दीयत (रक्त धन) को किसी भी पक्ष से लेने में कोई रुकावट (आपत्ति) नहीं है, जिसपर उसके हक़दार लोगों को हत्यारे या अदालत द्वारा संदर्भित किया गया हो, चाहे वह बीमा कंपनी हो या कोई अन्य। क्योंकि दीयत (रक्त धन) के हक़दार लोग ऐसे पक्ष हैं जो अधिकार वाले हैं, और वे बीमा कंपनी के साथ दूसरे पक्ष के मामले के वैध होने के प्रति ज़िम्मेदार नहीं हैं।
हमने आदरणीय शैख इब्ने जिब्रीन से बीमा कंपनी से मुआवजा लेने के बारे में प्रश्न किया, तो उन्होंने उत्तर दिया : ''यह जायज़ है। क्योंकि इन कंपनियों ने खुद को इस बात के लिए प्रतिबद्ध किया है कि उनके साथ बीमित व्यक्ति द्वारा जो कुछ भी घटित होता है उसे सहन करेंगी। और जब वे मुआवजे का भुगतान करने के लिए बाध्य हैं, तो इससे उपेक्षा नहीं किया जाएगा। तथा जिस व्यक्ति ने इस दुर्घटना को अंजाम दिया है, उस पर – मृत्यु होने के स्थिति में – केवल गलती से होने वाली हत्या का कफ़्फ़ारा देना (परायश्चित करना) बाक़ी रह जाएगा, अगर दुर्घटना उसकी गलती से हुई थी।''
और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।