शुक्रवार 19 रमज़ान 1445 - 29 मार्च 2024
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दुआ के स्वीकार्य होने के समय और स्थान

प्रश्न

प्रश्नः वे कौन कौन से स्थान, समय और स्थितियाँ हैं जिनमें दुआ स्वीकार की जाती है? और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के फरमानः ''फ़र्ज़ नमाज़ों के बाद'' से क्या अभिप्राय है? क्या पिता की अपनी संतान के लिए दुआ स्वीकार्य है, या पिता की अपने बच्चों पर केवल शाप (बद्-दुआ) स्वीकार की जाती है, आप से अनुरोध है कि इन सभी मुद्दों को स्पष्ट करें।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

स्वीकार होनेवाली दुआ के समय और उसके स्थान बहुत अधिक हैं, जिनमें से कुछ यहाँ वर्णित किए जा रहे हैं :

1- लैलतुल-क़द्र (क़द्र की रात) :

अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से उस समय फरमाया जब उन्होंने कहाः मुझे बतलाएं कि यदि मुझे किसी रात के बारे में ज्ञात हो जाए कि वह क़द्र की रात है, तो इसमें मैं क्या पढ़ूँॽतो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया तुम कहोः

 اللهم إنك عفو تحب العفو فاعف عني 

''ऐ अल्लाह! निःसंदेह तू ही क्षमा करने वाला है, और तू क्षमा को पसंद करता है, अतः मुझे क्षमा (माफ़) कर दे।''

2- रात के मध्य में दुआ करनाः इससे अभिप्राय सेहरी का समय और अल्लाह तआला के उतरने का समय है, क्योंकि अल्लाह तआला अपने बन्दों पर अनुग्रह करते हुए उनकी आवश्यकताओं को पूरी करने और उनकी आपदाओं को दूर करने के लिए निचले आसमान पर उतरता है, और फरमाता हैः ''कौन है जो मुझे पुकारे तो उसकी दुआ स्वीकार करूंॽकौन है जो मुझसे माँगे तो मैं उसे प्रदान करूँॽकौन है जो मुझसे अपने पापों की माफी मांगे, तो मैं उसे माफ कर दूँ।'' इसे बुखारी (हदीस संख्याः 1145) ने रिवायत किया है।

3- फ़र्ज़ (अनिवार्य) नमाज़ों के बादः

अबू उमामा रजियल्लाहु अन्हु की हदीस में है कि ''अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से पूछा गयाः कौन सी दुआ सबसे अधिक स्वीकार होती हैॽआप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः (रात के अंतिम भाग में, और फर्ज़ नमाज़ों के आखिर में) इसे तिर्मिजी (हदीस संख्याः 3499) ने रिवायत किया है और अल्बानी ने सहीह तिर्मिजी में इस हदीस को हसन कहा है।

यहाँ ''नमाज़ों के आखिर'' शब्द के बारे में मतभेद किया गया है कि क्या वह सलाम फेरने से पहले है या उसके बाद मेंॽ

शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह और उनके शिष्य इब्नुल क़ैयिम रहिमहुल्लाह ने इस बात को चयन किया है कि यह सलाम फेरने से पहले है। इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह कहते हैं किः ''हर चीज़ की पिछला हिस्सा, जानवर के पिछले हिस्से की तरह है।'' ज़ादुल-मआद (1/305).

शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह कहते हैं किः ''जो दुआ 'नमाज़ के आखिर' शब्द के साथ संबंधित होकर वर्णित है वह सलाम फेरने से पहले है। और जो ज़िक्र 'नमाज़ के आखिर' शब्द के साथ संबंधित होकर वर्णित है, वह नमाज़ के बाद के अज़कार हैं। क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान हैः

فَإِذَا قَضَيْتُمُ الصَّلَاةَ فَاذْكُرُوا اللَّهَ قِيَامًا وَقُعُودًا وَعَلَى جُنُوبِكُمْ

''फिर जब तुम नमाज़ अदा कर चुको तो उठते बैठते, और पहलू के बल अल्लाह का जि़क्र करो।'' (सूरतुन्निसाः 103)

देखें :शैख मुहम्मद अल-हमद की ''किताबुद्दुआ'' पृष्ठः (54)

4- अज़ान और इक़ामत के बीच में दुआ करनाः

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रमाणित है कि आप ने फरमायाः ''अज़ान और इक़ामत के बीच दुआ अस्वीकार नहीं होती है।'' इसे अबू दाऊद (हदीस संख्याः 521) और तिर्मिजी (हदीस संख्याः 212) ने रिवायत किया है, तथा सहीहुल जामे (हदीस संख्याः 2408) देखें।

5- अनिवार्य नमाज़ों के लिए अज़ान के समय और घमासान युद्ध के समयः जैसा कि सहल बिन सअद रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः ''दो चीजें अस्वीकार नहीं होतीं हैं, या बहुत ही कम अस्वीकार होती हैं, अज़ान के समयऔर लड़ाई के समय दुआ करना जब घमासान युद्ध जारी हो।'' अबू दाऊद ने इसे रिवायत किया है, और यह रिवायत सही है। देखें : सहीहुल जामे (हदीस संख्याः 3079).

6- बारिश होते समयः जैसा कि सहल बिन सअद रजियल्लाहु अन्हु की हदीस में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वर्णित है कि आप ने फरमायाः ''दो दुआएँ अस्वीकार नहीं होती हैं : अज़ान के समय की दुआ और बारिश के समय की दुआ।''इसे अबू दाऊद ने रिवायत किया है और अल्बानी ने इसे ''सहीहुल जामे (हदीस संख्याः 3078) में सहीह क़रार दिया है।

7- रात के किसी भी हिस्से में दुआ करना, जैसाकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान हैः ''रात के समय एक ऐसी घड़ी है जिसमें कोई भी मुसलमान लोक और परलोक के मामले से संबंधित कोई भलाई मांगे, तो उसे वह चीज़ दे दी जाती है, और यह घड़ी हर रात होती है।'' इसे मुस्लिम (हदीस संख्याः 757) ने रिवायत किया है।

8- जुमा के दिन स्वीकृति की घड़ीः

पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जुमा के दिन का चर्चा करते हुए फरमायाः ''इस दिन में एक ऐसी घड़ी है जिसमें कोई भी मुसलमान खड़े होकर नमाज़ पढ़ता है और अल्लाह तआला से कोई चीज़ मांगता है, तो अल्लाह तआला उसे वह चीज़ प्रदान कर देता है।'' और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने हाथ से इस घड़ी के बहुत कम होने का संकेत दिया। इसे बुखारी (हदीस संख्याः 935) और मुस्लिम (हदीस संख्याः 852) ने रिवायत किया है।

9- ज़मज़म का पानी पीने के समय दुआ करनाः

जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से बयान करते हैं किः ''ज़मज़म का पानी हर उस लक्ष्य के लिए है जिसके लिए उसे पिया जाए।'' इसे इमाम अहमद ने रिवायत किया है और अल्बानी ने इसे ''सहीहुल जामे'' (हदीस संख्याः 5502) में सहीह क़रार दिया है।

10- सज्दे की हालत में दुआः

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान हैः (बंदा अपने रब से सबसे अधिक क़रीब सज्दे की हालत में होता है, इसलिए सज्दे की हालत में खूब दुआ करो।'' इसे मुस्लिम (हदीस संख्याः 482) ने रिवायत किया है।

11- मुर्गे की आवाज़ सुनने के समयः

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान हैः (जब तुम मुर्गे की आवाज़ सुनो तो अल्लाह से उसके अनुग्रह का प्रश्न करो, क्योंकि उसने फरिश्ते को देखा है।'' इसे बुखारी (हदीस संख्याः 2304) और मुस्लिम (हदीस संख्याः 2729) ने रिवायत किया है।

12- ला इलाहा इल्ला अन्ता सुब्हानक, इन्नी कुन्तो मिनज़्ज़ालेमीन' पढ़कर दुआ मांगना।

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रमाणित है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः ''मछली वाले (यानी यूनुस अलैहिस्सलाम) की दुआ जब उन्होंने मछली के पेट में रहते हुए दुआ की, यह थीः 'ला इलाहा इल्ला अन्ता सुब्हानक, इन्नी कुन्तो मिनज़्ज़ालेमीन' (तेरे अलावा कोई सच्चा पूज्य नहीं, तू पवित्र है निःसंदेह मैं ही ज़ालिमों में से था), इन शब्दों के माध्यम से कोई भी मुसलमान किसी चीज़ के बारे में दुआ मांगे, तो अल्लाह तआला उसकी दुआ को स्वीकार करता है।'' इसे तिर्मिजी ने रिवायत किया है और अल्बानी रहिमहुल्लाह ने इसे ''सहीहुल जामे'' (हदीस संख्याः 3383) में सहीह क़रार दिया है।

अल्लाह तआला के फरमान :

 وذا النون إذ ذهب مغاضباً فظن أن لن نقدر عليه فنادى في الظلمات أن لا إله إلا أنت سبحانك إني كنت من الظالمين فاستجبنا له ونجيناه من الغم وكذلك ننجي المؤمنين

الأنبياء/87- 88

''और मछली वाला जब गुस्से की हालत में चल निकला, और यह समझा कि हम उस पर पकड़ नहीं करेंगे, फिर उसने अंधेरे में पुकारा, निःसंदेह तेरे अलावा कोई माबूद नहीं है, तू पवित्र है, मैं ही अत्याचारियों में से हूँ। फिर हमने उसकी दुआ स्वीकार की और शोक से नजात दी, और इसी तरह हम ईमान वालों को नजात दिया करते हैं।'' (सूरतुल अंबियाः 87-88).

अल्लामा क़ुर्तुबी रहिमहुल्लाह कहते हैं :

इस आयत में अल्लाह तआला ने यह शर्त स्वीकार किया है कि जो भी उसे पुकारेगा, वह उसकी दुआ स्वीकार करेगा, जैसे यूनुस अलैहिस्सलाम की दुआ स्वीकार की, और उसे उसी तरह मुक्ति प्रदान करेगा जैसे यूनुस अलैहिस्सलाम को नजात दी। और इस बात की दलील अल्लाह का यह कथन हैः  وكذلك ننجي المؤمنين   ''''और इसी तरह हम ईमान वालों को नजात दिया करते हैं।'' अल-जामिओ लि-अहकामिल क़ुरआन (11/334).

13- जब आदमी किसी आपदा से पीड़ित हो तो

إنا لله إنا إليه راجعون اللهم أجرني في مصيبتي وأخلف لي خيراً منها

(इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजेऊन, अल्लाहुम्मअ-जुर्नी फी मुसीबती व अख़लिफ ली खैरन मिन्हा) के द्वारा दुआ करनाः

चुनाँचे सहीह मुस्लिमः (हदीस संख्याः 918) में उम्मे सलमा रजियल्लाहु अन्हा से वर्णित है वह कहती हैं किः मैं ने अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फरमाते हुए सुनाः (जो भी मुसलमान किसी आपदा से पीड़ित होता है तो वह वही कहता है जिसका अल्लाह ने आदेश दिया हैः

إنا لله إنا إليه راجعون اللهم أجرني في مصيبتي وأخلف لي خيراً منها

(निश्चय ही हम अल्लाह के लिए हैं, और उसी की ओर लौटेंगे, हे अल्लाह! मुझे मेरी मुसीबत में इनाम (पुण्य) प्रदान कर, और मुझे इससे अच्छा उत्तराधिकार नसीब फरमा, तो अल्लाह तआला उसे उससे अच्छा उत्तराधिकार प्रदान कर देता है।'' इसे मुस्लिम (हदीस संख्याः 918) ने रिवायत किया है।

14- मृतक की आत्मा (प्राण) निकलने के बाद लोगों का दुआ करना, चुनाँचे एक हदीस में है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम, अबू सलमा रजियल्लाहु अन्हु के पास आए, जबकि उनकी निगाह फटी हुई थी, तो आप ने उनकी आँखें बंद कर दीं और फरमायाः ''जब प्राण निकाला जाता है, तो आँख उसका पीछा करती है।'' यह सुनकर अबू सलमा रजियल्लाहु अन्हु के परिवार में से किसी ने चींख़ मारी, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः ''अपने लिए अच्छे शब्द ही बोलो, क्योंकि तुम जो भी कहते हो, फरिश्ते उस पर आमीन कहत हैं।'' इसे मुस्लिम (हदीस संख्याः 2722) ने रिवायत किया है।

15- बीमार आदमी के पास दुआ करनाः

इमाम मुस्लिम ने अपनी सहीह (हदीस संख्याः 919) में उम्मे सलमा रजियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः ''जब तुम बीमार के पास जाओ तो अच्छी बात कहो, क्योंकि स्वर्गदूत तुम्हारी इन बातों पर आमीन कहते हैं .. उम्मे सलमा रजियल्लाहु अन्हा कहती हैं कि जब अबू सलमा मर गए तो मैं पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आई और आपको खबर दी कि अबू सलमा मर गए हैं। तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः (तुम यह कहोः

اللهم اغفر لي وله وأعقبني منه عقبى حسنة

''हे अल्लाह! मेरी और उसकी माफी फरमा और मुझे इससे अच्छा बदले में प्रदान कर।'' उम्मे सलमा कहती हैं कि मैं ने यह शब्द कहे, तो अल्लाह तआला ने मुझे अबू सलमा से अच्छा पति प्रदान किया और वह मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं।

