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हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
उत्तर :हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
इस्लाम की सुंदरता व गुणों का प्रदर्शन करना, उसके ऊँचे पद और उसकी शरीअत (धर्म-शास्त्र) और उसके प्रावधान का पालन करने से भलाई प्राप्त होने का उल्लेख करना जरूरी है।
आदमी दीन की कोई बात नहीं पाता है जो पहली नज़र में उसके लिए आपत्तिजनक प्रकट होती है मगर उसमें चिंतन करने और उसके उद्देश और अंजाम (अंतिम परिणाम) के बारे में गौर करने से उसके सामने ऐसी चीज़ स्पष्ट होकर आती है जो बिल्कुल उसके विपरीत होती है।
तहारत और वुज़ू के अंदर पानी के इस्तेमाल में किफायत (मितव्य्यता) से काम लेने पर उसकी लालायिता की दृष्टि से इस्लाम के मुद्दे को उठाने के दो पक्ष हैं :
सर्व प्रथम :
उसका शारीरिक और हार्दिक सफाई व सुथराई करने पर ध्यान देना, मोमिन जब हर नमाज़ के लिए वुज़ू करता है तो अपने गुनाहों से दिन में पाँच बार पवित्रता हासिल करता है, और मोमिन जब पाँच बार वुज़ू करता है और एक अंग पर तीन बार वुज़ू करता है तो उस से बेहतर सफाई कोई नहीं है।
नसाई (हदीस संख्या : 103) ने अब्दुल्लाह अस्सनाबही से रिवायत किया है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जब मोमिन बंदा वुज़ू करता है और कुल्ली करता है तो उसके मुँह से गुनाह निकल जाते हैं, और जब वह नाक को झाड़ता है तो उसकी नाक से गुनाह निकल जाते हैं, जब वह अपने चेहरे को धोता है तो उसके चेहरे से गुनाह निकल जाते हैं यहाँ तक कि उसकी दोनों आँखों की पलकों के नीचे से (भी) निकल जाते हैं, जब वह अपने दोनों हाथों को धोता है तो उसके दोनों हाथों से गुनाह निकल जाते हैं यहाँ तक कि उसके दोनो हाथों की अंगुलियों के नीचे से निकल जाते हैं, जब वह अपने सिर का मसह करता है तो उसके सिर से गुनाह निकल जाते हैं यहाँ तक कि उसके दोनों कानों से (भी) निकल जाते हैं, जब वह अपने दोनों पैरों को धोता है तो उसके दोनों पैरों से गुनाह निकल जाते हैं यहाँ तक कि उसके दोनों पैरों के नाखून के नीचे से भी निकल जाते हैं, फिर उसका मस्जिद की ओर चलकर जाना और उसका नमाज़ पढ़ना उसके लिए नफ्ल (अतिरिक्त) हो जाती है।”इसे अल्बानी ने सहीह नसाई में सही कहा है।
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने वुज़ू और नमाज़ के द्वारा गुनाहों से शुद्धता और पवित्रता प्राप्त करने के बारे में, मैल-कुचेल और गंदगी से पाक साफ होने का उल्लेख करते हुए अपने इस कथन के द्वारा बात की है :
“तुम्हारा क्या ख्याल है यदि तुम में से किसी के दरवाज़े पर एक नदी हो जिसमें वह प्रति दिन पाँच बार स्नान करे तो क्या उसके मैल में से कुछ बाक़ी रहेगा ॽ”लोगों ने कहा : उसके मैल कुचैल में से कुछ भी बाक़ी नहीं रहेगा। आप ने फरमाया : “तो यही पाँच दैनिक नमाज़ों का उदाहरण है, इनके द्वारा अल्लाह तआला गुनाहों को मिटा देता है।”इसे बुखारी (हदीस संख्या : 528) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 667) ने रिवायत किया है।
तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कितनी अच्छी मिसाल बयान की है जिसके द्वारा आप वुज़ू और नमाज़ के द्वारा गुनाहों से पाक व साफ होने को, पानी के द्वारा मैल-कुचैल और गंदगी से पाक व साफ होने के अवलोकन के माध्यम से स्पष्ट करते हैं।
