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मैं रमज़ान की अंतिम दस रातों का एतिकाफ करना चाहता हूँ और यह जानना चाहता हूँ कि कब मस्जिद में प्रवेश करूँ और कब उस से बाहर निकलूँ ॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम :
जहाँ तक एतिकाफ करने वाले का (एतिकाफ गृह में) प्रवेश करने का प्रश्न है तो विद्वानों की बहुमत (जिनमें चारों इमाम अबू हनीफा, मालिक, शाफई और अहमद रहिमहुल्लाह सम्मिलित हैं) इस बात की ओर गए हैं कि जो व्यक्ति रमज़ान की अंतिम दस रातों का एतिकाफ करना चाहता है वह इक्कीसवीं रात के सूरज डूबने से पहले प्रवेश करेगा, और इस पर उन्हों ने कई प्रमाणों से दलील पकड़ी है, जिनमें से कुछ यह है :
1- यह बात प्रमाणित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम रमज़ान की अंतिम दस रातों का एतिकाफ किया करते थे। (बुखारी व मुस्लिम). इस से पता चलता है कि आप रातों का एतिकाफ करते थे दिनों का नहीं, क्योंकि “अल-अश्र” (दस) का शब्द रातों (लयाली) की तमीज़ है, अल्लाह तआला का फरमान है :
“और (क़सम है) दस रातों की।” (सूरतुल फज्र : 2)
और अंतिम दहाई का आरंभ इक्कीसवीं की रात से होता है। इस आधार पर, वह इक्कीसवीं की रात के सूरज डूबने से पूर्व मस्जिद में प्रवेश करेगा।
2- इनका कहना है कि : एतिकाफ का एक सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य लैलतुल क़द्र की खोज करना है, और इक्कीसवी रात अंतिम दहाई की ताक़ रातों में से एक है इसलिए उसके लैलतुल क़द्र होने की संभावना है, अतः उसका उस रात में एतिकाफ में होना उचित है। यह बात सिंदी ने नसाई के हाशिय में कही है। तथा “अल-मुग्नी” (4/489) देखिए।
किंतु बुखारी (हदीस संख्या : 2041) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1173) ने आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है कि उनहो ने कहा : जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एतिकाफ का इरादा करते तो फज्र की नमाज़ पढ़ते फिर अपने एतिकाफ गृह में प्रवेश करते थे।
कुछ सलफ सालेहीन ने इस हदीस के प्रत्यक्ष अर्थ के अनुसार बात कही है कि एतिकाफ करने वाला फज्र की नमाज़ के बाद अपने एतिकाफ गृह में प्रवेश करेगा। और इसी बात को स्थायी समिति के विद्वानों (10/411) और शैख इब्ने बाज़ (15 / 442) ने अपनाया है।
किंतु जम्हूर ने इस हदीस का दो उत्तरों में से किसी एक के द्वारा जवाब दिया हैः
प्रथम: नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सूरज डूबने से पूर्व एतिकाफ किए हुए थे परंतु एतिकाफ करने के विशिष्ट स्थान में फज्र की नमाज़ के बाद दाखिल हुए।
नववी फरमाते हैं:
“जब आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एतिकाफ का इरादा करते तो फज्र की नमाज़ पढ़ते फिर अपने एतिका की जगह में प्रवेश करते।” इस से उन लोगों ने दलील पकड़ी है जिनका कहना है कि : दिन के शुरू से एतिकाफ का आरंभ करेगा, यही बात औज़ाई और सौरी, तथा लैस ने अपने दो कथनों में से एक कथन में कही है। तथा मालिक, अबू हनीफा, शाफई और अहमद ने कहा है कि: अगर वह एक महीना या दस दिन के एतिकाफ का इरादा करेगा तो सूरज डूबने से पहले उसमें दाखिल होगा, और उन्हों ने हदीस का यह अर्थ निर्धारित किया है आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सुबह की नमाज़ पढ़ने के बाद एतिकाफ गृह में दाखिल हुए और उसमें लोगों से कटकर एकांत में हो गए, यह नहीं कि एतिकाफ के आरंभ का समय यही है, बल्कि आप मग्रिब से पहले एतिकाफ किए हुए मस्जिद में ठहरे थे, फिर जब आप ने सुबह की नमाज़ पढ़ी तो एकांत में हो गए। (अंत)
दूसरा जवाब :
हनाबिला में से क़ाज़ी अबू याला ने यह जवाब दिया है कि उन्हों ने हदीस को इस अर्थ में लिया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ऐसा बीसवें रमज़ान के दिन में किया करते थे (यानी बीसवें रमज़ान को फज्र की नमाज़ पढ़कर एतिकाफ गृह में प्रवेश करते थे)। सिंदी कहते हैं : मननचिंतन (ग़ौर व फिक्र) इसी जवाब का पता देता है, अतः यही बेहतर है और भरोसे के अधिक योग्य है। (सिंदी की बात समाप्त हुई).
