हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
प्रथम :
शिकार के हुक्म के संबंध में मूल नियम यह है कि वह जायज़ है, सिवाय उस व्यक्ति के जो (हज्ज या उमरा के लिए) एहराम की स्थिति में है या वह व्यक्ति जो हरम की सीमा में है। और यह हुक्म ज़मीन पर शिकार करने के बारे में है। जहाँ तक मछली और अन्य प्रकार के समुद्री शिकार का संबंध है, तो यह एहराम में रहने वाले व्यक्ति पर हराम नहीं है। अल्लाह तआला का फरमान है :
أُحِلَّ لَكُمْ صَيْدُ الْبَحْرِ وَطَعَامُهُ مَتَاعًا لَكُمْ وَلِلسَّيَّارَةِ وَحُرِّمَ عَلَيْكُمْ صَيْدُ الْبَرِّ مَا دُمْتُمْ حُرُمًا وَاتَّقُوا اللَّهَ الَّذِي إِلَيْهِ تُحْشَرُونَ
المائدة/96.
“तथा तुम्हारे लिए समुद्र (जल) का शिकार और उसका खाना हलाल कर दिया गया, तुम्हारे तथा यात्रियों के लाभ के लिए, तथा तुम पर भूमि का शिकार हराम कर दिया गया है जब तक तुम एहराम की स्थिति में रहो, और अल्लाह (की अवज्ञा) से डरो, जिसकी ओर तुम एकत्र किए जाओगे।” (सूरतुल-मायदा : 96).
जो भी व्यक्ति किसी वैध इरादे से जानवरों का शिकार करता है, जैसे कि उन्हें बेचकर पैसा कमाना या उन्हें खाना, तो विद्वानों की सर्वसहमति के अनुसार, उनका शिकार करने में कोई हर्ज और आपत्ति नहीं है।
इसी प्रकार, जिस व्यक्ति का मछली पकड़ने का प्राथमिक उद्देश्य - सैद्धांतिक रूप से - अनुमेय है जैसे कि मनोरंजन, दिल्लगी (तफरीह) और इसी तरह की चीज़ें, परंतु उसे जो मछली प्राप्त होती है उसे वह बेचकर या खाकर, या अन्य तरीकों से उससे लाभ उठाता है : तो उसपर इनमें से किसी भी चीज़ में कोई हर्ज नहीं है।
दूसरा :
यदि शिकारी को अपने शिकार की विशेष आवश्यकता नहीं है, बल्कि वह उसका केवल एक शौक़ या खेल-कूद के रूप में अभ्यास करना चाहता है, तो - इस स्थिति में - शिकार का हुक्म अनुमेयता से अप्रियता (नापसंदगी) में बदल जाता है ।
''अल-मौसूअह अल-फ़िक्हिय्यह'' (28/115) में आया है :
''जब यह ज्ञात हो गया कि शिकार के संबंध में मूल सिद्धांत अनुमेय होना है, तो यह हुक्म नहीं लगाया जाएगा कि वह बेहतर के विपरीत, या मकरूह (घृणित), या हराम या ऐच्छिक या अनिवार्य है, परंतु कुछ विशिष्ट रूपों में कुछ विशिष्ट प्रमाणों के आधार पर जिनका हम निम्न में उल्लेख कर रहे हैं :
...शिकार करना मकरूह है यदि उसका उद्देश्य खिलवाड़ करना और फालतू खेल खेलकर समय बर्बाद करना है; क्योंकि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान : "किसी भी ऐसी चीज़ को जिसमें प्राण हो लक्ष्य न बनाओ।'' इसे इमाम मुस्लिम (हदीस संख्या : 1957) ने रिवायत किया है।'' अंत हुआ.
