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हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए योग्य है।अनिवार्य यह है कि दाढ़ी को बढ़ाया जाये, उसे पूरी की पूरी रखी जाये, उसे ढीली छोड़ दी जाये और उस से छेड़-छाड़ न किया जाये ;क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रमाणित है कि आप ने फरमाया : "मूँछों को काटो, दाढ़ियों को बढ़ाओ और मुश्रेकीन का विरोध करो।" (सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम, इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा की हदीस)
और बुखारी ने अपनी सहीह में इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "मूँछों को काटो, और दाढ़ियों को पूरी तरह बाक़ी रखो (छोड़ दो), मुश्रिकों (अनेकेश्वरवादियों) का विरोध करो।"
तथा मुस्लिम ने अपनी सहीह में अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है किनबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "मूँछों को काटो, दाढ़ी को ढीली छोड़ दो, पारसियों का विरोध करो।"
ये सभी हदीसें दाढ़ी बढ़ाने, उसे ढीली छोड़ देने, उसे पूरी तरह बाक़ी रखने के अनिवार्य होने और मूँछों को काटने की अनिवार्यता पर तर्क हैं, और यही बात धर्म संगत है और यही अनिवार्य है जिसकी ओर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मार्गदर्शन किया है और उसका आदेश दिया है, और इसी में आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आप के सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम के आदर्श को अपनाना और मुश्रिकों का विरोध करना पाया जाता है और उनकी समरूपता अपनाने और महिलाओं की समानता से दूरी पायी जाती है।
जहाँ तक उस हदीस का संबंध है जिसे इमाम तिर्मिज़ी रहिमहुल्लाह ने रिवायत किया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपनी दाढ़ी की लंबाई और चौड़ाई से काटा करते थे, तो यह विद्वानों के निकट एक असत्य सूचना (हदीस) है, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से शुद्व रूप से प्रमाणित नहीं है। कुछ लोगों ने इस हदीस का सहारा लिया है, हालांकि यह खबर (हदीस) शुद्व नहीं है। क्योंकि इसकी इसनाद में उमर बिन हारून अल बलख़ी हैं जिन पर झूठ बोलने का आरोप है।
अत: मुसलमान के लिए इस असत्य हदीस पर अमल करना जाइज़ नहीं है, और न तो उसके लिए कुछ विद्वानों के कथन से रूख्सत पकड़ना ही जाइज़ है, क्योंकि सुन्नत (हदीस) हर चीज़ पर निर्णायक और शासक है, और अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल का फरमान है :
مَنْ يُطِعِ الرَّسُولَ فَقَدْ أَطَاعَ اللهَ [ النساء : 80]
"जो रसूल की फ़रमांबरदारी - आज्ञापालन - करे उसी ने अल्लाह की फरमांबरदारी की।" (सूरतुन्निसा : 80)
तथा अल्लाह सुब्हानहु का फरमान है :
قُلْ أَطِيعُوا اللهَ وَأَطِيعُوا الرَّسُولَ فَإِنْ تَوَلَّوْا فَإِنَّمَا عَلَيْهِ مَا حُمِّلَ وَعَلَيْكُمْ مَا حُمِّلْتُمْ وَإِنْ تُطِيعُوهُ تَهْتَدُوا وَمَا عَلَى الرَّسُولِ إِلا الْبَلاغُ الْمُبِينُ [النور : 54]
"कह दीजिए कि अल्लाह का आज्ञापालन करो और पैगंबर का आदेश मानो, फिर भी यदि तुम ने पीठ फेरी तो पैगंबर के ज़िम्मे तो केवल वही है जो उस पर अनिवार्य किया गया है, और तुम्हारे ऊपर वह चीज़ अनवार्य है जिसकी ज़िम्मेदारी तुम्हारे ऊपर डाली गई है। और अगर तुम उसकी बात मानो गे तो हिदायत (मार्गदर्शन) पाओगे।सुनो! पैगंबर के ज़िम्मे तो केवल स्पष्ट रूप से पहुँचा देना है।" (सूरतुन्नूर : 54)
तथा अल्लाह सुब्हानहु व तआला फरमाता है :
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا أَطِيعُوا اللهَ وَأَطِيعُوا الرَّسُولَ وَأُولِي الْأَمْرِ مِنْكُمْ فَإِنْ تَنَازَعْتُمْ فِي شَيْءٍ فَرُدُّوهُ إِلَى اللهِ وَالرَّسُولِ إِنْ كُنْتُمْ تُؤْمِنُونَ بِاللهِ وَالْيَوْمِ الآخِرِ ذَلِكَ خَيْرٌ وَأَحْسَنُ تَأْوِيلا [النساء : 59]
"ऐ ईमान वालो! आज्ञापालन करो अल्लाह तआला की, और आज्ञापालन करो रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सललम) की और तुम में अख्तियार वालों की, फिर यदि तुम किसी चीज़ के बारे में मतभेद कर बैठो तो उसे अल्लाह और रसूल की तरफ लौटाओ, यदि तुम अल्लाह तआला और आखिरत के दिन पर ईमान रखते हो, यह बेहतर और परिणाम के एतिबार से बहुत अच्छा है।" (सूरतुन्निसा : 59)
और अल्लाह तआला ही तौफीक़ देने वाला है।