तथा शैख इब्ने उसैमीन से “फतावा अस्सियाम” (पृष्ठः 501) में प्रश्न किया गया कि : एतिकाफ कब शुरू होगा ॽ
तो उन्हों ने उत्तर दिया :
“जम्हूर विद्वानों का मत यह है कि एतिकाफ की शुरूआत इक्कीसवीं की रात से होगी, इक्कीसवीं की फज्र से नहीं, यद्यपि कुछ विद्वान इस बात की ओर गए हैं कि एतिकाफ का आरंभ इक्कीसवीं की फज्र से होगा, उन्हों ने बुखारी के यहाँ आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा की इस हदीस से दलील पकड़ी है कि : (जब आप ने सुबह की नमाज़ पढ़ ली तो अपने एतिकाफ गृह में प्रवेश किया।) किंतु जम्हूर ने इसका यह उत्तर दिया है कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सुबह के समय से लोगों से अलग-थलग होते थे, जहाँ तक एतिकाफ की नीयत का संबंध है तो वह रात के आरंभ से ही करते थे, क्योंकि अंतिम दहाई का आरंभ बीसवें रमज़ान को सूरज डूबने से होता है।” (अंत)
तथा उन्हों ने (पृष्ठ : 503 में) फरमाया :
“अंतिम दहाई का एतिकाफ करने वाले का दाखिल होना इक्कीसवीं की रात को सूरज डूबने के समय होगा, और यह इसलिए कि यही अंतिम दहाई के प्रवेश करने का समय है, और यह आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा की हदीस के विरूद्ध नहीं है क्योंकि उसके शब्द विभिन्न हैं, अतः जो शाब्दिक अर्थ के सबसे निकट है उसी को लिए जायेगा, और यह वह हदीस है जिसे बुखारी (हदीस संख्या : 2041) ने आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम प्रति रमज़ान में एतिकाफ किया करते थे और जब सुबह की नमाज़ पढ़ लेते तो अपने उस स्थान में प्रवेश करते जिसमें आप ने एतिकाफ किया होता था।
तो उनका कहना कि : (जब आप सुबह की नमाज़ पढ़ लेते तो अपने उस स्थान में प्रवेश करते जिसमें आप ने एतिकाफ किया होता था।) इस बात का तकाजा करता है कि आप एतिकाफ के स्थान में प्रवेश करने से पहले मस्जिद में ठहर चुके होते थे, क्योंकि उनका क़ौल (ए-त-कफा) भूतकाल कृया है, और असल यही है कि उसका प्रयोग उसके वास्तविक अर्थ में होता है।” (अंत)
दूसरा :
जहाँ तक उसके बाहर निकलने का प्रश्न है तो वह रमज़ान के अंतिम दिन के सूरज डूबने पर बाहर निकले गा।
शैख इब्ने उसैमीन से प्रश्न किया गया कि : एतिकाफ करने वाला अपने एतिकाफ से कब बाहर निकलेगा, क्या ईद की रात को सूरज डूबने के बाद या या ईद के दिन फज्र के बाद ॽ
तो उन्हों ने उत्तर दिया :
“एतिकाफ करने वाला अपने एतिकाफ से उस वक़्त निकलेगा जब रमज़ान समाप्त हो जायेगा, और रमज़ान ईद की रात सूरज डूबने पर समाप्त होता है।” फताव अस्सियाम (पृष्ठ : 502) से अंत हुआ।
तथा “फतावा अल्लजनह अद्दाईमह” (फतावा स्थायी समिति) (10 / 4111) में आया है कि :
“रमज़ान के दस दिनों के एतिकाफ की अवधि उसके अंतिम दिन के सूरज डूबने के साथ समाप्त हो जाती है।” (अंत)
यदि वह एतिकाफ गृह में बाक़ी रहना चाहे यहाँ तक कि फज्र की नमाज़ पढ़ ले और अपने एतिकाफ की जगह से सीधे ईद की नमाज़ के लिए निकले तो कोई आपत्ति (गुनाह) की बात नहीं है, कुछ सलफ ने इसे पसंद किया है।
इमाम मालिक रहिमहुल्लाह ने फरमाया कि उन्हों ने कुछ विद्वानों को देखा है कि जब वह रमज़ान की अंतिम दहाई का एतिकाफ करते थे तो अपने घर वालों के पास लौट कर नहीं जाते थे यहाँ तक कि लोगों के साथ ईदुल फित्र की नमाज़ में उपस्थित होते थे। इमाम मालिक ने कहा : मुझे यह बात उन प्रतिष्ठा वाले लोगों से पहुँची है जो बीत चुके, और यह बात जो मैं ने सुनी है मेरे निकट सबसे पसंदीदा है।
तथा नववी ने “अल-मजमूअ़्” (6 / 323) ने फरमाया :
शाफई और उनके असहाब का कहना है : जो व्यक्ति रमज़ान की अंतिम दहाई में एतिकाफ करने में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अनुसरण करना चाहता है तो वह रमज़ान की इक्कीसवीं रात को सूरज डूबने से पहले मस्जिद में प्रवेश कर जाए, ताकि उसमें से कोई चीज़ उस से न छूटने पाए, और ईद की रात सूरज डूबने के बाद बाहर निकले, चाहे महीना पूरा हुआ हो या कम हो गया हो, और सर्वश्रेष्ठ यह है कि वह ईद की रात मस्जिद में ठहरा रहे यहाँ तक कि उसमें ईद की नमाज़ पढ़ ले, या उस से निकल कर ईद की नमाज़ के लिए ईदगाह जाए यदि लोग ईदगाह में नमाज़ पढ़ें।” (अंत).
यदि वह एतिकाफ से निकल कर सीधे ईद की नमाज़ के लिए जाता है तो उसके लिए मुस्तहब है कि उसके लिए निकलने से पहले स्नान करले और सुशोभित हो जाए, क्योंकि यह ईद की सुन्नतों में से है। इसके बारे में विस्तार के साथ प्रश्न संख्या (36442) में देखिए।