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हज्रे अस्वद को चूमने की हिकमत

19-07-2019

प्रश्न 118085

क्या हज्रे अस्वद (काले पत्थर) को चूमने की बुद्धिमत्ता (हिकमत) उससे बरकत लेना हैॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

“तवाफ़ की हिकमत को बयात करते हुए नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “अल्लाह के घर का तवाफ, सफ़ा एवं मर्वा के बीच सई करना और जमरात को कंकड़ी मारना अल्लाह के स्मरण को स्थापित करने के लिए निर्धारित किया गया है।” चुनाँचे तवाफ करने वाला जो अल्लाह के घर का चक्कर लगाता है, उसके दिल में अल्लाह का इतना सम्मान होता है जो उसे अल्लाह का ज़िक्र करने वाला बना देता है, तथा चलने, चुंबन करने, हज्रे अस्वद तथा यमनी कोने को छूने, और हज्रे अस्वद की ओर संकेत करने के साथ उसकी गतिविधियाँ अल्लाह तआला का स्मरण (ज़िक्र) हैं क्योंकि वे अल्लाह तआला की इबादत में से हैं; और सभी इबादतें सामान्य अर्थ में अल्लाह तआला का स्मरण (ज़िक्र) हैं। वह अपनी ज़बान से जो तकबीर, ज़िक्र और दुआ के शब्द बोलता है तो यह स्पष्ट है कि वह अल्लाह के ज़िक्र व स्मरण में से है। रही बात हज्रे अस्वद का चुंबन करने की तो वह भी इबादत है क्योंकि मनुष्य एक ऐसे पत्थर का चुंबन करता है जिससे उसका इसके सिवा कोई संबंध नहीं कि वह उसका सम्मान करके अल्लाह की उपासना करता है, और उसमें अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अनुसरण और पालन करता है। जैसाकि यह सिद्ध है कि अमीरुल-मोमिनीन (विश्वासियों के कमांडर) उमर बिन अल-खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु ने हज्रे अस्वद का चुंबन करते हुए फरमाया : "मुझे पता है कि तू एक पत्थर है जो न नुक़सान पहुँचा सकता है और न लाभ पहुँचा सकता है। यदि मैंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को तुझे चुंबन करते हुए न देखा होता तो मैं तुझे चुंबन नहीं करता।”

तथा कुछ अज्ञानी लोग जो यह सोचते हैं कि इसका उद्देश्य उससे बरकत प्राप्त करना है, तो उसका कोई आधार नहीं है, इसलिए वह असत्य और अमान्य है।

तथा कुछ विधर्मियों (पाषंडियों) का यह कहना कि अल्लाह के घर का तवाफ़, उनके औलिया (पूर्वजों) की क़ब्रों पर तवाफ़ करने की तरह है और यह कि वह मूर्तिपूजा है, तो यह उनकी नास्तिकता (ईश्वरविहीनता) और विधर्म में से है। क्योंकि विश्वासियों ने उसका तवाफ केवल अल्लाह तआला की आज्ञा से किया है, और जो कुछ अल्लाह की आज्ञा से हो उसका पालन करना अल्लाह तआला की उपासना व आराधना है।

क्या आप नहीं देखते हैं कि अल्लाह के अलावा किसी अन्य के लिए सज्दा करना बड़ा शिर्क (बहुदेववाद) है, लेकिन जब अल्लाह ने फरिश्तों को आदम को सज्दा करने के लिए आदेश दिया, तो आदम को सज्दा करना अल्लाह तआला की उपासना व आराधना बन गया और सज्दा न करना उसके साथ कुफ्र (अविश्वास) ठहरा।

अतः अल्लाह के घर का तवाफ़ करना सबसे महत्वपूर्ण इबादतों में से है, और वह हज्ज का एक रुक्न (स्तंभ) है, और हज्ज इस्लाम के स्तंभों में से एक स्तंभ है। यही वजह है कि बैतुल्लाह का तवाफ़ करने वाला, जबकि मताफ शांत हो, तवाफ़ का वह आनंद पाता और उसका दिल अपने पालनहार की वह निकटता महसूस करता है जो उसके पद की ऊँचाई और उसकी प्रतिष्ठा दर्शाता है। और अल्लाह ही है जिसकी मदद मांगी जाती है।” अंत

माननीय शैख़ मुहम्मद बिन उसैमीन रहिमहुल्लाह।

“फ़तावा अल-अक़ीदा” (पृष्ठः 28, 29).

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आस्था हज्ज और उम्रा
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