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छोटी जुदाई और बड़ी जुदाई के बीच अंतर तथा रजई तलाक़ वाली महिला का इद्दत के दौरान घर से बहाहर निकले का हुक्म

17-05-2021

प्रश्न 258878

क्या छोटी जुदाई वाली तलाक़-बाइन की इद्दत गुज़ारने वाली महिला के लिए अपने परिवार के घर से बाहर रात बिताना जायज़ है, अगर उसका काम इसकी अपेक्षा करता है, उदाहरण के तौर पर, उसी देश के दूसरे क्षेत्र में किसी सम्मेलन में भाग लेने के लिएॽ यह नहीं कि वह घर से बाहर रात बिताना चाहती हैॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सर्व प्रथम :

यदि पति अपनी पत्नी को तीन तलाक़ें देता है, तो यह बड़ी जुदाई (बैनूनह कुब्रा) है, और इसके बाद वह महिला उस पति के लिए हलाल नही होती है, सिवाय इसके कि वह किसी अन्य पति से शादी कर ले (और फिर उससे जुदाई हो जाए)।

लेकिन अगर उसका पति उसे पहली या दूसरी तलाक़ दे, और उसे छोड़ दे, यहाँ तक कि उसकी इद्दत (प्रतीक्षा अवधि) समाप्त हो जाए, और उसे वापस न लौटाए, तो यह छोटी जुदाई (बैनूनह सुग़्रा) है।

इसी तरह : अगर वह उसे मुआवज़ा लेकर तलाक़ देता है – यानी उसे ख़ुला’ देता है - तो वह महिला मात्र उसके छोड़ने ही से उससे जुदा हो जाएगी, भले ही उसकी इद्दत समाप्त न हुई हो।

शैख़ इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने “अश-शर्हुल-मुम्ते” (12/468) में कहा :

“बैनूनह : का अर्थ जुदाई है, और “बाइन तलाक़” (यानी पति-पत्नी के बीच जुदाई डालने वाले तलाक़) के दो प्रकार हैं :

एक “बैनूनह कुब्रा” (बड़ी जुदाई) वाला बाइन तलाक़, और इससे अभिप्राय तीन तलाक़ें हैं।

दूसरा “बैनूनह सुग़्रा” (छोटी जुदाई) वाला बाइन तलाक़, और इससे अभिप्राय मुआवज़ा पर तलाक़ देना है।

यदि पति अपनी पत्नी को दो बार पहले तलाक़ दे चुका है, फिर उसने उसे तीसरी बार तलाक़ दे दी, तो हम कहेंगे कि : यह बैनूनह कुब्रा (बड़ी जुदाई) वाली तलाक़ है, जिसका मतलब यह है कि वह महिला उस पति के लिए अब हलाल नहीं है, सिवाय इसके कि वह किसी दूसरे आदमी से शादी करे (फिर उससे जुदाई हो जाए)।

और अगर वह उसे मुआवज़ा पर तलाक़ देता है, तो वह बैनूनह सुग़्रा अर्थात् छोटी जुदाई वाला बाइन होगा। तो “बाइन” का निश्चित अर्थ क्या हैॽ इसका अर्थ यह है कि पति के लिए उसे वापस लौटाना हलाल (वैध) नहीं है, भले ही वह उसे लौटाना चाहे; ...”

तथा उन्होंने यह भी कहा, जैसा कि “अश-शर्हुल-मुम्ते” (12/130) में है :

“बैनूनह सुग़्रा (छोटी जुदाई) वाली महिला वह है, जिसे उसके पति ने ख़ुला’ दिया हो, और उसे छोटी जुदाई इसलिए कहा जाता है; क्योंकि ख़ुला’ देने वाले पति के लिए इद्दत के दौरान और उसके बाद उससे शादी करना जायज़ है। लेकिन बैनूनह कुब्रा (बड़ी जुदाई) वाली महिला वह है, जिसे तीन तलाक़ के माध्यम से जुदाई प्राप्त हुई हो। और इसके आधार पर, इद्दत बिताने वाली महिलाएँ तीन प्रकार की हैं :

पहला : रजई तलाक़ वाली, यह ऐसी इद्दत बिताने वाली महिला है जिसे उसका पति एक नये विवाह अनुबंध के बिना वापस लौटा सकता है।

दूसरा : बैनूनह सुग़्रह (छोटी जुदाई) वाली महिला, यह ऐसी महिला है जिसे उसका पति बिना वापस लौटाए एक नये अनुबंध के साथ उससे शादी कर सकता है। अर्थात् वह उसे वापस लौटाने का अधिकार नहीं रखता है, लेकिन उसे उसके साथ विवाह-अनुबंध करने का अधिकार है। इसलिए हर इद्दत बिताने वाली महिला, जो एक नये अनुबंध के बिना हलाल नहीं है, उसकी जुदाई बैनूनह सुग़्रा यानी छोटी जुदाई है।

तीसरा : बैनूनह कुब्रा (बड़ी जुदाई) वाली महिला, इससे अभिप्राय वह महिला है, जिसे उसके पति ने तीनों तलाक़ों में से अंतिम तलाक़ दी हो। तो वह ज्ञात शर्तों के साथ, किसी दूसरे पति से शादी करने (और फिर उससे जुदाई होने) के बाद ही हलाल होगी।” उद्धरण समाप्त हुआ।

दूसरा :

यदि महिला की रजई तलाक़ की इद्दत (प्रतीक्षा की अधि) समाप्त हो गई है : तो उसको तलाक़ देने वाले पति की उसके ऊपर कोई अभिभावकता नहीं है, और उसे जहाँ भी वह चाहे बाहर जाने या रात गुज़ारने का अधिकार है।

और अगर वह अभी भी इद्दत (प्रतीक्षा की अवधि) में है, तो रजई तलाक़ की इद्दत बिताने वाली महिला के लिए अपने घर से बाहर निकलना जायज़ है। और उसे पति की मृत्यु की इद्दत गुज़ारने वाली महिला की तरह, ऐसा करने से मना नहीं किया गया है। लेकिन वह उस समय तक अपने घर से बाहर नहीं जाएगी जब तक कि उसका पति उसे अनुमति न प्रदान कर दे। क्योंकि वह अभी भी उसके अधीन है, उसके लिए वे अधिकार हैं जो पत्नियों के होते हैं, जैसे भरणपोषण, आवास, रात बिताना इत्यादि, तथा उसपर वे दायित्व हैं जो पत्नियों पर होते हैं।

इसी तरह, अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा कहा करते थे : “यदि कोई आदमी अपनी पत्नी को, एक या दो तलाक़ देता है, तो वह उसकी अनुमति के बिना अपने घर से बाहर नहीं जाएगी।” इसे इब्ने अबी शैबा ने “मुसन्नफ़” (4/142) में वर्णन किया है।

शैख़ इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने कहा : सबसे प्रबल (राजेह) कथन यह है कि अगर तलाक़शुदा महिला का तलाक़ रजई है, तो वह उस पत्नी की तरह है, जिसका तलाक़ नहीं हुआ है। इसका अर्थ यह है कि उसके लिए अपने पड़ोसियों या रिश्तेदारों के घर जाना, या प्रवचन सुनने के लिए मस्जिद जाना, या इसी तरह की अन्य चीज़ें, जायज़ हैं, और वह उस महिला की तरह नहीं है जिसके पति की मृत्यु हो गई है।

जहाँ तक अल्लाह सर्वशक्तिमान के इस कथन का संबंध है :

لا تُخْرِجُوهُنَّ مِنْ بُيُوتِهِنَّ وَلا يَخْرُجْنَ  [سورة الطلاق: 1]

“तुम उन्हें उनके घरों से न निकालो और न वे स्वयं निकलें।” (सूरतुत-तलाक़ : 1)

तो यहाँ निकलने का मतलब अलग होना है; अर्थात् वह घर को छोड़कर न जाए और दूसरे घर में रहने लगे..” फतावा “नूरुन अलद्-दर्ब” से उद्धरण समाप्त हुआ।

तीसरा :

रहा प्रश्न उसी देश के किसी अन्य क्षेत्र में एक सम्मेलन में भाग लेने का : तो यदि इसका मतलब यह है कि महिला अपने निवास स्थान से यात्रा करेगी, तो उसके लिए ऐसा करना जायज़ नहीं है, जब तक कि उसके साथ उसका कोई मह़्रम न हो।

बुखारी (हदीस संख्या : 3006) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1341) ने इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि उन्होंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फरमाते हुए सुना : “कोई भी पुरुष हरगिज़ किसी महिला के साथ एकांत में न रहे। तथा निश्चित रूप से कोई महिला यात्रा न करे, परंतु उसके साथ उसका कोई मह़्रम हो।”

तो एक आदमी खड़ा हुआ और कहने लगा : ऐ अल्लाह के रसूल! मैंने अमुक युद्ध में नाम लिखवाया है और मेरी पत्नी ह़ज्ज के लिए निकली है। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “तुम जाओ और अपनी पत्नी के साथ ह़ज्ज करो।”

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

इद्दत (विधवा या तलाक़शुदा स्त्री की प्रतीक्षा की अवधि)
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