हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
पति और पत्नी के बीच जुदाई (विच्छेद) केवल दो तरीकों से संपन्न होती है : तलाक़ या फ़स्ख़।
उन दोनों के बीच अंतर यह है कि तलाक़ पति द्वारा वैवाहिक संबंध को समाप्त कर देने का नाम है, और इसके कुछ विशिष्ट सर्वज्ञात शब्द हैं।
रही बात फ़स्ख़ कीः तो यह विवाह के अनुबंध को तोड़ देने तथा वैवाहिक संबंध को उसके मूल ही से निरस्त कर देने का नाम है, मानो कि उसका अस्तित्व ही नहीं था। और यह न्यायाधीश के निर्णय के माध्यम से या शरीयत के निर्णय के द्वारा होता है।
उन दोनों के बीच कुछ अंतर निम्नलिखित हैं :
1 - तलाक़ केवल पति के शब्द (कथन), उसकी पसंद और उसकी सहमति से होती है, लेकिन फ़स्ख़ पति के शब्द (कथन) के बिना होता है और उसके लिए उसकी सहमति और पसंद की शर्त नहीं होती है।
इमाम शाफेई रहिमहुल्लाह कहते हैं : ''जिस मामले में भी जुदाई का फैसला किया गया है, और पति ने उसका उच्चारण नहीं किया है, और वह उसे नहीं चाहता था . . . तो इस जुदाई को तलाक़ नहीं कहा जाएगा।'' समाप्त हुआ। किताब ''अल-उम्म (5/128)''
2 - तलाक़ के कई कारण हैं, और कभी-कभी वह अकारण भी होती है। वह केवल इसलिए (भी) होती है कि पति अपनी पत्नी को अलग करना चाहता है।
जहाँ तक फस्ख़ का संबंध है, तो यह केवल किसी ऐसे कारण की उपस्थिति के आधार पर होता है जो उसे आवश्यक बनाता है या उसे अनुमेय ठहराता है।
जिन कारणों के लिए शादी का अनुबंध फ़स्ख़ (निरस्त) किया जा सकता है उनके उदाहरणों में से कुछ निम्नलिखित हैं :
- पति-पत्नि के बीच समानता (संगतता) का न होना - उन विद्वानों के अनुसार जिन्होंने विवाह के अनुबंध के लाज़िम होने के लिए इसकी शर्त लगाई है-।
- यदि पति-पत्नि में से कोई एक इस्लाम धर्म त्याग दे और फिर उसकी ओर वापस न आए।
- यदि पति इस्लाम स्वीकार कर ले और पत्नी मुसलमान बनने से इन्कार कर दे, और वह बहुदेववादी (मुश्रिक) हो, यहूदी या ईसाई धर्म का अनुयाय करनेवाली न हो।
- पति-पत्नि के बीच 'लिआन' का होना। (लिआन एक प्रक्रिया है, जिसकी आवश्यकता उस समय पड़ती है जब पति अपनी पत्नी पर व्यभिचार का आरोप लगाता है और वह इसका इनकार करती है। चुनाँचे दोनों में से हर एक अपने सच्चा होने की साक्ष्य देता है और अगर वह झूठ बोल रहा हो तो अल्लाह के अभिशाप से ग्रस्त हो।)
- पति का दिवालियापन (वित्तीय कठिनाई) और भरण-पोषण का भुगतान करने में असमर्थता, अगर ऐसी स्थिति में पत्नी विवाह के अनुबंध के निरस्तीकरण का अनुरोध करती है।
- पति-पत्नि में से किसी एक में ऐसे दोष का पाया जाना जो लाभान्वित होने से रोकता हो, या उन दोनों के बीच घृणा का कारण बनता हो।
3 - विवाह के फ़स्ख़ (निरस्त) होने के बाद पति अपनी पत्नी को वापस नहीं लौटा सकता। वह केवल एक नए अनुबंध (निकाह) के द्वारा और उसकी सहमति से ही उसे वापस लौटा सकता है।
जहाँ तक तलाक़ का संबंध है तो वह उसकी पत्नी है जब तक कि वह रजई तलाक़ की इद्दत (अवधि) में है। तथा वह पहली और दूसरी तलाक़ के बाद उसे बिना विवाह के वापस लौटाने का अधिकार रखता है, चाहे वह सहमत हो या न हो।
4 – फस्ख़ को उन तलाक़ों की संख्या में नहीं गिना जाता है जिनका पुरुष मालिक होता है।
इमाम शाफेई रहिमहुल्लाह कहते हैं : "पति-पत्नि के बीच होनेवाले किसी भी फस्ख़ से तलाक़ नहीं पड़ती है, न तो एक तलाक़ और न ही उसके बाद वाली तलाक़।'' किताब ''अल-उम्म (5/199)'' से समाप्त हुआ।
इब्ने अब्दुल बर्र रहिमहुल्लाह कहते हैं : तलाक़ और फ़स्ख़ के बीच का अंतर, अगरचे उनमें से प्रत्येक पति और पत्नी के बीच जुदाई है, यह है किः फ़स्ख़ के बाद यदि पति और पत्नी विवाह के बंधन की ओर लौट आते हैं तो वे दोनों पहली इस्मत पर बने रहेंगे, और पत्नी उस पति के पास तीन तलाक़ों पर बनी रहेगी। लेकिन यदि वह तलाक़ थी, फिर उसने उसे लौटाया है तो उसके पास दो तलाक़ें बचेंगी।''
''अल-इस्तिज़कार (6/181)" से समाप्त हुआ।
5 - तलाक़ देना पति का अधिकार है, और उसके लिए न्यायाधीश (जज) के निर्णय की शर्त नहीं है, कभी-कभार वह पति और पत्नी के बीच पारस्परिक सहमति से (भी) होती है।
लेकिन फस्ख़ शरीयत के फैसले या क़ाज़ी के फैसले के आधार पर ही होता है, वह मात्र पति और पत्नी के उससे सहमत होने से सिद्ध नहीं हो सकता, सिवाय ख़ुलअ के मामले के।
इब्नुल-क़ैयिम रहिमहुल्लाह फरमाते हैं : ''इस बात पर सर्वसहमति है कि वे दोनों मुआवज़े (अर्थात् खुलअ) के बिना निकाह को फ़स्ख करने पर सहमत नहीं हो सकते।'' ''ज़ादुल-मआद'' (5/598) से समाप्त हुआ।
6 - प्रवेश से पहले निकाह फ़स्ख़ करने से महिला के लिए मह्र में से कुछ भी अनिवार्य नहीं होता है, लेकिन प्रवेश से पहले तलाक़ देने से उसके लिए निर्धारित मह्र का आधा हिस्सा अनिवार्य हो जाता है।
रही बात ख़ुलअ की तो उसका अर्थ यह है किः महिला अपने पति से यह मांग करे कि वह उसे वित्तीय मुआवज़े के बदले में, या अपने मह्र को या उसके एक हिस्से को छोड़ देने के बदले में उसे अलग कर दे।
विद्वानों ने इस बारे में मतभेद किया है कि यह (खुलअ) फ़स्ख़ है या तलाक़, और निकटतम यह है कि यह फ़स्ख़ है। इसका वर्णन प्रश्न संख्याः (126444) के जवाब में किया जा चुका है।
उपर्युक्त अंतर का उल्लेख करने में निम्न पुस्तकों से लाभ उठाया गया हैः
''अल-मन्सूर फ़िल क़वायद'' (3/24), ''अल-फ़िक़्हुल इस्लामी व अदिल्लतुहू'' (4/595), ''अल-मौसूअतुल फ़िक़्हिय्या अल-कुवैतिय्या'' (32 / 107- 113), (32/137), ''फ़िक़्हुस्सुन्नह'' (2/314)।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक जानता है।