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पूंछ या नितंब कटे हुए जानवर की क़ुर्बानी करने का हुक्म, और यदि सही सलामत जानवर न मिले तो क्या हुक्म है?

25-09-2015

प्रश्न 160316

मैं ने फत्वा संख्या : (37039) का उत्तर पढ़ा है, लेकिन यहाँ दक्षिण अफ्रीक़ा में हम क़ुर्बानी के जानवरों को प्राप्त करने के लिए गैर-मुसलमानों पर भरोसा करते हैं। इन किसानों की यह आदत है कि बचपन के दौरान जानवरों के पूंछ काट देते हैं, ताकि ये जानवर मोटे हो सकें। इसलिए बिना पूंछ कटे हुए जानवर की प्राप्ति हमारे लिए दुर्लभ होती है। तो क्या हमारे लिए इन जानवरों को खरीदना और उनकी क़ुबानी करना जायज़ है?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

उत्तर :

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

सर्व प्रथम :

पूंछ कटे हुए क़ुर्बानी के जानवर और नितंब कटे हुए जानवर के बीच अंतर करना ज़रूरी है। क्योंकि विद्वानों के सबसे उचित कथन के अनुसार, पूंछ का कटा होना क़ुर्बानी के जानवर की शुद्धता को प्रभावित नहीं करता है, जबकि नितंब के काटने का मामला इसके विपरीत है।

इब्ने क़ुदामा अल-मक़दसी कहते हैं : पुच्छ रहित जानवर, यानी जिसके पूंछ नहीं होती, चाहे वह पैदायशी हो या काट दी गई हो, किफायत करेगा ... क्योंकि यह एक ऐसी कमी है जो न गोश्त को कम करती है और न उद्देश्य में रूकावट बनती है, तथा इसके बारे में निषेध भी वर्णित नहीं है।’’

‘‘अल-मुगनी’’ (13/371).

तथा उन्हों ने फरमाया : ‘‘वह जानवर काफी नहीं होगा जिसका कोई अंग काट दिया गया हो, जैसे कि नितंब।’’ समाप्त हुआ। ‘‘अल-मुगनी’’ (13/371).

तथा शैख इब्ने उसैमीन ने फरमाया : वह जानवर जिसकी, पैदायशी तौर पर, पूंछ न हो या वह कटी हुई हो : किफायत करेगा . . . , रही बात नितंब कटे हुए जानवर की, तो वह पर्याप्त नहीं होगा ;क्योंकि नितंब एक मूल्य वाली चीज़ है और अपेक्षित व उद्देश्यपूर्ण है।

इस आधार पर, यदि भेड़ का नितंब काट दिया गया है तो वह काफी नहीं होगा, और अगर बकरी की पूंछ काट दी गई है तो वह काफी होगी।’’ समाप्त हुआ।‘‘अश्शरहुल मुम्ते’’ 7/435.?

तथा उन्हों ने यह भी फरमाया कि : ‘‘रही बात नितंब कटे हुए जानवर की तो विद्वानों ने कहा है कि : वह किफायत नहीं करेगा ; क्योंकि नितंब एक लाभदायक व अपेक्षित अंग है, इसके विपरीत भेड़-बकरी, गाय और ऊँट में पूंछ अपेक्षित नहीं है।इसीलिए उसे काटकर फेंक दिया जाता है। इसी तरह ऑस्ट्रेलियाई बकरे की पूंछ का भी मामला है, क्योंकि वह नितंब की तरह नहीं है, बल्कि वह गाय की पूंछ के समान है, उसमें कोई अपेक्षित चीज़ नहीं है।चुनांचे ऑस्ट्रेलियाई बकरे की क़ुर्बानी जायज़ है ; क्योंकि उसकी कटी हुई पूंछ किसी काम की नहीं है।’’ शैख इब्ने उसैमीन की बात समाप्त हुई।‘‘जलसातुल हज्ज’’ (पृष्ठ: 108).

प्रश्न संख्या : (37039) के उत्तर में नितंब कटे हुए जानवर की क़ुर्बानी के जायज़ न होने के बारे में स्थायी समिति का फत्वा उल्लेख किया जा चुका है।

दूसरा :

आपके ऊपर क़ुर्बानी के ऐसे जानवर को तलाश करने की भरपूर कोशिश करना अनिवार्य है जिसका नितंब कटा हुआ न हो। तथा जबतक आपके लिए हर दोष से सही सलामत बकरी की प्राप्ति संभव है, आपके लिए नितंब कटी हुई बकरी की क़ुर्बानी करना काफी नहीं है।

यदि आप निर्दोष बकरी प्राप्त करने में सक्षम नहीं है, तो धर्म संगत यह है कि आप किसी दूसरे क़िस्म के जानवर की तरफ स्थानांतरित हो जायें जो क़ुर्बानी में पर्याप्त होते हैं। चुनांचे आप इस दोषपूर्ण भेड़ को छोड़ दें, और बकरे की क़ुर्बानी करें, यदि उसे दोषरहित पाएं, या गाय की क़ुर्बानी करें (और इसी के समान भैंस भी है) या ऊँट की क़ुर्बानी करें ; चुनाँचे आप लोगों में से हर सात लोग एक गाय, या एक ऊँट में साझेदार हो जायें, और जो व्यक्ति स्वैच्छिक रूप से अकेले एक गाय या एक ऊँट की क़ी क़ुर्बानी करना चाहे, तो वह ऐसा कर सकता है, और अगर उसमें सात से कम लोग साझेदार होते हैं तो यइ भी उनके लिए अनुमेय है, परंतु एक गाय या एक ऊँट में सात से अधिक लोग साझेदार नहीं हो सकते।

लेकिन अगर नितंब न कटी हुई भेड़-बकरी की प्राप्ति दुर्लभ हो जाए ;इस कारण कि देश में मौजूद सभी बकरियाँ इसी प्रकार हों, और आपके लिए इनके अलावा चौपायों - जिनका उल्लेख किया जा चुका है – की क़ुर्बानी करना संभव न हो, तो ऐसी स्थिति में यही प्रत्यक्ष होता है कि उनकी क़ुर्बानी करना जायज़ है। विशेषकर जबकि बकरी-वाले ऐसा बकरी के हित के लिए करते हैं, और इसे कोई ऐसा ऐब (दोष) नहीं समझते हैं जिससे उसके मूल्य में कमी होती है ; क्योंकि ऐसी स्थिति में निषेध के कथन से इस्लाम के प्रतीकों में से एक प्रतीक और अनुष्ठान को निलंबित करना निष्कर्षिकत होगा।

और क़ुर्बानी के प्रतीक व अनुष्ठान के प्रदर्शन का हित, ऐबदार जानवर की क़ुर्बानी करने की खराबी से बढ़कर है। और विद्वानों के यहाँ यह निर्धारित व निश्चित नियम (सिद्धांत) है कि : ‘‘आसान व उपलब्ध चीज़ दुर्लभ की वजह से समाप्त नहीं होगी।’’ अर्थात वह चीज़ जिसे अपेक्षित तरीक़े पर करना आसान नहीं है, बल्कि उसका कुछ हिस्सा ही करना संभव है, तो वह समाप्त नहीं हो जायेगी, बल्कि उसमें से जितना करने की शक्ति है उसे किया जायेगा।

यह नियम या मूल सिद्धांतक नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इस कथन से लिया गया है : ‘‘जब मैं तुम्हें किसी चीज़ के करने का आदेश करूँ, तो तुम अपनी यथाशक्ति उसे करो।’’ इसे बुखारी (हदीस संख्याः 7288) और मुस्लिम (हदीस संख्याः 1337) ने रिवायत किया है।तथा देखिए: सुयूती की ‘‘अल-अश्बाह वन-नज़ाइर‘‘ (पृष्ठ: 159).

तथा अल-इज़्ज़ बिन अब्दुस्सलाम ने फरमाया : ‘‘जिसे आज्ञाकारिता के कामों में से किसी चीज़ का मुकल्लफ बनाया गया (यानी दायित्व सौंपा गया), तो वह उसमें कुछ को करने में सक्षम और कुछ को करने में असमर्थ है, तो वह उस चीज़ को अंजाम देगा जिसमें वह सक्षम है, और वह चीज़ उससे समाप्त हो जायेगी जिस में वह असमर्थ है।’’ समाप्त हुआ। ‘‘क़वाइदुल अहमाक’’ (2/7).

बलिदान (क़ुर्बानी)
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