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क़सम के कफ़्फ़ारा के रोज़े में निरंतरता शर्त नहीं है

26-07-2022

प्रश्न 12700

क्या क़सम के कफ़्फ़ारा में तीन दिन के रोज़े का लगातार होना ज़रूरी हैॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

क़सम के कफ़्फ़ारा में तीन दिन के रोज़ों का लगातार होना ज़रूरी नहीं है। अतः यदि वह ये रोज़े अलग-अलग दिनों में रखता है, तो यह उसके लिए पर्याप्त है। क्योंकि अल्लाह तआला का यह कथन (जिसमें क़सम के कफ़्फ़ारा का उल्लेख है) सामान्य है (इसमें कोई प्रतिबंध नहीं है) :

 لا يُؤَاخِذُكُمُ اللَّهُ بِاللَّغْوِ فِي أَيْمَانِكُمْ وَلَكِنْ يُؤَاخِذُكُمْ بِمَا عَقَّدْتُمُ الأَيْمَانَ فَكَفَّارَتُهُ إِطْعَامُ عَشَرَةِ مَسَاكِينَ مِنْ أَوْسَطِ مَا تُطْعِمُونَ أَهْلِيكُمْ أَوْ كِسْوَتُهُمْ أَوْ تَحْرِيرُ رَقَبَةٍ فَمَنْ لَمْ يَجِدْ فَصِيَامُ ثَلاثَةِ أَيَّامٍ ..

المائدة : 89

“अल्लाह तुम्हें तुम्हारी व्यर्थ क़समों पर नहीं पकड़ता, परंतु तुम्हें उसपर पकड़ता है जो तुमने पक्के इरादे से क़समें खाई हैं। तो उसका प्रायश्चित दस निर्धनों को भोजन कराना है, औसत दर्जे का, जो तुम अपने घर वालों को खिलाते हो, अथवा उन्हें कपड़े पहनाना, अथवा एक दास मुक्त करना। फिर जो न पाए तो तीन दिन के रोज़े रखना है।” (सूरतुल मायदा : 89)

यहाँ अल्लाह ने रोज़ा रखने को निरंतरता के साथ प्रतिबंधित नहीं किया है।

इब्ने हज़्म ने “अल-मुहल्ला” (6/345) में कहा :

“यदि वह चाहे, तो तीन दिनों का रोज़ा अलग-अलग रखना पर्याप्त है - यह मालिक और शाफेई का कथन है... क्योंकि जब अल्लाह ने यह निर्धारित नहीं किया कि उन्हें लगातार होना चाहिए, अलग-अलग नहीं होना चाहिए। तो वह उनका जिस तरह भी रोज़ा रखता है, वह उसके लिए पर्याप्त है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

तथा “फतावा अल-लजनह अद-दाईमह” (23/22) में आया है :

“बेहतर यह है कि क़सम के कफ़्फ़ारा का रोज़ा लगातार रखा जाए, लेकिन यदि वह लगातार न रखे, तो इसमें कोई हर्ज नहीं है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

देखिए : “अल-इंसाफ़” (11/42), “अल-मुग़्नी” (10/15) और “अल-मुदव्वनह” (1/280).

शपथ व प्रतिज्ञा और मन्नत
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