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मेरे माल के ज़कात का समय रमज़ान के महीने से पहले होगा। तो क्या मेरे लिए उसे रमज़ान तक विलंब करना जाइज़ है ? इसलिए कि रमज़ान में ज़कात अफज़ल है।
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
जब निसाब के मालिक होने पर साल गुज़र जाये तो ज़कात को तुरन्त निकालना वाजिब है, और उसके निकालने पर सक्षम होने के बावजूद उसे साल गुज़रने के बाद विलंब करना जाइज़ नहीं है। अल्लाह तआला का फरमान है :
وَسَارِعُوا إِلَى مَغْفِرَةٍ مِنْ رَبِّكُمْ وَجَنَّةٍ عَرْضُهَا السَّمَاوَاتُ وَالأَرْضُ أُعِدَّتْ لِلْمُتَّقِينَ [آل عمران: 133 ]
"और अपने रब की बख्शिश (क्षमा) की और उस स्वर्ग की ओर दोड़ो जिसकी चौड़ाई आकाशों और ज़मीन के बराबर है, जो परहेज़गारों के लिये तैयार की गई है।" (सूरत आल-इमरान : 133)
तथा अल्लाह तआला ने एक दूसरे स्थान पर फरमाया :
سَابِقُوا إِلَى مَغْفِرَةٍ مِنْ رَبِّكُمْ وَجَنَّةٍ عَرْضُهَا كَعَرْضِ السَّمَاءِ وَالأَرْضِ أُعِدَّتْ لِلَّذِينَ آمَنُوا بِاللهَِ وَرُسُلِهِ [الحديد: 21 ]
"दौड़ो अपने रब की बख्शिश (माफी) की तरफ और उस जन्नत की तरफ जिसका विस्तार ज़मीन और आसमान के विस्तार के समान है। यह उनके लिए बनाई गई है जो अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान रखते हैं।" (सूरतुल हदीद : 21)
और इसलिए कि यदि इंसान उसे विलंब कर देता है तो उसे पता नहीं कि उसके साथ क्या मामला पेश आ जाये। हो सकता है कि वह मर जाये और उसके ज़िम्मे वाजिब बाक़ी रह जाये, जबकि ज़िम्मा को बरी करना ज़रूरी है।
और इसलिए भी कि उसके साथ गरीबों की ज़रूरत जुड़ी हुई है, यदि उसे साल गुज़रने के बाद विलंब कर देता है तो गरीब लोग ज़रूरतमंद बाक़ी रहेंगे और वे अपनी किफायत के लिए और अपनी ज़रूरत पूरी करने के लिए कोई चीज़ नहीं पायें गे। देखिए : अश-शरहुल मुम्ते’ (6/187)
तथा इफ्ता और वैज्ञानिक अनुसंधान की स्थायी समिति से एक ऐसे आदमी के बारे में प्रश्न किया गया जो रजब के महीने में ज़कात के निसाब का मालिक हो गया और वह रमज़ान के महीने में ज़कात निकालना चाहता है।
तो स्थायी समिति ने उत्तर दिया :
जिस साल आप निसाब के मालिक हुए हैं उसके बाद वाले साल में रजब के महीने में आप पर जकात वाजिब है . . .किन्तु यदि आप उसे उसी साल के रमज़ान में जिस में आप निसाब के मालिक हुए हैं, साल गुज़रने से पहले ही अग्रिम ज़कात निकालना चाहें तो आप के लिए ऐसा करना जाइज़ है यदि वहाँ उसे समय ये पूर्व निकालने की सख्त ज़रूरत है। लेकिन जहाँ तक रजब के महीने में साल गुज़रने के बाद उसे रमज़ान तक विलंब करने की बात है तो यह जाइज़ नहीं है। क्योंकि उसे तुरन्त निकालना वाजिब है। (संक्षेप के साथ समाप्त हुआ)
फतावा स्थायी समिति ( 9/ 392).
तथा एक दूसरे फत्वा (9/395)में है :
जिस पर ज़कात वाजिब हो गई और किसी वैध कारण के बिना उसे विलंब कर दिया,तो वह गुनहगार होगा। क्योंकि क़ुर्आन व हदीस के प्रमाण ज़कात को उसके समय पर निकालने में जल्दी करने के बारे में वर्णित हैं। (समिति की बात समाप्त हुई)
तथा एक अन्य फत्वा (9/398) में है :
"साल पूरा होने के बाद ज़कात निकालने में विलंब करना जाइज़ नहीं है, सिवाय इसके कि कोई शरई कारण मौजूद हो, जैसे कि साल पूरा होने के समय गरीब लोग मौजूद न हों, या उन के पास तक ज़कात पहुँचाने पर आदमी असक्षम हो, या धन मौजूद न हो इत्यादि। किन्तु रहा मात्र रमज़ान के कारण उसे विलंब करने का मस्अला तो ऐसा करना जाइज़ नहीं है, सिवाय इसके कि रमज़ान के आने में थोड़ी अवधि बाक़ी हो, उदाहरण के तौर पर साल शाबान के दूसरे अर्ध में पूरा होता हो, तो उसे रमज़ान तक विलंब करने में कोई बात नहीं है।" (स्थायी समिति के फत्वा से अंत हुआ)