16- मज़लूम (उत्पीड़ित) की दुआः

और हदीस में है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः (मज़लूम के शाप से बचो, क्योंकि अल्लाह और मज़लूम के शाप के बीच कोई पर्दा नहीं होता है।) इसे बुखारी (हदीस संख्याः 469) और मुस्लिम (हदीस संख्याः 19) ने रिवायत किया है।

तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह भी फरमान है किः (मज़लूम की शाप स्वीकार होती है, चाहे वह पापी ही क्यों न हो, उसका पाप उसी के ऊपर है।'' इस हदीस को अहमद ने रिवायत किया है, देखें सहीहुल जामे (हदीस संख्याः 3382)

17- पिता का अपने बच्चों के हक़ में दुआ करना अर्थात उसके लाभ के लिए दुआ करना, रोज़ेदार का अपने रोज़े की हातल में दुआ करना, और यात्री की दुआः

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रमाणित है कि आप ने फरमायाः ''तीन प्रकार की दुआयें अस्वीकार नहीं होतीं हैं : पिता का अपने बच्चे के हित के लिए दुआ करना, रोज़ेदार की दुआ और यात्री की दुआ।'' इस हदीस को बैहक़ी ने रिवायत किया है, और यह रिवायत सहीहुल जामे (हदीस संख्याः 2032) और सिलसिला सहीहा (हदीस संख्याः 1797) में मौजूद है।

18- पिता का अपने बच्चे के विरुद्ध दुआ करना अर्थात उसकी हानि के लिए दुआ करना (अथवा शाप करना):

सहीह हदीस में है किः ''तीन दुआएं स्वीकृत हैं : मजल़ूम की दुआ, यात्री की दुआ और पिता का अपने बच्चों के लिए शाप।'' इसे तिर्मिजी (हदीस संख्याः 1905) ने रिवायत किया है, तथा देखें : सहीह अदबुल मुफरद (हदीस संख्याः 372(

19- नेक औलाद की अपने माता पिता के लिए दुआ करनाः

जैसा की सहीह मुस्लिम की हदीस (संख्याः 1631)में आया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ''जब मनुष्य मर जाता है तो उसके कार्य का सिलसिला बंद हो जाता है सिवाय तीन चीज़ों केः जारी रहनेवाला सद्क़ा, या नेक औलाद जो उसके लिए दुआ करे या वह ज्ञान जिससे लोग लाभान्वित हों।''

20- ज़ुहर से पहले सूरज ढलने के बाद दुआ करनाः

अब्दुल्लाह बिन साइब रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सूरज ढलने के बाद ज़ुहर से पहले चार रकअत नमाज़ अदा करते थे, और आप ने फरमायाः ''यह एक ऐसी घड़ी है जिसमें आसमामन के द्वार खोले जाते हैं, और मैं चाहता हूँ कि उस समय मेरा कोई अच्छा कार्य ऊपर चढ़े।'' इसे तिर्मिज़ी ने रिवायत किया है और उसकी इसनाद सहीह है, तथा देखें – तख़्रीजुल मिशकात (1/337).

21- रात के समय आँख खुलने पर दुआ करना और इस बारे में वर्णित दुआ को पढ़ना। जैसा कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान हैः ''जो रात में बेदार हुआ, और उसने यह दुआ पढ़ीः

لاَ إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ وَحْدَهُ لاَ شَرِيكَ لَهُ، لَهُ المُلْكُ وَلَهُ الحَمْدُ، وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ، الحَمْدُ لِلَّهِ، وَسُبْحَانَ اللَّهِ، وَلاَ إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ، وَاللَّهُ أَكْبَرُ، وَلاَ حَوْلَ وَلاَ قُوَّةَ إِلَّا بِاللَّهِ

''अल्लाह के सिवा कोई वास्तविक माबूद नहीं, वह एकता और अकेला है, उसका कोई साझी नहीं, पूरा राज्य और सत्ता उसी के लिए है और उसी के लिए सब प्रशंसा है, और वह हर चीज़ पर सर्वशक्तिमाम है, सभी प्रशंसाए अल्लाह के लिए हैं, अल्लाह पवित्र है, अल्लाह के सिवा कोई सत्य माबूद नहीं, अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह की तौफीक़ के बिना किसी भलाई के करने की ताक़त है न किसी बुराई से बचने का सामर्थ्य है, फिर वह कहेःहे अल्लाह! मुझे माफ कर दे, या कोई और दुआ मांगे तो उसकी दुआ स्वीकार होगी, और अगर वुजू करके नमाज़ पढ़े तो उसकी नमाज़ स्वीकार होगी।'' इसे बुखारी (हदीस संख्याः 1154) ने रिवायत किया है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर