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क्या हिसाब मनुष्य के जीवन की लंबाई के अनुसार भिन्न होगा, अर्थात् : क्या वह व्यक्ति जो 80 वर्ष तक जीवित रहा और उसे तौबा करने या अपने अच्छे कर्मों को बढ़ाने का पर्याप्त अवसर प्राप्त हुआ, उस व्यक्ति के समान है जिसकी बीस या तीस साल की आयु में मृत्यु हो गईॽ और क्या अन्य मामलों जैसे कि कार्य के प्रकार के साथ-साथ इसका भी एतिबार किया जाएगाॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
शरीयत के ग्रंथों से संकेत मिलता है कि इस दुनिया में निर्माण की अवधि का हिसाब और सज़ा पर प्रभाव पड़ता है। और उसी में से निम्नलिखित है :
अबू बरज़ा असलमी रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है, उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “क़ियामत के दिन किसी बंदे के दोनों पैर नहीं टल सकते यहाँ तक कि उससे पूछ लिया जाए : उसकी आयु (जीवनकाल) के बारे में कि उसे किस चीज़ में बितायाॽ और उसके ज्ञान के विषय में कि उसके साथ क्या कियाॽ और उसके धन के बारे में कि उसे कहाँ से हासिल किया और किस चीज़ में खर्च कियाॽ और उसके शरीर (स्वास्थ्य) के विषय में कि उसे किस चीज़ में खपायाॽ” इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 2417) ने रिवायत किया है और उन्होंने कहा : यह एक हसन, सहीह हदीस है।
इस अर्थ को अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु द्वारा वर्णित यह हदीस और अधिक स्पष्ट करती है, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “अल्लाह ने उस व्यक्ति के उज़्र (बहाना) को समाप्त कर दिया, जिसकी मृत्य को विलंब कर दिया, यहाँ तक कि वह साठ साल की आयु को पहुँच गया।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 6419) ने रिवायत किया है।
इब्ने ह़जर रहिमहुल्लाह ने कहा :
हदीस का शब्द : “अल्लाह ने बहाना समाप्त कर दिया”, इसका अर्थ यह है कि : उसके लिए कोई बहाना बाक़ी नहीं बचा, जैसे कि वह कहे : यदि मेरी आयु बढ़ा दी गई होती, तो मैं वह अवश्य किया होता, जिसका मुझे देश दिया गया था। यह शब्द उस समय बोला जाता है जब आदमी को उज़्र की अंतिम सीमा तक पहुँचा दिया जाए और उसे उसमें सक्षम बना दिया जाए।” “फत्ह़ुल-बारी” (११/२४०) से उद्धरण समाप्त हुआ।
तथा अल्लाह तआला ने फरमाया :
وَهُمْ يَصْطَرِخُونَ فِيهَا رَبَّنَا أَخْرِجْنَا نَعْمَلْ صَالِحًا غَيْرَ الَّذِي كُنَّا نَعْمَلُ أَوَلَمْ نُعَمِّرْكُمْ مَا يَتَذَكَّرُ فِيهِ مَنْ تَذَكَّرَ وَجَاءَكُمُ النَّذِيرُ فَذُوقُوا فَمَا لِلظَّالِمِينَ مِنْ نَصِيرٍ [فاطر : 37] .
