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राज्य और चर्च से सहायता लेना और मांगना

06-02-2012

प्रश्न 132727

मैं अमेरिका में रहता हूँ, और हम कुछ मुफ्त सेवाएं लेते हैं, खासकर हम लोग सीमित आय वालों में से समझे जाते हैं, किंतु इन सेवाओं में से कुछ जैसे उदाहरण के तौर पर खाना, हमारे लिए उसे चर्चों से लेना संभव है, तो क्या यह जाइज़ है ॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

राज्य या योगदान पर आधारित संस्थाओं से सहायता स्वीकार करने में कोई हर्ज नहीं है भले ही वह चर्च हो,जब तक कि वह धर्म की किसी चीज़ को छोड़ देने,या किसी बुराई को मान्यता देने,या बच्चों आदि पर प्रभाव डालने का कारण न बनता हो। लेकिन उस से उपेक्षा करना और उस से निस्पृह होना प्राथमिकता रखता है,क्योंकि ऊपर वाला हाथ नीचे वाले हाथ से बेहतर है,विशेषकर जब मामला चर्च से लेने का है जिसका आम तौर से वह जो कुछ मुसलमानों को देता हैं उसमें संदिग्ध उद्देश्य होता है। बुखारी (हदीस संख्या : 1428) ने हकीम बिन हिज़ाम रज़ियल्लाहु अन्हु के माध्यम से नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत किया है कि आप ने फरमाया : “ऊपर वाला हाथ नीचे वाले हाथ से बेहतर है,और तुम उस व्यक्ति से आरंभ करो जिसका खर्च उठाने के तुम ज़िम्मेदार हो,और बेहतरीन दान मालदारी में है,और जो व्यक्ति मांगने से बचना चाहता है तो अल्लाह उसे बचा लेता है,और जो निस्पृह होना चाहता है, अल्लाह उसे निस्पृह कर देता है।”

तथा बुखारी (हदीस संख्या : 1429) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1033) में इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : मैं ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फरमाते हुए सुना जबकि आप मिंबर पर थे और आप ने सदक़ा (दान) मांगने से उपेक्षा करने तथा मांगने का चर्चा किया : “ऊपर वाला हाथ नीचे वाले हाथ से बेहतर है,ऊपर वाला हाथ खर्च करने वाला हाथ है, और नीचे वाला हाथ मांगने वाला हाथ है।”

लोगों से दान मांगना घृणित काम है,भले ही किसी मुसलमान से मांगा जाए,सिवाय इसके कि मांगने वाला मांगने पर मजबूर (विवश) हो,क्योंकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “मांगना एक खरोंच है जिस से आदमी अपने चेहरे को खरोंचता है सिवाय इसके कि आदमी किसी राजा से मांगे, या ऐसी चीज़ के अंदर मांगे जिसके बिना उसके लिए कोई चारह न हो।” इसे तिर्मिज़ी ने तथा अल्बानी ने सहीह तिर्मिज़ी में सहीह कहा है।

तथा अबू दाऊद (हदीस संख्या : 1639) ने इन शब्दों के साथ रिवायत किया है :

“मांगना खरोंच (छीलन, हलका घाव) है जिस से आदमी अपने चेहरे को नोचता है,अतः जो चाहे अपने चेहरे को वैसे बरकरार रखे और जो चाहे उसे छोड़ दे, सिवाय इसके कि आदमी किसी राज्य वाले (बैतुल माल) से मांगे, या किसी ऐसे मामले में मांगे जिसके बिना कोई चारह न हो।’’

“सुबुलुस्सलाम” (1/548) में फरमाया : (कद्दुन) अर्थात् : खरोंच और वह उसके निशान को कहते हैं, रही बात राजा से प्रश्न करने की तो उसमें कोई बुराई नहीं है ;क्योंकि वह उसी चीज़ का प्रश्न करता है जो उसका बैतुल माल में हक़ है, और राजा का मांगने वाले पर कोई उपकार नहीं है। क्योंकि वह वकील है, तो वह ऐसे ही है कि कोई मनुष्य अपने वकील से यह प्रश्न करे कि वह उसे उसके उस हक़ में से दे दे जो उसके पास है।” अंत।

बुखारी (हदीस संख्या : 1475) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1040) ने अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “आदमी लोगों से मांगता रहता है यहाँ तक कि वह क़ियामत के दिन इस हाल में आयेगा कि उसके चेहरे पर मांस नहीं होगा।”

तथा मुस्लिम (हदीस संख्या : 1041) ने अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जिस आदमी ने लोगों से उनके धन को मांगा ताकि वह अधिक से अधिक माल जमा करे,तो वास्तव में वह आग का अंगारा मांगता है,तो फिर वह कम करे या अधिक करे।’’

तथा हदीस के शब्द : “जिसने लोगों से उनके धन को मांगा अधिक माल जमा करने के लिए” का अर्थ यह है कि : वह लोगों से मांगता है ताकि अधिक धन जमा करे जबकि उसे उसकी ज़रूरत नहीं है।

इन हदीसों के अंदर सुवक्ता फटकार और मागने से स्पष्ट रूप से घृणा और नफरत दिलाया गया है,सिवाय उस व्यक्ति के जिसके पास मांगने के बिना कोई चारह न हो।

इस आधार पर, जब तक आप लोगों को सहायता की सख्त ज़रूरत नहीं है तो उसे मांगने से उपेक्षा करें,और यदि आप लोगों को इसकी आवश्यकता है तो उसे मांगने और लेने में आपके ऊपर कोई हर्ज नहीं है।

हम अल्लाह तआला से प्रार्थना करते हैं कि अपनी कृपा व अनुकंपा से आपको निस्पृह कर दे।

नीतिशास्त्र (नैतिकता)
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