दूसरा:
पाकी व सफाई हासिल करने में पानी के उपयोग में किफायत और मितव्य्यता से काम लेना उसमें अपव्यय न करना (यानी अत्यधिक पानी इस्तेमान न करना): तो यहाँ पर इस्लाम के मुद्दे को इस एतिबार से लिया जा सकता है कि वह हर चीज़ में अल्पव्यय करने, खपत के युक्तिकरण, और अपव्यय न करने तथा बेकार में खर्च न करने का बुलावा देता है, अतः हमारा इस्लाम के मुद्दे के बारे में बात करना जबकि हम वुज़ू के पानी में अल्पव्यय करने के बारे में बात कर रहें है, इस वस्तुस्थिति से है कि उसने हर चीज़ के अंदर अल्पव्यय, किफायत और सावधानी का आदेश दिया है और किसी भी चीज़ के अंदर अतिशयोक्ति न करने का आदेश दिया है, और उसी में से वुज़ू भी है।
शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह ने फरमाया :
“अल्लाह सर्वशक्तिमान ने अपनी महान पुस्तक में कर्ह आयतें अवतरित की हैं जिनमें अपव्यय और फुज़ूल खर्ची का उल्लेख किया गया है और उनसे रोका गया है, और अपने खाने, पीने और अन्य सभी प्रकार के खर्चों में अल्पव्यय करने वालों और शुद्ध व्यवहार करने वालों की प्रशंसा की गई है।
अतः बेकार में खर्च करना और अपव्यय करना वैध नहीं है, और न तो कंजूसी और कृपणता ही सही है, तथा न ही अतिशयोक्ति और न ही जफा। इस तरह अल्लाह ने सभी मामलों में मध्यस्थता अपनाने को धर्मसंगत करार दिया है, और उसी में से अतिशयोक्ति से निषेद्ध भी है, चुनाँचे बंदों को उस से रोका गया है, जैसाकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “तुम दीन में गुलू (अतिशयोक्ति) करने से बचो, क्योंकि तुम से पूर्व लोगों को दीन में गुलू ने नष्ट कर दिया।’’
तथा अल्लाह सर्वशक्तिमून फरमाता है:
يَا أَهْلَ الْكِتَابِ لا تَغْلُوا فِي دِينِكُمْ [سورة النساء : 171]
“ऐ किताब वालो (अर्थात् यहूदियो और ईसाइयो), अपने दीन में ग़ुलू (अतिशयोक्ति) न करो।” (सूरतुन्निसाः 171)
और अल्लाह तआला का उन्हें मना करना हमारे लिए भी मनाही है, तथा जफा और कोताही निषिद्ध है, बल्कि अनिवार्य है कि हम बिना अतिशयोक्ति (अतिवाद) और जफा के अनिवार्य चीज़ों को पूरा करें, हराम चीज़ों से बचें और भलाई के कामों में जल्दी करें।
गुलू (अतिशयोक्ति) का मतलब है : अल्लाह की शरीअत में वृद्धि करना, उदाहरण के तौर पर वह आदमी जिसके लिए शरई वुज़ू पार्याप्त (काफी) नहीं होता है, बल्कि वह पानी में अपव्यय करता है, वह अपने दोनों हाथों और दोनों पैरों को तीन बार धोने पर बस नहीं करता है बल्कि उस पर वृद्धि करता है, तो यह अल्लाह की शरीअत में गुलू का एक प्रकार है, इसी तरह अज़ान में, इसी तरह इक़ामत में और इसी तरह रोज़े इत्यादि में करता है।
अतः शरीअत में वृद्धि करने को ग़ुलू, इफ्रात और बिद्अत कहा जाता है, तथा नमाज़ में कमी के द्वारा कोताही करना और पूरा न करना जफा और तफ्रीत कहा जाता है, इसी तरह खर्चों के अंदर भी अपव्यय करना और बेकार में खर्च करना, तथा कंजूसी और कमी करना जायज़ नहीं है, बल्कि इन सब के दरमियान बेहतरीन और सबसे अच्छा मामला उसके बीच का है, जैसाकि अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फरमाया :
وَكَذَلِكَ جَعَلْنَاكُمْ أُمَّةً وَسَطًا [البقرة : 143].
“और इसी तरह हमने तुम्हें एक मध्यस्थ (बीच की) उम्मत बनाया है।” (सूरतुल बक़राः 143).
