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दिसंबर 2005 ई. में मेरी शादी हुई थी, मुझे मेरे माता पिता और मेरे पति के घर वालों ने एक बड़ी मात्रा में सोने के आभूषण दिए थे जिन पर ज़कात वाजिब होती है। जब मैं कनाडा आई तो अपने साथ कुछ आभूषण लेकर आई थी और उसका अधिकांश भाग स्वदेश में अपने घर पर ही छोड़ दिया था। मेरे पिता मेरे शेष आभूषण का उसके खरीदने के समय से ही ज़कात देते हैं। अब मेरा प्रश्न यह है कि: क्या मेरे पिता के लिए मेरे ज़कात का भुगतान करना जाइज़ है या मेरे पति पर अनिवार्य है कि मेरे ज़कात का भुगतान करें ; क्योंकि मेरे पास आय का कोई साधन नहीं है ॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम :
ज़कात संपत्ति के मालिक और सोने के मालिक पर अनिवार्य है, जबकि उसके अलावा के लिए उसकी अनुमति से उसकी ओर से ज़कात निकालना जाइज़ है।
इस आधार पर आप के पति के लिए या आप के पिता के लिए आप की अनुमति से आप की ओर से ज़कात निकालना जाइज़ है, और वह इसके द्वारा अनुदान करने वाला होगा। इस में आप की अनुमति और ज्ञान की शर्त इसलिए लगाई गई है क्योंकि ज़कात एक इबादत (उपासना) है जिसमें नीयत (इच्छा) का पाया जाना ज़रूरी है, अतः आप अपने पिता या अपने पति के माध्यम से ज़कात निकालने की नीयत करेंगी।
दूसरा :
यदि आप की ज़कात का साल उदाहरण के तौर पर रमज़ान के महीने में पूरा होता है और आप ने साल के बीच में कुछ सोना बेच दिया, तो अगर आप के पास वे पैसे रमज़ान के महीने तक बाक़ी रहे तो आप पर उस में से चालीसवाँ हिस्सा अर्थात अढ़ाई प्रतिशत (2.5%) ज़कात निकालना अनिवार्य है, और यदि आप ने रमज़ान से पहले ही उस धन को खर्च कर दिया तो आप के ऊपर कोई भी चीज़ अनिवार्य नहीं है।
और यदि सोने पर एक साल बीत गया और आप ने उस की ज़कात नहीं निकाली, फिर आप ने सोना बेच दिया, तो ऐसी स्थिति में आप के लिए उस ज़कात को निकालना अनिवार्य है जिसे आप ने नहीं निकाली है, क्योंकि वह आप के ज़िम्मे क़र्ज़ (ऋण) है।
तीसरा :
जैसाकि हम उल्लेख कर चुके हैं कि संपत्ति के मालिक पर उसकी ज़कात निकालना अनिवार्य है, और उसके अलावा किसी दूसरे के लिए अनुदान करते हुए उस का भुगतान करना जाइज़ है। अगर आप के पास सोना है परंतु आप के पास पैसा (केश) नहीं है, और आप के पति या आप के पिता ने अनुदान करते हुए आप की तरफ से ज़कात नहीं निकाली है तो आप उसी सोने से ज़कात निकालेंगी, या ज़कात के लिए उस का कुछ हिस्सा बेच देंगी।
चौथा :
रमज़ान के महीने में ज़कात निकालना अनिवार्य नहीं है, बल्कि ज़कात साल पूरा होने पर अनिवार्य होती है। यदि आप रमज़ान के महीने में सोने का मालिक बनी हैं तो ज़कात का साल रमज़ान के महीने में पूरा होगा, और यदि आप मुहर्रम के महीने में उस का मालिक बनी हैं तो ज़कात मुहर्रम के महीने में अनिवार्य होगी।
और यदि मान लिया जाए कि आप की ज़कात का साल रमज़ान के महीने में पूरा होता है, किंतु आप ने उस के निकालने में विलंब कर दिया, तो आप पर उसे इस समय निकालना अनिवार्य है, क्योंकि ज़कात तुरंत अनिवार्य है और उसे उस के समय से विलंब करना जाइज़ नहीं है।
ज़कात निकालने का तरीक़ा:
यह है कि आप साल पूरा होने पर सोने का मूल्य आंकन करें और उस मूल्य से अढ़ाई प्रतिशत (2.5%) ज़कात निकाल दें, और वह इस प्रकार कि आप देखें कि आप का सोना बाज़ार में यदि आप उसे बेचना चाहें तो कितने में बिकेगा, और इस में सोने की मात्रा, केराट और उसका प्रयोग किया हुआ सोना होने को देखा जायेगा। यदि आप के पास जो सोना है उस का मूल्य उदाहरण के तौर पर 100 हज़ार (एक लाख) के बराबर है, तो आप उस में से अढ़ाई प्रतिशत (2.5%) अर्थात् 2,500 (पचीस सौ) ज़कात निकालेंगी।
और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।