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वह ग़ैर मुस्लिम देश में अरबी पोशाक (सौब) पहनना चाहता है

12-06-2012

प्रश्न 159636

मेरा प्रश्न एक पश्चिमी देश (कनाडा) में प्रति दिन लोगों के सामने “सौब” (अरबी पोशाक) पहनने से संबंधित है, तो क्या इन स्थितियों मे सौब पहनना शोहरत के पोशाक के शीर्षक के अंतर्गगत आता है ॽ यहाँ गैर मुस्लिमों के लिए सौब एक विचित्र और अनोखी चीज़ है, किंतु मैं व्यक्तिगत रूप से सौब को पश्चिमी कपड़ों जैसे पैंट, जींस और इनके समान कपड़ों से अधिक पसंद करता हूँ, और मामला केवल इसी पर सीमित नहीं है, बल्कि मैं इस वास्तकिवता को भी पसंद करता हूँ कि वह इन पश्चिमी कपड़ों से अधिक शरमगाह को छिपाने वाला है। तो क्या मेरे ऊपर घमण्ड और अहंकार का कोई गुनाह होगा यदि मैं प्रति दिन स्कूल में सौब को एक ऐसे देश में पहनता हूँ जिस में इस प्रकार के पोशाक पहनना बहुत ही विचित्र समझा जाता है। क्या वह शोहरत का पोशाक पहनने के समान है। मैं ने इस मामले से संबंधित अन्य फतावे पढ़े हैं, किंतु मुझे इस तरह की परिस्थितियों में सौब के पहनने की वैधता के बारे में कोई चीज़ नहीं मिल सकी।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

मुसलमान के लिए धर्मसंगत यह है कि वह उस पोशाकको पहनने का लालायित बने जिसे उस देश के लोग व्यवहारिक रूप से पहनते हैं जिसमें वहरहता है,ताकि वह उनके बीच सुप्रसिद्ध और उन से उत्कृष्ट न हो जाये जिससे उसे हानि पहुँच सकती है,इस शर्त के साथ कि वह पोशाक किसी शरई मुखालफत(उल्लंघन) पर आधारित न हो।

और जबकि आप एक ऐसे देश में रहते हैं जिसमेंअरबी सौब पहनना विचित्र समझा जाता है और उसे पसंदीदा नहीं समझा जाता है,तो आप के लिए सर्वश्रेष्ठयह है कि आप वह पोशाक पहनें जो आप के देश में लोगों की पहनने की आदत है। हाँ, इस बातके लालायित बनें कि पैंट कुशादा हो और शरमगाह को रेखांकित न करती हो।

शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह नेफरमाया :

“अगर मुसलमान दाररूल हर्ब,या ऐसे दारूल कुफ्र में हो जो दारूल हर्ब नहीं है, तो उसे प्रत्यक्ष वेशभूषा में उनकाविरोध करने का हुक्म नहीं दिया जायेगा, क्योंकि इस में उस के ऊपर हानि पहुँचने का भयहै। बल्कि कभी कभार आदमी के लिए मुस्तहब होता है, या उस के ऊपर अनिवार्य होता है किवह कभी कभी उन के ज़ाहिरी वेशभूषा में उन का साझी हो यदि उस के अंदर कोई धार्मिक हितहो, जैसे- उन्हें इस्लाम धर्म का निमंत्रण देना, और इसी तरह के अन्य अच्छे उद्देश्य।

जहाँ तक दारूल इस्लाम वल हिजरत का सेबंध हैजिस में अल्लाह तआला ने अपने धर्म को सम्मान प्रदान किया है,और उसमें काफिरों परअपमान और जिज़्या लगा दिया है,तो उसके अंदर उन का विरोध करना धर्मसंगत करदिया गया है।” इक़्तिज़ाउस्सिरातिल मुस्तक़ीम (1/471, 472) से समाप्तहुआ।

और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।

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