हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
यदि रोज़ेदार ने सूरज डूबने के बारे में शक करने की हालत में इफतार कर लिया है तो वह उस दिन के रोज़े की कज़ा करेगा, अल्लाह तआला के इस फरमान के आधार पर कि :
ثُمَّ أَتِمُّوا الصِّيَامَ إِلَى اللَّيْلِ [البقرة :187]
“फिर रात तक रोज़े को पूरा करो।” (सूरतुल बकरा : 187).
और रात सूरज डूबने से शुरू होती है, जबकि उसे विश्वास था कि वह दिन में है, अतः वह इफ्तार नहीं करेगा सिवाय इसके कि उसे सूरज के डूबने का यक़ीन हो जाए या उसके गुमान पर गालिब आ जाए, क्योंकि मूल बात दिन का बाक़ी रहना है, इसलिए इस यक़ीन से दूसरी ओर किसी यक़ीन या अधिक गुमान के द्वारा ही स्थानांतरित हुआ जायेगा।
जबकि रोज़ेदार यदि फज्र के उदय होने में शक करते हुए खा या पी लेता है तो क़ज़ा नहीं करेगा, क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है :
وَكُلُوا وَاشْرَبُوا حَتَّى يَتَبَيَّنَ لَكُمُ الْخَيْطُ الْأَبْيَضُ مِنَ الْخَيْطِ الْأَسْوَدِ مِنَ الْفَجْرِ [البقرة : 187].
“और तुम खाते पीते रहो यहाँ तक कि प्रभात (फज्र) का सफेद धागा रात के काले धागे से प्रत्यक्ष हो जाए।” (सूरतुल बक़रा : 187)
तो अल्लाह तआला ने फरमाया है कि : “यहाँ तक कि तुम्हारे लिए स्पष्ट हो जाए।” (सूरतुल बक़रा : 187) जिससे पता चलता है कि फज्र के निकलने का यक़ीन होने से पहले तक खाना पीना जायज़ है, और इसलिए कि उसे यक़ीन था कि वह रात में है इसलिए उसके लिए खाना हराम नहीं है सिवाय इसके कि उसे यक़ीन हो जाए कि फज्र उदय हो चुका है, क्योंकि मूल सिद्धांत रात का बाक़ी रहना है।
तथा प्रश्न संख्या (38543) का उत्तर देखें।