एक से अधिक विद्वानों ने इस स्थिति में शिकार करना मकरूह बताया है।
अन-नफ़रावी अल-मालिकी रहिमहुल्लाह ने कहा : ''ज़बह करने के इरादे से मनोरंजन के लिए शिकार करना मकरूह है।'' "अल-फ़वाकिह अद-दवानी'' (1/390) से उद्धरण समाप्त हुआ।
शैखुल-इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह ने कहा : ''किसी आवश्यकता के लिए शिकार करना जायज़ है। जहाँ तक उस शिकार का संबंध है जिसमें केवल मनोरंजन और खेल-कूद है, तो वह मकरूह है। और यदि उसमें लोगों की फसलों या संपत्तियों पर अतिक्रमण करके उनपर अत्याचार करना शामिल है, तो यह हराम है।'' "अल-फतावा अल-कुबरा'' (5/550) से उद्धरण समाप्त हुआ।
शैख मंसूर अल-बहूती रहिमहुल्लाह ने कहा : ''खेल के लिए शिकार करना मकरूह है, क्योंकि यह एक बेकार काम है। यदि शिकार में लोगों की फसलों या संपत्तियों पर अतिक्रमण करके उनपर अत्याचार करना शामिल है, तो यह हराम है ; क्योंकि साधनों के लिए उद्देश्यों का हुक्म है।'' "कश्शाफ़ुल-क़िनाअ'' (6/213) से उद्धरण समाप्त हुआ।
इब्ने आबिदीन रहिमहुल्लाह ने कहा : ''मजमउल-फतावा में कहा गया है : (शिकार करना) बेकार खेल खेलकर समय बर्बाद करने के लिए मकरूह है।'' "रद्दुल-मुहतार'' (5/297) से उद्धरण समाप्त हुआ।
तीसरा:
यदि शिकार का उद्देश्य मनोरंजन और खेल-कूद है, लेकिन वह इस शिकार से, उसे खाने, या बेचने, या उपहार देने आदि के रूप में लाभ उठाएगा : तो यहाँ वर्णित नापसंदगी का कारण दूर हो जाता है, और शिकार मूल अनुमेयता की ओर वापस लौट आता है, क्योंकि इस स्थित में शिकार विशुद्ध रूप से व्यर्थ नहीं है, न ही इसमें उसके मूल्य को नष्ट करना, या उसे प्रताड़ित करना शामिल है।
शैख मुहम्मद बिन इबराहीम रहिमहुल्लाह ने कहा :
''व्यर्थ में मौत का स्वाद चखाना धर्मसंगत नहीं है, जैसे कि वे लोग जो कारों पर शिकार करते हैं, और उनका मक़सद उसे खाना या खिलाना नहीं होता है। यह अनुचित है। हदीस में आया है : "जो किसी गौरैया को नाहक़ मारेगा, उससे उसके बारे में पूछताछ की जाएगी।"
''फ़तावा व रसाइल मुहम्मद बिन इबराहीम आलुश-शैख'' (12/231) से उद्धरण समाप्त हुआ।
शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह ने कहा :
''यदि यह खाने या बेचने के वैध हित के लिए है, जैसे कि वह हुबारा, गोह, खरगोश और अन्य जायज़ चीज़ों को खाने या बेचने के लिए शिकार करता है, तो कोई हर्ज नहीं है। लेकिन अगर वह उनका शिकार इसलिए करता है कि उन्हें मारकर छोड़ दे, तो यह उचित नहीं है, इसकी कम से कम स्थिति सख़्त नापसंदगी है। अतः कोई भी किसी खाने वाले जानवर का शिकार केवल किसी हित के लिए ही करे, या तो इसलिए कि उसे खाए, या उसे गरीबों को खिलाए, या उसे उपहार के रूप में दे, या उसे बेच दे। जहाँ तक खेलने के लिए शिकार करने की बात है, तो यह जायज़ नहीं है। यह एक ऐसा खेल है जो मोमिन को शोभा नहीं देता है। जबकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वर्णित है कि आपने शिकार करने से मना किया है सिवाय खाने के लिए। अर्थात् ताकि उसे खाया जाए और उससे लाभ उठाया जाए।'' शैख इब्ने बाज़ की वेबसाइट से उद्धरण समाप्त हुआ।
निष्कर्ष :
प्रश्न में उल्लिखित स्थिति में शिकार करना अनुमेय है, उसमें कोई हर्ज नहीं है, जब तक कि शिकार से लाभ उठाना संभव है, उसे खाने, या बेचने, या इसी तरह के अन्य रूप में।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।