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हम अक्सर रमज़ानुल मुबारक के महीने में सेहरी के बारे में सुनते हैं, तथा मस्जिदों में पेश की जानी वाली हदीसों में सुनते हैं कि सेहरी करने में बरकत है, किंतु कभी कभार रात के खाने में विलंब होने के कारण हमें सेहरी करने की इच्छा नहीं होती है और हम इस बरकत को छोड़ देते हैं। तो क्या हमारे ऊपर इस बारे में कोई पाप है ॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
“इसमें कोई संदेह नहीं कि सेहरी करना सुन्नत और नेकी का काम है ;क्योंकि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इसका हुक्म दिया है, आप ने फरमाया : “सेहरी करो क्योंकि सेहरी में बरकत है।” तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “हमारे रोज़े के बीच और यहूदियों व ईसाईयों के रोज़े के बीच अंतर सेहरी का खाना है।” तथा पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सेहरी किया करते थे। अतः सेहरी सुन्नत (ऐच्छिक) है वाजिब (अनिवार्य) नहीं है, जिसने सेहरी नहीं किया उस पर कोई गुनाह नहीं है किंतु उसने सुन्नत छोड़ दिया।
अतः लोगों को चाहिए कि सेहरी करें, चाहे थोड़ी ही सही। ज़रूरी नहीं हैकि वह अधिक ही हो, जितना भी हो सके सेहरी कर ले चाहे चंद खजूरें ही हों, या जो भी खाना रात के अंतिम भाग में उप्लब्ध हो। यदि खाना उपलब्ध न हो या खाना खाने की इच्छा न हो तो थोड़ा दूध ही पी ले या कम से कम जितना हो सके पानी ही पी ले, परंतु सेहरी न छोड़े, क्योंकि उसके खाने में बरकत और बहुत भलाई है, तथा वह रोज़ेदार का दिन में उसके कामों पर सहायक है, इसलिए रोज़ेदार को चाहिए कि सेहरी करना न छोड़े चाहे थोड़ी ही क्यों न हो, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : “सेहरी करो क्योंकि सेहरी में बरकत है।”
इस तरह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है, और यह ऐसी बरकत है जिसे नष्ट नहीं होने देना चाहिए, बल्कि मोमिन को चाहिए कि उसका लालायित और उत्सुक बने चाहे थोड़े से खाने या खजूरों या दूध के द्वारा ही क्यों न हो, इसके द्वारा दिन के दीनी और दुनियावी कामों पर मदद प्राप्त करे।” अंत हुआ।
आदरणीय शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन बाज़ रहिमहुल्लाह