हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
पत्नी की ख़ाला और फूफी पति के लिए महरम नहीं मानी जाती हैं, बल्कि वे दोनों उसके लिए परायी (ग़ैर-महरम) महिलाओं की तरह हैं : अतः वह उनके साथ एकांत में नहीं होगा, और न उनसे हाथ मिलाएगा।
जहाँ तक एक महिला और उसकी फूफी, तथा एक महिला और उसकी ख़ाला को एक साथ शादी के अनुबंध में रखने से निषेध वर्णित होने का संबंध है, जैसा कि सहीह बुखारी (हदीस संख्या : 5109) और सहीह मुस्लिम (हदीस संख्या : 1408) में अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया : “एक महिला और उसकी फूफी को, या एक महिला और उसकी ख़ाला को (एक ही समय) शादी में एकत्र न किया जाए।”
तो इसका मतलब यह नहीं है कि वे महरम हैं। क्योंकि इस निषेध का मतलब केवल यह है कि एक महिला और उसकी फूफी या उसकी ख़ाला की शादी एक ही समय में एक ही पुरुष से नहीं होनी चाहिए। इसका मतलब यह नहीं है कि उन दोनों में से किसी से भी शादी करना मना है। अतः यदि पत्नी तलाक़ के द्वारा अपने पति से अलग हो जाती है या उसकी मृत्यु हो जाती है, तो उसका पति उसके बाद उसकी फूफी या उसकी ख़ाला से शादी कर सकता है।
यह सर्वज्ञात है कि इस तरह के मामलों में लापरवाही बरतना : एक महिला और उसकी फूफी या उसकी ख़ाला को एक ही समय में शादी के अनुबंध में एकत्र करने को निषिद्ध ठहराने के शरीयत के उद्देश्य के खिलाफ़ जाने का कारण बन सकता है। क्योंकि मिश्रण और इसी तरह की चीज़ों में लापरवाही करना पुरुष या महिला को इनमें से कुछ के प्रति आकर्षित होने के लिए प्रेरित कर सकता है; इसलिए वह अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है, ताकि वह उसकी फूफी, या उसकी ख़ाला, या उसकी भतीजी... इत्यादि से शादी कर सके। परिणामस्वरूप यह रिश्तेदारी के संबंधों को तोड़ने, तथा द्वेष और घृणा पैदा करने का कारण बनेगा।
“इफ्ता की स्थायी समिति’ से पूछा गया : मेरी एक लड़की से शादी हुई है और उसकी एक फूफी (मेरी पत्नी के पिता की बहन) है। क्या मेरे लिए उसे देखना और उससे सलाम करना जायज़ है, क्या इसकी अनुमति है या नहींॽ
तो स्थायी समिति' ने उत्तर दिया : “तुम्हारी पत्नी की फूफी के लिए यह जायज़ नहीं है कि वह तुम्हारे सामने अपना चेहरा उजागर करे, और न ही तुम्हारे लिए उससे हाथ मिलाना जायज़ है। क्योंकि तुम उसके महरमों में से नहीं हो। और अल्लाह तआला ही सामर्थ्य प्रदान करने वाला है।”
“फ़तावा अल-लजनह अद-दाईमह” – प्रथम संग्रह (17/436) से उद्धरण समाप्त हुआ।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।