हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम :
अल-फ़ुजूर (अनैतिकता) : पश्चाताप और अल्लाह की ओर पलटने की इच्छा के बिना पाप के लिए उठ खड़ा होना और उसमें विस्तार से काम लेना और हर कुरूप चीज़ को करना।
अरबी भाषा के ज्ञानियों ने कहा : "फुजूर शब्द का मूल अर्थ संतुलित मार्ग से हटना है।"
"शर्ह अन्-नववी अला मुस्लिम" (2/48)
हाफिज़ रहिमहुल्लाह ने कहा :
''फ़ुजूर'' बहुत अधिक अवज्ञा (पाप) करने को कहते हैं, इसे पानी के फूटने से समानता दी गई है, इसे झूठ बोलने पर भी बोला जाता है।"
''फत्हुल-बारी (1/165)'' से उद्धरण समाप्त हुआ।
ज़ुबैदी रहिमहुल्लाह ने कहा :
"फ़ज्र का मूल अर्थ चीरना (फाड़ना) है, फिर उसका प्रयोग अवज्ञाओं, पापों, वर्जनाओं, व्यभिचार में लिप्त होने और हर कुरूप चीज़ को करने में किया जाने लाग।"। ''ताजुल अरूस'' (13/299) से समाप्त हुआ।
तथा राग़िब अल-असफ़हानी रहिमहुल्लाह ने फरमाया : ''फ़ज्र का मूल अर्थ चीरना (फाड़ना) है। अतः फुजूर का अर्थ है धार्मिकता (सत्यनिष्ठा) के पर्दे (कवर) को फाड़ना, तथा इसे भ्रष्टाचार की ओर प्रवृत्ति, तथा पाप में लिप्त होने पर बोला जाता है, यह बुराई के लिए एक व्यापक संज्ञा है।''
''फत्हुल-बारी (10/508)'' से उद्धरण समाप्त हुआ।
दूसरा:
बातचीत में अनैतिकता झूठ बोलने, दुर्वचन व अपशब्द और उसमें विस्तार से काम लेने के द्वारा होती है।
बुखारी (हदीस संख्या : 6094) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 2607) ने इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया :
''तुम सत्यता को अपनाओ, क्योंकि सत्यता धार्मिकता (नेकी) की ओर ले जाती है, और धार्मिकता (नेकी) स्वर्ग की ओर ले जाती है, तथा मनुष्य निरंतर सत्यता का पालन करता रहता है और सत्यता की चाहत में लगा रहता है यहाँ तक कि अल्लाह के यहाँ सिद्दीक़ (सत्यवान) लिख दिया जाता है।
तथा तुम झूठ से बचो, क्योंकि झूठ अनैतिकता की ओर ले जाता है, और अनैतिकता अग्नि (नरक) का मार्ग दर्शाती है। और आदमी बराबर झूठ बोलता रहता है और झूठ की तलाश में रहता है यहाँ तक कि वह अल्लाह के निकट बड़ा झूठा लिख दिया जाता है।''
नववी रहिमहुल्लाह ने फरमाया :
"विद्वानों ने कहा: इसका मतलब यह है कि सच्चाई हर निंदात्मक चीज़ से पवित्र अच्छे काम की ओर मार्गदर्शन करती है, और बिर्र सभी अच्छाई के लिए एक व्यापक संज्ञा है।
यह भी कहा गया है कि : बिर्र स्वर्ग का नाम है। तथा वह सत्कर्म (अच्छे काम) और स्वर्ग को भी सम्मिलत हो सकता है।
जबकि झूठ बोलना अनैतिकता की ओर लो जाता है, और वह सीधे मार्ग से विचलित होने का नाम है। एक कथन यह है कि उसका मतलब पापों में लिप्त होना है।'' उद्धरण समाप्त हुआ।
तीसरा:
बातचीत में अनैतिकता का उपचार सच्ची और पक्की तौबा करने के साथ-साथ सच्चाई तलाश करने, सच्च बोलने, अधिक से अधिक अल्लाह का ज़िक्र करने और उसकी पुस्तक का पाठ करने से होता है।
मनुष्य जब अपनी ज़ुबान को सच्चाई और अल्लाह के ज़िक्र में व्यस्त रखता है, तो उसे झूठ बोलने और अश्लीलता से सुरक्षित कर लेता है।
जबकि सामान्य रूप से अनैतिकता का उपचार निम्न प्रकार से होता है :
- सबसे पहले सच्ची और पक्की तौबा (पश्चाताप) करना, फिर अल्लाह की आज्ञाकारिता पर सुदृढ़ हो जाना, उसके ज़िक्र और उसकी किताब के पाठ में व्यस्त रहना, अच्छे और सदाचारी लोगों की संगत अपनाना तथा दुष्ट और दुराचारी लोगों की संगत से दूर रहना।
- फिर सदाचारी लोगों की स्थितियों में विचार करना और उनका अनुसरण करना, तथा भ्रष्टाचारियों और पापियों की स्थितियों में विचार करना और उनके रास्ते से दूर रहना, और उनकी दुर्दशाओं और बुरे परिणामों से सीख लेना चाहिए, क्योंकि कम ही कोई आदमी अपनी ज़ुबान या गुप्तांग या किसी अन्य चीज़ के द्वारा पाप करता है, मगर वह अपमान और शिक्षाप्रद सज़ा का कारण होता है।
- तथा हम मुत्तक़ियों के गुणों जैसे- शिष्टाचार, ज़ुबान की सच्चाई, सतीत्व की रक्षा, दृष्टि की रक्षा, अच्छा रहनसहन इत्यादि की पहचान करें और उन्हें अपने आप में प्राप्त करने का प्रयास करें।
- और उसके बाद हम गुप्त वर्जित वासना को उत्तेजित करने वाली, और हराम चीज़ों के लिए आमंत्रित करने वाली चीज़ों जैसे- दृष्टि को आज़ाद छोड़ने, फिल्मों और नाटकों के देखने, बेरोज़गारों में से दुष्ट और उपद्रवी लोगों की संगत अपनाने से दूर रहैं।
किसी भी स्थिति में :
अतः जो आदमी अच्छे स्वभावों, ईमान वालों (विश्वासियों) के गुणों और उनकी संगत में व्यस्त रहा, और वह पथभ्रष्टता, निषिद्ध इच्छाओं, तथा घृणित कथनों और कार्यों और ऐसा करने वाले लोगों से खुद को दूर रखाः तो उसकी स्थिति ठीक हो जाएगी और उसका मामला सुधर जाएगा।
और जो व्यक्ति उन पापों में से किसी चीज़ से पीड़ित है तो उसे चाहिए कि सच्ची और पक्की तौबा करने में पहल करे, अल्लाह की शरीअत पर सुदृढ़ रहे, तौबा (पश्चाताप) को विलंब न करे और उसमें टालमटोल से काम न ले, तथा पाप में सीमा से आगे न बढ़े और उसके अधीन हो जाए। क्योंकि यह उसे पाप और अवज्ञा से दूर रखेगा।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।