शरीअत हर चीज़ के अंदर मध्यस्थता लेकर आई है, गुलू (अतिशयोक्ति), जफा और सख्ती नहीं। अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फरमाया:
يَا بَنِي آدَمَ خُذُوا زِينَتَكُمْ عِنْدَ كُلِّ مَسْجِدٍ وَكُلُوا وَاشْرَبُوا وَلا تُسْرِفُوا إِنَّهُ لا يُحِبُّ الْمُسْرِفِينَ [الأعراف :31].
“ऐ आदम के बेटो, मस्जिद में जाने के हर समय अपना कपड़ा अपना लो, और खाओ पियो और अपव्यय न करो, निःसंदेह जो अपव्यय करते हैं अल्लाह उनसे महब्बत नहीं करता।” (सूरतुल आराफः 31)
अल्लाह तआला ने ज़ीनत अपनाने का आदेश दिया है क्योंकि उसमें सत्रपोशी (जननांगों का पर्दा) है, तथा उसके अंदर खूबसूरती है, फिर फरमाया : “तक़्वा (ईश्भय) का पोशाक सबसे बेहतर है।”तक़्वा का पोशाक : अल्लाह पर ईमान है, और अल्लाह का तक़्वा : उसकी आज्ञाकारिता, उसकी पसंदीदा चीज़ों का पालन करके और उसकी हराम की हुई चीज़ों से उपेक्षा करके, यह सबसे महान पोशाक है, और यही तक़्वा का लिबास है। फिर अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फरमाया : “खाओ और पियो और अपव्यय न करो।”खाने और पीने का आदेश दिया क्योंकि इनमें स्वास्थ्य की रक्षा और सुरक्षा है, और संरचना की ताक़त है, क्योंकि खाने और पीने को छोड़ देना मौत के लिए नेतृत्व करता है, हालांकि ऐसा करना जायज़ नहीं है, बल्कि इतनी मात्रा में खाना पीना अनिवार्य है जिससे स्वास्थ्य की रक्षा हो सके, और मनुष्य इसके अंदर मध्यस्थता अपनाये ताकि उसकी स्वास्थ्य बनी रहे और उसकी हालत ठीक रहे, चुनाँचे वह अधिक न खाये कि उसे बीमारी और तृप्ति और अनेक प्रकार के दर्द पैदा हो जाएं, तथा खाने में कोताही और कमी न करे कि उसके स्वास्थ्य को हानि पहुँचे, बल्कि इन दोनों के बीच का रास्ता आपनाए, इसीलिए अल्लाह ने फरमाया : “और अपव्यय न करो।”और हर चीज़ के अंदर यह इस्राफ और अपव्यय इस जीवन की बुराईयों में से है, अतः मोमिन व्यक्ति अपने सभी मामलों में औसत को बरकरार रखता है, और ईमान वाली महिला सभी मामलों में मियानारवी (मध्यस्थता) अपनाती है।”संक्षेप के साथ अंत हुआ।
“मजमूओ फतावा इब्ने बाज़” (4/109-112).
शायद आप ने देखा कि शरीअत ने मुसलमानों को वुज़ू में अल्पव्यय का निर्देश दिया है, और वह इसका आदेश देते हुए हर चीज़ में अल्पव्यय का आदेश देती है, वह इसका आदेश देते हुए दिन और रात में पाँच बार वुज़ू करना धर्मसंगत करार देती है, और हर वुज़ू में वुज़ू के अंगों को तीन बार धोना धर्मसंगत करती है।
चुनाँचे शरीअत की अच्छाईयाँ और गुणः हर दो आँख वाले के सामने स्पष्ट और उजागर हैं: वह सफाई व सुथराई का आदेश देती है जिससे कोई भी चीज़ परोक्ष और प्रत्यक्ष में अच्छी नहीं है, और उसके अंदर अल्पव्यय का और अपव्यय न करने का आदेश देती है, अपने उन सिद्धांतों और मूल सूत्रों के माध्यम से जो इसका आदेश करने, उस पर उभारने और उसे उन मूल सिद्धांतों की शाखाओं पर उतारने के माध्यम से।
हम अल्लाह तआला से तौफीक़ और शुद्धता का प्रश्न करते हैं।