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कुछ लोग मशाइर मुक़द्दसा (पवित्र स्थालों) में तस्वीरें लेते हैं, और कभी कभी तो आदमी केवल तस्वीर लेने के लिए ही अपने दोनों हाथों को उठाता है, तो क्या यह जायज़ है ॽ और क्या इससे हज्ज में खराबी पैदा होती है या नहीं ॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
“हाजियों के लिए इबादत की जगह में तस्वीरें लेना दो रूप (कारणों) से जायज़ नहीं है:
पहला : वे लोग ऐसा तस्वीरों को सुरक्षित रखने और यादगार के लिए करते हैं, और हर वह तस्वीर जिसका उद्देश्य यादगार के लिए उसे सुरक्षित रखना है, वह हराम (निषिद्ध) है।
दूसरा : वह आम तौर से रियाकारी (दिखावा व पाखंड) से सुरक्षित नहीं होता है, क्योंकि इंसान इसलिए तस्वीर लेता है ताकि लोगों को दिखाए कि उसने हज्ज किया है। इसीलिए वह ऐसे ही करता है जैसाकि प्रश्नकर्ता ने कहा है कि वह अपने दोनों हाथों को दुआ के लिए उठाता है, हालांकि वह दुआ नहीं करता है बल्कि तस्वीर खिंचवाने के लिए ऐसा करता है।
लेकिन यदि उसे इसकी आवश्यकता है, क्योंकि यह आदमी किसी व्यक्ति का प्रतिनिधि था तो उसने सोचा कि मैं तस्वीर ले लेता हूँ ताकि इस बात को सिद्ध कर सकूँ कि मैं ने हज्ज किया है, फिर जब वह उस आदमी के पास पहुँचा जिसने उसे प्रतिनिधि बनाया था तो तस्वीर को फाड़ दिया, तो इसमें कोई पाप नहीं है ; क्योंकि आवश्यकता इसकी अपेक्षा करती है, और उसका मक़सद मात्र यादगार, या अधिग्रहण नहीं है।” शैख उसैमीन की बात समाप्त हुई।
‘‘मजमूओ फतावा इब्ने उसैमीन’’ (24/70, 71).