हम आशा करते हैं कि आप साइट का समर्थन करने के लिए उदारता के साथ अनुदान करेंगे। ताकि, अल्लाह की इच्छा से, आपकी साइट – वेबसाइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर - इस्लाम और मुसलमानों की सेवा जारी रखने में सक्षम हो सके।
जमरात को कंकरी मारने का पवित्र क़ुरआन और हदीस से क्या प्रमाण हैॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
जमरात को कंकरी मारना हज्ज के अनिवार्य अनुष्ठानों में से एक है और यह हर उस व्यक्ति के लिए निर्धारित है, जो इस महान इबादत (हज्ज) को करना चाहता है। इस महान अनुष्ठान का नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है, जिसकी प्रामाणिकता पर विद्वानों का इत्तिफ़ाक़ है।
इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने (मुज़दलिफ़ा से लौटते समय) फ़ज़्ल रज़ियल्लाहु अन्हु को (सवारी पर) अपने पीछे बैठाया था। तो फ़ज़्ल रज़ियल्लाहु अन्हु ने बताया कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जमरह को कंकरी मारने तक निरंतर तलबियह (लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक) पुकारते रहे।
इस हदीस को बुख़ारी (हदीस संख्या : 1685) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1282) ने रिवायत किया है।
अब्दुल्लाह (बिन मसऊद) रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि वह जमरह कुब्रा (बड़े जमरह) के पास पहुँचे, तो का’बा को अपनी बाईं ओर और मिना को अपनी दाईं ओर किया और सात कंकरियाँ मारीं, और फरमाया : जिनपर सूरतुल-बक़रा नाज़िल हुई थी उन्होंने इसी तरह कंकरी मारी थी।” (अर्थात रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम)।
इसे बुख़ारी (हदीस संख्या : 1748) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1296) ने रिवायत किया है।
इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि वह (खैफ़ मस्जिद के) निकटवर्ती जमरह (यानी पहले जमरह) को सात कंकरियाँ मारते थे। हर कंकरी पर अल्लाहु अकबर कहते थे। फिर वह आगे बढ़ते यहाँ तक कि एक समतल ज़मीन पर पहुँचकर क़िबला की ओर मुख करके खड़े हो जाते। इसी तरह बहुत देर तक खड़े रहते और अपने दोनों हाथों को उठाकर दुआ करते। फिर वह बीच वाले जमरह को कंकरी मारते। फिर वह बाईं ओर बढ़ते और एक समतल ज़मीन पर क़िबला की ओर मुख करके खड़ा हो जाते। वहाँ भी वह काफी देर तक खड़े रहते और अपने दोनों हाथों को उठाकर दुआ करते रहते। फिर वह जमरतुल-अक़बा को घाटी के निचान से कंकरी मारते थे, परंतु वह उसके पास खड़े नहीं होते थे। फिर वह प्रस्थान करते और कहते : मैंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को इसी तरह करते देखा है।”
इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1751) ने रिवायत किया है।
इब्नुल-मुंज़िर रहिमहुल्लाह ने कहा :
“वे (विद्वान) सर्वसम्मति से सहमत हैं कि जो कोई भी तशरीक़ के दिनों में जमरात को सूरज ढलने के बाद कंकरी मारता है, वह उसके लिए पर्याप्त है।”
इब्नुल-मुंज़िर की किताब “अल-इज्मा'” (11)।
इब्ने ह़ज़्म रहिमहुल्लाह ने कहा :
“वे (विद्वान) इस बात पर सहमत हैं कि क़ुर्बानी के बाद के तीन दिन जमरात को कंकरी मारने के दिन हैं और जिसने इन दिनों में सूरज ढलने के बाद उन्हें कंकरियाँ मारीं, वह उसके लिए पर्याप्त है।”
इब्ने हज़्म की किताब “मरातिब अल-इज्मा” (46)।
इब्ने क़ुदामा रहिमहुल्लाह ने कहा :
“जब वह मिना पहुँचेगा, तो वह जमरतुल-अक़बा से शुरू करेगा, जो कि मिना की ओर से जमरात में सबसे अंतिम जमरह है और मक्का की ओर से पहला जमरह है। और यह अल-अक़बा के पास है, इसीलिए इसे जमरतुल-अक़बा कहा जाता है। वह उसे सात कंकरियाँ मारेगा, हर कंकरी के साथ ‘अल्लाहु अकबर’ कहेगा और घाटी के बीच में जाकर क़िबला की ओर मुख करके खड़ा होगा। फिर वहाँ से प्रस्थान कर जाएगा और वहाँ खड़ा नहीं होगा। यह उन विद्वानों की बातों का सारांश है जिनके कथन को हम जानते हैं।” उद्धरण समाप्त हुआ।
“अल-मुग़नी” (3/218)।
अबू हामिद अल-ग़ज़ाली रहिमहुल्लाह ने कहा :
“जहाँ तक जमरात को कंकरी मारने की बात है, तो इससे आपका उद्देश्य आज्ञा का पालन करना होना चाहिए, अल्लाह के प्रति गुलामी और दासता (बंदगी) प्रकट करते हुए, तथा मात्र अनुपालन के लिए उठ खड़े होकर, जिसमें बुद्धि और आत्मा का कोई हिस्सा (यानी किसी तर्क का एतिबार और अहंकार की तृप्ति) न हो। फिर उससे आपका उद्देश्य इबराहीम अलैहिस्सलाम की समानता अपनाना और नकल करना हो, जब अल्लाह द्वारा शापित इबलीस उस स्थान पर उनके सामने प्रकट हुआ, ताकि उनके ह्ज्ज के बारे में उनके मन में संदेह (भ्रम) पैदा करे या उन्हें अवज्ञा करने के लिए प्रेरित करे। तो अल्लाह ने उन्हें इस बात का आदेश दिया कि उसे दूर भगाने और उसकी आशाओं पर पानी फेरने के लिए, उसे पत्थर से मारें। यदि आपके दिल में यह बात आए कि शैतान उनके सामने प्रकट हुआ था और उन्होंने उसे देखा था। इसलिए उन्होंने उसे पत्थर मारा था। लेकिन जहाँ तक मेरा संबंध है, तो मुझे शैतान दिखाई नहीं देता। तो जान लो कि यह विचार शैतान की ओर से है और वही है जिसने इसे आपके दिले में डाला है, ताकि कंकरी मारने में आपके दृढ़ संकल्प को कम कर दे और आप यह कल्पना करने लगें कि यह एक ऐसा काम है जिसमें कोई फायदा नहीं है (यानी यह एक बेकार कार्य है) और यह खेलने के समान है, इसलिए तुम इसमें क्यों लिप्त होते होॽ तो आप शैतान के नापसंद करने के बावजूद, कंकरी मारने में गंभीरता और तत्परता दिखाते हुए उसे अपने दिमाग से निकाल दें। तथा आप जान लें कि आप देखने में तो अक़बा (जमरह) को कंकरी मार रहे होते हैं, लेकिन वास्तव में आप शैतान के मुँह पर कंकरी फेंक रहे होते हैं और आप उसके साथ उसकी कमर तोड़ रहे होते हैं। क्योंकि शैतान को अपमानित और रुसवा करना, मात्र अल्लाह के आदेश का सम्मान करते हुए उसकी आज्ञा का पालन करने से ही हो सकता है, जिसमें आत्मा और बुद्धि (तर्क) का कोई हिस्सा न हो।” उद्धरण समाप्त हुआ।
“एह्याओ उलूमिद्दीन” (1/270)
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।