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उसका पति नमाज़ नहीं पढ़ता है और उसे तलाक़ देने से इनकार करता है यहाँ तक कि वह उसे बेटी सौंप दे

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प्रकाशन की तिथि : 11-02-2012

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प्रश्न

मेरी बहन की पाँच साल पहले शादी हुई थी और उसकी तीन साल की एक बच्ची है। उसका पति मुसलमान पैदा हुआ था किंतु वह इस्लाम की शिक्षाओं का पालन नहीं करता है . . वह नमाज़ पढ़ता है न रोज़ा रखता है, मेरी बहन ने इस बारे में उसे बहुत नसीहत की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। बल्कि वह बहुत आलसी भी है और काम करना पसंद नहीं करता है, जिसके कारण वह परिवार पर खर्च करने के लिए कोई चीज़ नहीं पाता है, बल्कि कभी कभार मैं ही उसे पैसा देता हूँ क्योंकि हम एक ही घर में रहते हैं।
इन्हीं सब कारणों से मेरी बहन लगभग एक वर्ष पूर्व घर से निकल गई और देश से बाहर काम करने के लिए चली गई, और उस से लताक़ देने की मांग की, किंतु उसने उसे तलाक़ देने से इनकार कर दिया सिवाय इसके कि वह बेटी उसे दे दे . . और जैसा कि मैं ऊपर कह चुका हूँ कि वह एक ज़िम्मेदार आदमी नहीं है कि उसे बेटी दी जाए . .
बल्कि जब से उसे पता चला है कि उस बच्ची की माँ (मेरी बहन) ने उसे स्वदेश मेरी माँ के पास वापस भेज दिया ताकि वह उसकी देखे रेख करे, वह उसे देखने के लिए नहीं आया है . . क्या इस तरह के आदमी को उस बच्ची को देना संभव है . . ॽ !
अब प्रश्न यह है कि : उसके लिए इस आदमी से छुटकारा और तलाक़ लेना कैसे संभव है ॽ वह उसे तलाक़ देने से इनकार करता है, और हम ने अपने गाँव में जिस इस्लामी शिक्षक (शैख) से पूछा उसने कहा कि हमारी बहन के लिए उस से तलाक़ लेना उसकी सहमति के बिना संभव नहीं है, और उसने हमें उसके पति को समझाने और इस्लाम का पालन करने की नसीहत करने को कहा। लेकिन उसे नहीं पता कि हम तीन से अधिक वर्षों से उसे नमाज़ पढ़ने और रोज़ा रखने पर प्रोत्साहित करने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं, परंतु वह नहीं मानता। अतः आप हमें सलाह दें कि हम क्या करें ॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

यदि पति नमाज़ नहीं पढ़ता है तो आप की बहन के लिए उसके साथ बने रहना जाइज़ नहीं है,क्योंकि नमाज़ छोड़ने वाला विद्वानों के दो कथनों में से सही राय के अनुसार काफिर (नास्तिक) है,तथा प्रश्न संख्या (5208)और (6257) का उत्तर देखें।

और यदि वह निकाह के अनुबंध के दौरान नमाज़ नहीं पढ़ता था तो वह अनुबंध (निकाह) ही शुद्ध नहीं है,और बच्ची उस पति की ओर मंसूब की जायेगी क्योंकि वह एक ऐसे निकाह के परिणाम स्वरूप पैदा हुई है वे दोनों जिसके शुद्ध होने का अक़ीदा रखते थे।

और यदि उसका नमाज़ छोड़ना निकाह के अनुबंध के बाद आरंभ हुआ है,और वह उसकी इद्दत समाप्त होने तक निरंतर उसे छोड़ता रहा है तो निकाह टूट गया,फिर अगर उसने तौबा कर लिया और नमाज़ पढ़ने लगा तो वह पत्नी उसकी ओर एक नये अनुबंध के द्वारा वापस लौट सकती है यदि वह उस से संतुष्ट है।

तथा कुछ विद्वानों का कहना है कि : यदि उसने तौबा कर लिया और नामज़ पढ़ने लगा,तो पत्नी उसकी ओर वापस लौट आयेगी,चाहे इद्दत समाप्त होने के बाद ही क्यों न हो,बशर्ते कि उसने किसी दूसरे आदमी से शादी न कर ली हो।

इस से आपको पता चल सकता है कि उसे शरीअत के दृष्टिकोण से उस से तलाक लेने की आवश्यकता नहीं है, किंतु इस बात को ध्यान में रखते हुए कि वह सरकारी कागज़ात में उसकी पत्नी समझी जाती है और इसके आधार पर उन दोनों के बीच विरासत और उसे दूसरे आदमी से शादी करने से रोकना निष्कर्षित होता है, उसे चाहिए कि तलाक़ लेने का प्रयास करे,चाहे उसे कुछ पैसा ही देना पड़े ताकि वह उसे तलाक़ दे दे।

जहाँ तक बच्ची का संबंध है तो उसके पालन पोषण का अधिकार उसकी माँ के लिए है।

तथा पति को अल्लाह सर्वशक्तिमान से तौबा (पश्चाताप) करने और नमाज़ पढ़ने की नसीहत करनी चाहिए, और उसे सूचित करना चाहिए कि उसकी पत्नी उसके लिए हलाल नहीं है यहाँ तक कि वह नमाज़ पढ़ने लगे। यदि वह तौबा कर ले और अल्लाह की तरफ पलट आए तो अल्हम्दुलिल्लाह, और अगर वह अपनी स्थिति पर बाक़ी रहे तो आपकी बहन को तलाक़ लेने का प्रयास करना चाहिए,तथा वह इस मामले को अदालत में ले जा सकती है और वह उसके पास खर्चा न होने और नुक़सान के कारण तलाक़ मांग सकती है।

हम अल्लाह तआला से प्रार्थना करते हैं कि उसके लिए आसानी और रास्ता पैदा फरमाये।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर