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हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए यागेय है।इसमें कोई संदेह नहीं कि अल्लाह की अपने बंदों पर सबसे बड़ी नेमत यह है कि उसने उनपर अपने उस धर्म की ओर मार्गदर्शन करने की कृपा की है जिसे उसने अपने बंदों के लिए चुना है, और उन्हें उसका पालन करने का आदेश दिया है। अल्लाह तआला ने फरमाया:
الْيَوْمَ أَكْمَلْتُ لَكُمْ دِينَكُمْ وَأَتْمَمْتُ عَلَيْكُمْ نِعْمَتِي وَرَضِيتُ لَكُمُ الْإِسْلَامَ دِينًا
المائدة/3 .
“आज मैं ने तुम्हारे लिए तुम्हारे धर्म को मुकम्मल कर दिया। और तुम पर अपनी नेमतें पूरी कर दीं। और तुम्हारे लिए इस्लाम को धर्म के रूप में पसंद कर लिया।‘’ (सूरतुल मायदाः 3)
इब्ने कसीर रहिमहुल्लाह ने कहा:
इस उम्मत पर अल्लाह महिमावान की यह सबसे बड़ी नेमत है किः अल्लाह ने उनके लिए उनके धर्म को पूरा कर दिया। चुनाँचे उन्हें उसके अलावा किसी अन्य धर्म, तथा उनके पैगंबर के अलावा किसी अन्य पैगंबर की आवश्यकता नहीं है। इसीलिए अल्लाह ने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को अंतिम पैगंबर बनाया और आपको मनुष्यों और जिन्नों की ओर भेजा। इसलिए जो कुछ आपने हलाल ठहराया है उसके अलावा कुछ भी हलाल नहीं है और जो कुछ आपने हराम कर दिया है उसके अलावा कुछ भी हराम (निषिद्ध) नहीं है। और धर्म केवल वही कुछ है जो आपने निर्धारित किया है। तथा आपने जिस चीज़ की भी सूचना दी है वह सत्य और सच है, उसमें कोई झूठ नहीं है, और न वह असंभव है। जैसा कि अल्लाह तआला ने फरमाया :
وَتَمَّتْ كَلِمَتُ رَبِّكَ صِدْقًا وَعَدْلا
الْأَنْعَامِ: 115
"और तुम्हारे पालनहार का वचन सत्य और न्याय में पूरा हो गया।" (सूरतुल अन्आम : 115)
अर्थात सूचनाओं में सच्चा होने तथा आदेशों और निषेधों में न्यायपूर्ण होने में। चुनाँचे जब अल्लाह ने उनके लिए धर्म को पूरा कर दिया, तो उन पर नेमत पूरी हो गई।”
“तफ़सीर इब्ने कसीर (3/26)” से उद्धरण समाप्त हुआ।
शैख़ुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह ने कहा:
“अल्लाह की लोगों पर सबसे बड़ी नेमत यह है कि उसने उन्हें ईमान का आदेश दिया और उनका उसकी ओर मार्गदर्शन किया। तो ये लाग सामान्य नेमत वाले हैं जो अल्लाह के इस कथन में वर्णित हैं :
اهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِيمَ * صِرَاطَ الَّذِينَ أَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْ
"हमें सीधे मार्ग पर चला। उन लोगों का मार्ग, जिन पर तूने अनुग्रह किया है।” [सूरतुल-फातिहा : 6-7].
“जामिउल-मसाइल (4/284)” से उद्धरण समाप्त हुआ।
उन्होंने यह भी कहा:
अल्लाह की अपने बंदों पर सबसे बड़ी नेमत और उनपर सबसे प्रतिष्ठित उपकारः यह है कि उसने उनकी ओर अपने रसूलों को भेजा, उनपर अपनी पुस्तकें अवतरित कीं और उनके लिए सीधा मार्ग स्पष्ट किया। यदि ऐसा न होता, तो वे जानवरों और चौपायों की तरह होते, बल्कि वे उनसे भी बदतर स्थिति में होते। इसलिए जिसने अल्लाह के संदेश को स्वीकार किया और उसपर सुदृढ़ रहा, तो वह सृष्टि के सबसे अच्छे लोगों में से है। तथा जिसने उसे अस्वीकार कर दिया और उससे बाहर निकल गया, तो वह सृष्टि के सबसे बुरे लोगों में से है, और कुत्तों, सूअरों और गूंगे जानवरों से भी बदतर है।
मजमूउल-फतावा (19/100) से उद्धरण समाप्त हुआ।
इस प्रकार यह स्पष्ट हो गया कि अल्लाह की अपने बंदों पर सबसे बड़ी नेमत यह है कि उसने उन्हें अपने ऊपर और अपने रसूलों पर ईमान लाने और अपने धर्म और शरीयत (कानून) का पालन करने की तौफीक़ प्रदान की है। और जब अल्लाह महिमावान सारी सृष्टि का पालनहार है, और वही उनका रचयिता, उनका प्रबंधक और उनके सभी मामलों का नियंत्रक है, तथा वह सहनशील भी है अपने बंदों को दंडित करने में जल्दी नहीं करता है, और उनके अत्याचार पर और उनके हाथों ने जो कुछ किया है उसपर उनकी पकड़ नहीं करता है। यह सब केवल उस व्यक्ति के लिए नेमत है जो अल्लाह को पहचानता, उसपर ईमान रखता और उसके मार्गदर्शन का पालन करता है। परंतु जो व्यक्ति उस पर विश्वास नहीं रखता, तथा उसकी अवज्ञा करता और उसकी सहनशीलता और उसके बुराई पर पर्दा डालने से धोखे में पड़ जाता है, चुनाँचे वह उसपर निडर हो जाता है, तो यह उसके लिए जोखिम बन जाएगा (उसके लिए बुरा परिणाम होगा) और उसकी सज़ा और पीड़ा में वृद्धि होगी। बल्कि, यहाँ तक कि सांसारिक नेमतें जैसे कि आजीविका, कल्याण, धन और बाल-बच्चे इत्यादि, ये केवल उस व्यक्ति के लिए वास्तविक नेमत हैं जो उनके लिए आभार प्रकट करता है और उनके महत्व को पहचानता है, न कि उन लोगों के लिए जो उनके प्रति कृतघ्न हैं और उनका उपयोग अल्लाह की अवज्ञा में करते हैं।
शैख़ुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह ने फरमाया:
सबसे बड़ी नेमत जो अल्लाह ने बंदों को प्रदान की है, वह ईमान है, जिसमें कथन और कर्म दोनों शामिल हैं तथा वह बढ़ता और घटता है। वह आज्ञाकारिता और अच्छे कार्यों के करने से बढ़ता है, जबकि वह अवज्ञा और बुरे कर्म करने से घटता है। अतः मनुष्य जितना ही अधिक भलाई करता है, उतना ही अधिक उसका ईमान बढ़ जाता है। यही वह वास्तविक ईमान है जो अल्लाह के इस कथन में उल्लिखित है :
اهدنا الصِّرَاط الْمُسْتَقيم صِرَاط الَّذين أَنْعَمت عَلَيْهِم
"हमें सीधे मार्ग के लिए मार्गदर्शन कर, उन लोगों का मार्ग, जिन पर तूने अनुग्रह किया है।” [सूरतुल-फातिहा: ६-7].
बल्कि दुनिया की नेमतें धर्म की कृपा (नेमत) हैं, और क्या वे वास्तव में नेमत हैं या नहींॽ इस बारे में हमारे साथियों और अन्य लोगों के विद्वानों के दो प्रसिद्ध कथन हैं। सही दृष्टिकोण यह है किः वे एक रूप से नेमत हैं, भले ही वे सभी पक्षों से पूर्ण नेमत न हों। रही बात धर्म की नेमत जैसे कि आदेश का पालन करने और निषिद्ध को छोड़ देने कीः तो वह सब का सब अच्छा है और वही अह्ले-सुन्नत के निकट वास्तविक नेमत है; क्योंकि उनके विचार में अल्लाह ही ने सभी अच्छाई प्रदान की है ...”
“मुख्तसर अल-फतावा अल-मिस्रिय्या (268)” से उद्धरण समाप्त हुआ।
निष्कर्ष:
अल्लाह की अपने बंदों पर सबसे बड़ी नेमतः उन्हें अपने ज्ञान और अपनी तौहीद (एकेश्वरवाद), अपने पैगंबरों का पालन करने और अपनी शरीयत की प्रतिबद्धता की तौफीक़ देना है। रही बात सांसारिक नेमतों की, तो वे केवल उन लोगों के लिए नेमत होती हैं, जो उनका उचित उपयोग करते हैं, और उनसे अपने पालनहार के आज्ञापालन पर मदद प्राप्त करते हैं।
और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।