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उन काफिरों का अंजाम जिन्हें इस्लाम का निमंत्रण नहीं पहुँचा

02-10-2009

प्रश्न 1244

उन काफिरों का अंजाम क्या है जिन्हें इस्लाम का निमंत्रण नहीं पहुँचा है?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल का यह न्याय है कि वह किसी क़ौम को संदेश पहुँचाने और हुज्जत स्थापित करने के बाद ही सज़ा देता है, और तुम्हारा पालनहार किसी पर ज़ुल्म नहीं करता, अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल का फरमान है : "और हम सज़ा नहीं देते यहाँ तक कि हम किसी संदेष्टा को भेज दें।" (सूरतुल इस्राः 15) इब्ने कसीर रहिमहुल्लाह इस आयत की व्याख्या करते हुए कहते हैं : अल्लाह तआला का कथन : "और हम सज़ा नहीं देते यहाँ तक कि हम किसी संदेष्टा को भेज दें।" अल्लाह तआला के न्याय की सूचना देता है, और यह कि अल्लाह किसी को सज़ा नहीं देता मगर उसकी ओर सन्देष्टा को भेजकर उस पर हुज्जत क़ायम करने के बाद, जैसाकि अल्लाह तआला का फरमान है : "जब कभी उसमें कोई गिरोह डाला जायेगा उस से नरक के दरोगा पूछेंगे कि क्या तुम्हारे पास कोई डराने वाला नहीं आया था? वे जवाब देंगे कि बेशक आया तो था, लेकिन हम ने उसे झुठलाया और कहा कि अल्लाह ने कुछ भी नाज़िल नहीं किया, तुम बहुत बड़ी गुमराही में ही हो।" (सूरतुल मुल्क : 8-9)

इसी तरह अल्लाह तआला का यह फरमान : "और काफिरों के झुण्ड के झुंड नरक की तरफ हाँके जायेंगे, जब वे उसके क़रीब पहुँच जायेंगे, उसके दरवाज़े उनके लिए खोल दिये जायेंगे और वहाँ के रक्षक (निगराँ) उन से पूछेंगे कि क्या तुम्हारे पास तुम में से रसूल (सन्देष्टा) नहीं आये थे? जो तुम पर तुम्हारे रब की आयतें पढ़ते थे और तुम्हें इस दिन के भेंट से सावधान करते थे, ये जवाब देंगे कि हाँ, क्यों नहीं, लेकिन अज़ाब का हुक्म काफिरों पर साबित हो गया।" (सूरतुज़्ज़ुमर : 71)

जिस आदमी ने इस्लाम के बारे में और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के बारे में नहीं सुना है और उसे शुद्ध रूप से इस्लाम की दावत (निमंत्रण) नहीं पहुँची है, तो अल्लाह तआला उसे कुफ्र की हालत में मरने पर सज़ा नहीं देगा। यदि कहा जाये कि: तो फिर उसका अंजाम और ठिकाना क्या है?तो उसका उत्तर यह है किः अल्लाह तआला क़ियामत के दिन उसकी परीक्षा लेगा, अगर उसने आज्ञा पालन किया तो स्वर्ग में जायेगा, और यदि नाफरमानी किया तो नरक में जायेगा, इसका प्रमाण अल-अस्वद बिन सरीअ़ की हदीस है कि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "चार लोग क़ियामत के दिन बहस करेंगे, एक बहरा आदमी जो कुछ नहीं सुनता, एक बेवक़ूफ आदमी, और एक बूढ़ा आदमी और एक वह आदमी जो दो पैगंबरों के बीच की अवधि में मर गया हो। बहरा आदमी कहेगा कि मेरे रब इस्लाम इस हाल में आया कि मैं कुछ सुनता ही नहीं था। बेवक़ूफ आदमी कहेगा कि इस्लाम इस हाल में आया कि बच्चे मुझे मेंगनी से मारते थे, और बूढ़ा आदमी कहेगा कि मेरे रब इस्लाम इस हाल में आया कि मैं कुछ समझता बूझता ही नहीं था, और दो नबियों के बीच की अवधि में मरने वाला आदमी कहेगा कि मेरे रब मेरे पास तेरा कोई सन्देष्टा नहीं आया। तो अल्लाह तआला उनसे अह्द व पैमान (प्रतिज्ञा) लेगाकि वे उसकी अवश्य आज्ञा पालन करेंगे। फिर उनके पास सूचना भेजे गा कि जहन्नम में दाखिल हो जाओ। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "उस अस्तित्व की क़सम जिसके हाथ में मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की जान है, यदि वे उसमें प्रवेश कर लेते हैं तो वह उनके लिए ठंडी और शांति वाली हो जायेगी।

और एक रिवायत में है कि : "जो उस में दाखिल हो गया उस पर वह ठंडी और शांति वाली बन जायेगी, और जो उसमे दाखिल नहीं होगा, वह उसकी तरफ घसीट लिया जायेगा ..."इसे इमाम अहमद और इब्ने हिब्बान ने रिवायत किया है, और अल्बानी ने सहीहुल जामिअ़ हदीस संख्या : 881 के अंतरगत सहीह कहा है।

अत: हर वह व्यक्ति जिसे उचित ढंग से इस्लाम की दावत पहुँच चुकी है उस पर हुज्जत क़ायम हो चुकी है, और जो इस हाल में मरा है कि उसे दावत नहीं पहुँची या अनुचित रूप से पहुँची है तो उसका मामला अल्लाह के हवाले है, वह अपनी सृष्टि को सर्वश्रेष्ठ जानता है और तुम्हारा रब किसी पर अत्याचार नहीं करता है, और अल्लाह तआला बन्दों को जानने वाला है।

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