गुरुवार 20 जुमादा-1 1446 - 21 नवंबर 2024
हिन्दी

जिस व्यक्ति ने क़ुरआन का कुछ हिस्सा याद किया फिर उसे भूल गया उसे क्या करना चाहिए?

प्रश्न

यदि कोई व्यक्ति क़ुरआन से जो कुछ याद किया था उसे भूल गया फिर उसने पश्चाताप किया, तो क्या उसकी तौबा के स्वीकार होने के लिए उसके लिए उस हिस्से को दोहराना ज़रूरी है जिसे वह भूल गया है? और यदि उसके लिए दोहराना ज़रूरी है तो वह उन आयतों को कैसे दोहराए जिन्हें उसने यहाँ और वहाँ से बेतरतीब ढंग से याद किया था, और अब उनके स्थानों को वह याद नहीं रखता ह?जहाँ तक उन सूरतों का संबंध है जिन्हें उसने पूरे का पूरा याद किया है उसके बारे में उसे कोई समस्या नहीं है। और क्या उसे तुरंत देाहराना ज़रूरी है या कि उसे दीर्घकालिक तौर पर अवकाश के समय में दोहराने में कोई आपत्ति की बात नहीं है?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सर्व प्रथम:

इसमें कोई संदेह नहीं कि क़ुरआन का अध्ययन करना, उसका पाठ करना और उसे कंठस्थ करना सर्वश्रेष्ठ सत्कर्मों में से है। तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसके भूलने के डर से क़ुरआन का ध्यान रखने पर उभारा और ज़ोर दिया है ; और यह इस प्रकार कि वह याद किए हुए भाग को हमेशा दोहराता रहे औ बार-बार तिलावत करता रहे।

इसी तरह, क़ुरआन का भूल जाना निंदित कामों में से है ; क्योंकि इसमें कमी और अल्लाह की किाताब से विमुखता और उसे त्यागना पाया जाता है।

दूसरा:

विद्वानों ने क़ुरआन के भूलने के हुक्म के बारे में मतभेद किया है :

चुनाँचे कहा गया है कि : क़ुरआन को भूल जाना बड़ा गुनाह है।

तथा एक कथन यह है कि : वह अवज्ञा और पाप है, लेकिन वह प्रमुख पाप तक नहीं पहुँचता है।

तथा कहा गया है कि : यह एक आपदा है जो बंदे को उसके प्राण और उसके धर्म में पहुँचती है। या हो सकता हैकि वह अल्लाह की ओर से उसके कुछ कर्मों की सज़ा हो, अगरचे वह अपने आप में प्रमुख पाप या गुनाह नहीं है। यह इस मुद्दे में सबसे प्रत्यक्ष कथन है।

लेकिन क़ुरआन याद रखनेवाले के लिए शोभित नहीं है कि वह उसकी तिलावत करने से लापरवाही करे, या उसके देखभाल में कोताही से काम ले। बल्कि उसे चाहिए कि अपने लिए एक दैनिक वज़ीफा (नित्यकर्म) बना ले जो उसे याद करने पर उसकी मदद करे, और उसे भूलने में रूकावट बन जाए ; अज्र व सवाब प्राप्त करने और उसके प्रावधानों से लाभान्वित होने की आशा में।

तीसरा:

कुछ क़ुरआन का भूल जाना उसे परित्याग कर देने के परिणाम स्वरूप् होता है। और कुछ परित्याग कुछ से आसान (कमतर) होता है, जैसाकि इब्नुल क़ैयिम रहिमहुल्लाह ने ‘‘अल-फवाइद’’ (पृष्ठ 82) में फरमाया है, किन्तु उससे उपेक्षा करने और उसे छोड़कर दूसरी चीज़ों में व्यस्त होने के कारण उसे भुला देना, निःसंदेह एक आपदा है, और इस पर अज्र व सवाब के छूटने के साथ-साथ, कई आपदाए निष्कर्षित हो सकती हैं।

जिसने कुछ क़ुरआन याद किया फिर उसे भूल गया, उसे यह सलाह दी जाती है कि :

- जो सूरतें उसने याद की थीं उसे दोहराए ; ताकि उसे फिर से अच्छी तरह याद कर ले।

- वह नियमित रूप से उसे दोहराता रहे, ताकि वह उसे फिर से न भूल जाए।

- कंठस्थ करना और दोहराना किसी अच्छे और कुशल अध्यापक के हाथ पर होना चाहिए।

- उसने जो बड़े हिस्से जैसे पारे, या हिज़्ब आदि याद किए थे उसे दोहराए, और इस बात का भरपूर प्रयास करे कि पूरी सूरत को याद करले। तो इस तरह याद किए हुए हिस्से को सबसे पहले दोहराना और उसके याद को बहाल करना उसके लिए पूरी सूरत को याद करने पर प्रोत्साहित करने वाला होगा।

- रही बात उन छोटे हिस्सों को खोजकर दोहराने की जिन्हें उसने याद किया था फिर भूल गया, जैस दो या तीन आयतें, इत्यादि : तो वह उसपर ध्यान नहीं देगा, और उसमें से जो भूल गया था उसे याद करने का कष्ट नहीं करेगा। उसे चाहिए कि जो बड़े हिस्से और सूरतें उसने याद करके भुला दिए हैं, उन्हें दोहराने में सक्रिय रहे। तथा उसके ऊपर उन छोटे हिस्सों के कंठस्थ को बहाल न करने में कोई गुनाह नहीं है जिनमें से कुछ को हो सकता है वह भूल गया हो। तथा उसे अपनी स्थिति को देखना चाहिए। उससे जो कुछ पाप हुआ है उसके लिए अल्लाह से क्षमायाचना करे और उससे तौबा (पश्चाताप) करे। और उससे जो कोताही और कमी हुई है उसकी भरपाई करे। तथा उससे जो आखिरत (परलोक) के मामले से उपेक्षा और दुनिया के मामलों पर ध्यान केंद्रित करना पाया गया है तो वह आखिरत के लिए उठ खड़ा हो और उसपर ध्यान केंद्रित करे ; क्योंकि यही अच्छा और अधिक स्थायी (बाक़ी रहने वाला) है।

फिर उसके लिए अधिक योग्य और सबसे बेहतर यह है कि वह क़ुरआन से याद किए हुए हिस्से को बहाल करने का प्रयास तुरंत करे, क्योंकि उस समय साहस व उत्साह पाया जाता है यदि वह उसके लिए स्फूर्ति व सक्रियता से काम लेता है। तथा विलंब करने और आज-कल पर टालने से उसके अंदर उदासीनता न आने पाए। इब्नुल मुबारक ने ‘‘अज़-ज़ुह्द’’ (1/469) में इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : इन दिलों की इच्छा, अभिरूचि और अग्रसरता होती है, तथा इनकी शिथिलता, आलस्य और अवनति भी होती है। अतः तुम इनकी इच्छा, अभिरूचि और अग्रसरता के समय इन्हें ले लो, और इनकी शिथिलता, आलस्य और अवनति के समय इन्हें छोड़ दो।''

इसमें कोई शक नहीं कि जिसने लापरवाही की वजह से क़ुरआन को भुला दिया है और क़ुरआन उसके स्मरण से विचलित हो गया है, उसकी भावना और उसका क़ुरआन को दोहराने की विधि के बारे में प्रश्न करना, यह गफ़लत व लापरवाही के बाद उसके दिल की अग्रसरता और जागरण का प्रतीक है। और जिसकी यह स्थिति हो, उसके लिए बेहतर यही है कि वह तुरंत क़ुरआन को दोहराने में सक्रिय हो जाए और उसे विलंब न करे।

यदि वह अधिक कार्यो, ज़िम्मेदारियों और बाल-बच्चों के लिए जीविका कमाने, इत्यादि की वजह से, केवल अपने खाली समय में क़ुरआन को दोहराने में सक्षम है : तो उसके ऊपर कोई आपत्ति की बात नहीं है।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर