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हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।यदि आप लोगों ने मीक़ात के गुज़र जाने के बाद एहराम बांधा है, तो आप के ऊपर अपनी तरफ से एक बकरी और अपनी पत्नी की ओर से एक अन्य बकरी ज़बह करना अनिवार्य है, उन दोनों को मक्का में ज़बह किया जायेगा और वहाँ के मिसकीनों (गरीबों) में वितरित कर दिया जायेगा।
“अल-मौसूअतल फिक़्हिय्या” (22/140) में आया है कि :
“जिस व्यक्ति ने बिना एहराम के मीक़ात को पार कर लिया तो उसके ऊपर अनिवार्य है कि वह उसकी तरफ वापस लौट आए ताकि वहाँ से वह एहराम बांधे यदि ऐसा करना उसके लिए संभव है। अगर वह उसकी ओर वापस लौट आए तो वहाँ से एहराम बांधेगा और उसके ऊपर कोई दम (क़ुर्बानी) अनिवार्य नहीं है, इस बात पर सर्वसहमति है, क्योंकि उसने उस मीक़ात से एहराम बांधा है जहाँ से उसे एहराम बांधने का आदेश दिया गया है।
और यदि वह मीक़ात से आगे बढ़ गया और (वहीं से) एहराम बांधा तो उसके ऊपर एक दम (क़ुर्बानी) अनिवार्य है, चाहे वह मीक़ात की तरफ वापस आए या वापस न आए, यह मालिकिया और हनाबिला के निकट है।” अंत हुआ।
तथा शैख इब्न बाज़ रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया : हज्ज व उम्रा में मीक़ात से आगे बढ़ने का क्या हुक्म है ॽ
तो उन्हों ने उत्तर दिया :
“मुसलमान के लिए यदि वह हज्ज या उम्रा का इरादा रखता है तो बिना एहराम बांधे हुए उस मीक़ात से आगे बढ़ना जाइज़ नहीं है जिस से वह गुज़र रहा है।
यदि वह बिना एहराम बांधे हुए उस से आगे बढ़ गया तो उसके लिए उसकी तरफ वापस लौटना और वहाँ से एहराम बांधना अनिवार्य है।
यदि उसने ऐसा नहीं किया और उसे छोड़कर उसके अंदर किसी अन्य स्थान से या मक्का से निकटतम किसी जगह से एहराम बांधा तो उसके ऊपर अधिकांश विद्वानों के निकट एक दम (क़ुर्बानी) अनिवार्य है, जिसे मक्का में ज़बह किया जायेगा और गरीबों में वितरित कर दिया जायेगा, क्योंकि उसने एक वाजिब को छोड़ दिया और वह शरई मीक़ात से एहराम बांधना है।” संक्षेप के साथ अंत हुआ।
“मजमूओ फतावा इब्न बाज़” (17/19).
तथा शैख इब्न उसैमीन रहिमहुल्लाह - अल्लाह उन पर दया करे - से प्रश्न किया गया : मैं उम्रा की नीयत से रियाद से जद्दा जाने वाले विमान पर सवार हुआ, फिर विमान के पायलट ने घोषणा किया कि पच्चीस मिनट के बाद हम मीक़ात के ऊपर से गुज़रें गे, किंतु मैं मीक़ात के ऊपर गुज़रने के समय से चार या पाँच मिनट गाफिल हो गया और हमने उम्रा के मनासिक (कार्य) पूरे कर लिए, तो ऐ आदरणीय शैख, अब क्या हुक्म है ॽ
तो उन्हों ने उत्तर दिया :
“विद्वानों ने जो उल्लिखित किया है उसके अनुसार हुक्म यह है कि इस प्रश्न करने वाले के लिए ज़रूरी है कि मक्का में एह बकरी ज़़बह करे और उसे गरीबों में वितरित कर दे, यदि वह न पाए (अर्थात उस पर सक्षम न हो) तो अल्लाह तआला किसी प्राणी को उसकी क्षमता से अधिक भार नहीं डालता है।
लेकिन मैं भाईयों को नसीहत करता हूँ कि : जब पायलट यह घोषणा कर दे कि पच्चीस मिनट या दस मिनट बाक़ी रह गए हैं तो वे एहराम बांध लें ; क्योंकि कुछ लोग इस घोषणा के बाद सो जाते हैं और उन्हें उस समय पता चलता है जब वे जद्दा हवाई अड्डा के निकट पहुँच जाते है, और यदि आप ने मीक़ात से पाँच मिनट या दस मिनट या एक घंटा या दो घंटे पहले एहराम बांध लिए तो आप के ऊपर कुछ भी नहीं है, बल्कि वर्जित और निषिद्ध चीज़ यह है कि आप एहराम को इतना विलंब कर दें कि मीक़ात से आगे बढ़ जायें, और विमान के लिए पाँच मिनट एक लंबी दूरी है। इसलिए मैं प्रश्न करने वाले भाई से कहूँगा कि: आप अपने में से हर एक की तरफ से जिसने मीक़ात के बाद एहराम बांधा है मक्का में एक फिद्या ज़बह करें और उसे गरीबों में वितरित कर दें, परंतु भविष्य में आप लोग सावधान रहें, जब विमान का पायलट एलान कर दे तो मामले में विस्तार है आप एहराम बांध लें, ताकि यदि आप लोग इसके बाद सो जायें तो आप को कोई हानि नहीं पहुँचे गी।” अंत हुआ।
“अल्लिक़ाउश शह्री” (मासिक सभा) (संख्या/56, प्रश्न संख्या/4).