“और वे उसमें चिल्लाएँगे : ऐ हमारे पालनहार! हमें (जहन्नम से) निकाल ले। हम जो कुछ किया करते थे, उसके अलावा नेकी के काम करेंगे। क्या हमने तुम्हें इतनी आयु नहीं दी थी कि उसमें जो शिक्षा ग्रहण करना चाहता, वह शिक्षा ग्रहण कर लेताॽ हालाँकि तुम्हारे पास डराने वाला (नबी) भी तो आया था! अतः तुम (यातना) चखो। अत्याचारियों का कोई सहायक नहीं है।” (सूरत फ़ातिर : 37)
इब्ने कसीर रहिमहुल्लाह ने कहा :
“ أَوَلَمْ نُعَمِّرْكُمْ مَا يَتَذَكَّرُ فِيهِ مَنْ تَذَكَّرَ “क्या हमने तुम्हें इतनी आयु नहीं दी थी कि उसमें जो शिक्षा ग्रहण करना चाहता, वह शिक्षा ग्रहण कर लेताॽ” अर्थात् : क्या तुम दुनिया में इतनी आयु नहीं जिए कि यदि तुम उन लोगों में से होते जो सत्य से लाभान्वित होते हैं, तो तुम अपने जीवनकाल में इससे अवश्य लाभान्वित हो सकते थेॽ
व्याख्याकारों ने उस आयु की मात्रा के बारे में मतभेद किया जो यहाँ मुराद है। अली बिन अल-हुसैन ज़ैनुल-आबिदीन से रिवायत किया गया है कि उन्होंने कहा : सत्रह साल की मात्रा।
और क़तादह ने कहा : यह बात जान लो कि दीर्घायु एक तर्क और प्रमाण है, इसलिए हम इस बात से अल्लाह की शरण में आते हैं कि हमें दीर्घायु का ताना दिया जाए। यह आयत : أَوَلَمْ نُعَمِّرْكُمْ مَا يَتَذَكَّرُ فِيهِ مَنْ تَذَكَّرَ “क्या हमने तुम्हें इतनी आयु नहीं दी थी कि उसमें जो शिक्षा ग्रहण करना चाहता, वह शिक्षा ग्रहण कर लेताॽ” अवतरित हुई, और उनमें अठारह साल का भी आदमी था ...
इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : अल्लाह ने अपने इस कथन : أَوَلَمْ نُعَمِّرْكُمْ مَا يَتَذَكَّرُ فِيهِ مَنْ تَذَكَّرَ “क्या हमने तुम्हें इतनी आयु नहीं दी थी कि उसमें जो शिक्षा ग्रहण करना चाहता, वह शिक्षा ग्रहण कर लेताॽ” में जिस आयु में आदम के बेटे के बहाने को समाप्त कर दिया है, वह साठ साल है।
यह कथन इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु से सबसे सही (प्रामाणिक) रिवायत है, और वास्तव में भी यही सही है।” ...
“तफ़सीर इब्ने कसीर” (6/553) से उद्धरण समाप्त हुआ।
अल्लाह सर्वशक्तिमान ने इस दुनिया में काफिर के जीवन को लम्बा करना और उसे मोहलत देना उसके लिए सज़ा बढ़ाने का एक कारण बनाया है। चुनाँचे सर्वशक्तिमान अल्लाह ने फरमाया :
وَلَا يَحْسَبَنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا أَنَّمَا نُمْلِي لَهُمْ خَيْرٌ لِأَنْفُسِهِمْ إِنَّمَا نُمْلِي لَهُمْ لِيَزْدَادُوا إِثْمًا وَلَهُمْ عَذَابٌ مُهِينٌ [آل عمران:178]
“जो लोग काफ़िर हो गए, वे हरगिज़ यह न समझें कि हमारा उन्हें ढील देना, उनके लिए अच्छा है। वास्तव में, हम उन्हें इसलिए ढील दे रहे हैं, ताकि उनके पाप और बढ़ जाएँ। तथा उनके लिए अपमानजनक यातना है।” (सूरत आल इमरान : 178).
शैख अब्दुर्रहमान अस-सा’दी रहिमहुल्लाह ने कहा :
“अल्लाह ने फरमाया : إِنَّمَا نُمْلِي لَهُمْ لِيَزْدَادُوا إِثْمًا وَلَهُمْ عَذَابٌ مُهِينٌ “वास्तव में हम उन्हें इसलिए ढील दे रहे हैं, ताकि वे पाप में वृद्धि करें और उनके लिए अपमानजनक सज़ा है।” : चुनाँचे अल्लाह सर्वशक्तिमान अत्याचारी को ढील देता है, यहाँ तक कि उसकी सरकशी व अत्याचार बढ़ जाती है और वह निरंतर कुफ़्र करता रहता है। यहाँ तक कि वह उसे एक शक्तिशाली व प्रभुत्वशाली हस्ती के रूप में पकड़ लेता है। इसलिए अत्याचारियों को ढील दिए जाने से सावधान रहना चाहिए और वे यह न सोचें कि वे महान और सर्वोच्च हस्ती की पकड़ से छूट जाएँगे।” “तफ़सीर अस-सा’दी” (पृष्ठ : 158) से उद्धरण समाप्त हुआ।
शैख अल-अमीन अश-शन्क़ीती रहिमहुल्लाह ने कहा :
“इस महान आयत में अल्लाह ने उल्लेख किया है कि वह काफिरों को, उनके पाप में वृद्धि करने और यातना की तीव्रता को बढ़ाने के लिए, ढील देता और उन्हें अवसर प्रदान करता है। तथा उसने एक दूसरे स्थान पर स्पष्ट किया है कि वह उन्हें इस ढील का आनंद लेने का अवसर नहीं देता है जब तक कि वह उन्हें तंगियों और विपत्तियों से ग्रस्त नहीं करता। फिर यदि वे विनम्र (होकर अल्लाह के अधीन) नहीं होते, तो वह उनपर नेमतों के दरवाज़े खोल देता है और उन्हें अवसर प्रदान करता है, यहाँ तक कि उन्हें अचानक पकड़ लेता है।” ...
“अज़वाउल-बयान” (1 / 352-353) से उद्धरण समाप्त हुआ।
निष्कर्ष :
यह कि बंदे के हिसाब और उसके कार्यों के तराजू में दीर्घायु का प्रभाव : दो प्रकार से होता है :
पहला :
लंबी आयु अल्लाह का उसके बंदों पर एक तर्क (हुज्जत) है। चुनाँचे इसके बाद बंदा उम्र की मोहलत और समय की लंबाई नहीं माँग सकता, जो अच्छे कर्म करने में उसकी मदद करे। क्योंकि यह सब कुछ उसे प्राप्त था और उसे इतना अवसर मिला था कि वह इबरत पकड़ता और उपदेश ग्रहण करता, अपनी गुमराही से बाज़ आ जाता और अपने पालनहार की ओर लौट आता; लेकिन उसने ऐसा नहीं किया और उसने उस अवसर और समय को बर्बाद कर दिया, यहाँ तक कि वह सब उसके लिए अफसोस और पछतावे का सामान बन गया।
दूसरा :
यह लंबा जीवन और समय, उसके काम के लिए एक बर्तन है; अब या तो वह इसे अच्छे काम से भर दे, और या तो इसे लापरवाही, बर्बादी और दुर्व्यवहार और बुरे कामों से भर दे। इसीलिए क़ियामत के दिन उसके पैर उस समय तक नहीं हट सकते, जब तक कि उससे उस बर्तन के बारे में यह न पूछ लिया जाए कि : उसने उसे किस चीज़ से भरा है।
यह कल्पना नहीं की जा सकती है कि क़ियामत के दिन बंदे का हिसाब, बिना काम के, केवल समय पर आधारित होगा। क्योंकि वह समय बिना कोई ऐसा काम किए, जो उसे आगे बढ़ाता हो, या कोई लापरवाही (कोताही) किए, जो उसे उसके पालनहार से पीछे करती हो, बंदे से समाप्त नहीं होता है। इसी तरह अच्छा और बुरा काम भी है, उसके लिए एक समय और एक उम्र का होना ज़रूरी है, जिसमें वह (कार्य) अंजाम पाए।
इसीलिए सर्वशक्तिमान अल्लाह ने अपने बंदों से फरमाया :
كَلَّا وَالْقَمَرِ * وَاللَّيْلِ إِذْ أَدْبَرَ * وَالصُّبْحِ إِذَا أَسْفَرَ * إِنَّهَا لَإِحْدَى الْكُبَرِ * نَذِيرًا لِلْبَشَرِ * لِمَنْ شَاءَ مِنْكُمْ أَنْ يَتَقَدَّمَ أَوْ يَتَأَخَّرَ [المدثر: 32-37]
“हरगिज़ नहीं, क़सम है चाँद की! तथा रात की, जब वह जाने लगे! और सुबह की, जब वह रौशन हो जाए! निःसंदेह वह (जहन्नम) एक बहुत बड़ी चीज़ है। मनुष्य को डराने वाली है। तुम में से उसके लिए, जो आगे बढ़ना या पीछे हटना चाहे।” (सूरतुल-मुद्दस्सिर : 32-37)
इब्नुल-क़ैयिम रहिमहुल्लाह ने कहा :
“सही समय को बर्बाद करना, अपूर्णता की निचाई की ओर आह्वान करता है, क्योंकि उसकी रक्षा करने वाला पूर्णता की ऊँचाइयों (सीढ़ियों) पर चढ़ने वाला होती है; इसलिए यदि उसने उसे बर्बाद कर दिया, तो वह अपने स्थान पर ठहरा नहीं रहेगा; बल्कि वह कुछ स्तर कमी (नीचे) की ओर आ जाएगा!!
इसलिए अगर वह प्रगति में नहीं है, तो अवश्य ही वह पीछे हो रहा है!!
अतः बंदा (निरंतर) चल रहा है, खड़ा नहीं है; या तो वह ऊपर जा रहा है, या नीचे आ रहा है। या तो वह आगे बढ़ रहा है या तो पीछे लौट रहा है।
प्रकृति में, या शरीयत में बिल्कुल भी ठहरना नहीं है; यह जन्नत या जहन्नम की ओर सबसे तेज़ी के साथ तह किए जाने वाले चरणों के अलावा कुछ भी नहीं है; चुनाँचे कोई तेज़ गति वाला है, तो कोई धीमी गति वाला, तथा कोई आगे बढ़ने वाला है, तो कोई पीछे होने वाला।
रास्ते में कोई भी बिलकुल खड़ा नहीं है; बल्कि, वे केवल मार्ग की दिशा में, तथा गति और धीमेपन के मामले में भिन्न होते हैं : إِنَّهَا لَإِحْدَى الْكُبَرِ * نَذِيرًا لِلْبَشَرِ * لِمَنْ شَاءَ مِنْكُمْ أَنْ يَتَقَدَّمَ أَوْ يَتَأَخَّرَ “निःसंदेह वह (जहन्नम) एक बहुत बड़ी चीज़ है। मनुष्य को डराने वाली है। तुम में से उसके लिए, जो आगे बढ़ना या पीछे हटना चाहे।”
यहाँ अल्लाह ने खड़े होने वाले का उल्लेख नहीं किया है। क्योंकि जन्नत और जहन्नम के बीच कोई स्थान नहीं है, तथा किसी चलने वाले (सालिक) के लिए दोनों लोकों के अलावा कहीं और जाने के लिए बिल्कुल कोई रास्ता नहीं है। इसलिए जो व्यक्ति अच्छे कार्यों के साथ इसकी ओर आगे नहीं बढ़ता है, तो वह बुरे कामों के साथ उसकी ओर पीछे रहने वाला है।”
“मदारिजुस-सालिकीन” (1/278) से उद्धरण समाप्त हुआ।
इसीलिए क़ियामत का दिन : हार-जीत का दिन (काफ़िरों की हानि और घाटा प्रकट होने का दिन) है, तथा वह दुःख और पछतावे का दिन है, उस व्यक्ति को दु:ख और पछतावा होगा, जिसने अपना जीवन अल्लाह की आज्ञाकारिता के अलावा में बर्बाद कर दिया, जबकि उसे अवसर प्राप्त हुआ और उसे मोहलत (समय सीमा) दी गई। इस तरह जीवनकाल बर्बाद हो गया और बहाने समाप्त हो गए!!
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।