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इबादत को सरल बनाने और उसके स्वाद की अनुभूति के कारण

21-02-2021

प्रश्न 258910

क्या किसी मुसलमान के लिए यह सामान्य बात है कि उसके लिए आज्ञाकारिता इतना अधिक कठिन हो कि वह अपने दिल में किसी दोष के कारण, जैसे कि कायरता या किसी अन्य वजह से, उसे करने में सक्षम न हो। इसलिए वह अपने दिल में कहता है कि अगर मैं अल्लाह को वास्तिवक रूप से जानता, तो मैं इस आज्ञाकारिता को आसानी से कर सकता। और यह सही बात है। इसलिए वह अल्लाह को जानने के लिए ब्रह्मांड में चिंतन करने के द्वारा अपनी यात्रा शुरू करता है, ताकि उसका ईमान बढ़ जाए। लेकिन इसके बावजूद भी आज्ञाकारिता उसके लिए कठिन ही रहती है। इसलिए उसे बहुत दुख होता है कि वह असहाय और कायर है। लेकिन मेरे दिल में यह बात बैठ गई है कि एकमात्र ब्रह्मांड में, और अल्लाह की नेमतों में चिंतन करना पर्याप्त नहीं है। बल्कि दुआ करना आवश्यक है, क्योंकि यह सफलता का रहस्य और उसकी कुंजी है। तो क्या यह कथन जिसके साथ मैं अपने आप को सांत्वना देता हूँ, सही हैॽ आशा है कि सटीक उत्तर देंगे।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

नेकियों की तौफ़ीक़ (सामर्थ्य) प्राप्त होने और उसके स्वाद की अनुभूति के बहुत-से कारण हैं, जिनमें से सबसे बड़ा अल्लाह का ज्ञान, उससे प्रेम और उससे दुआ करना है, जिसका आपने उल्लेख किया है।

1- सर्वशक्तिमान अल्लाह का ज्ञान केवल उसकी दृश्यमान (ब्रह्मांडीय) निशानियों में चिंतन करने से नहीं प्राप्त होता है, बल्कि उसकी पढ़ी जाने वली शरई आयतों में चिंतने करने से भी प्राप्त होता है, इस प्रकार कि उसकी पुस्तक का पाठ किया जाए, उस पर चिंतन किया जाए और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत में मनन-चिंतन किया जाए, जो कि अल्लाह की ओर से एक वह़्य (प्रकाशना) है।

चुनाँचे बंदा जितना ही अधिक मननचिंतन और अच्छी समझ के साथ अल्लाह की आयतों (संकेतों) में सोच-विचार करने का आदी होगा; उसका हृदय उसके प्रेम, उसके ज्ञान और उसके प्रति रुचि से भर जाएगा। इस प्रकार उसके ईमान और विश्वास (यक़ीन) में वृद्धि होगी, और यह उसके लिए इबादत को आसान बना देगा, चाहे वह कितना भी कठिन प्रतीत क्यों न हो। और यही कारण है कि सदाचारी लोगों ने सर्वशक्तिमान अल्लाह के मार्ग में अपनी जानें न्योछावर कर दीं।

सर्वशक्तिमान अल्लाह ने फरमाया :

إِنَّمَا الْمُؤْمِنُونَ الَّذِينَ إِذَا ذُكِرَ اللَّهُ وَجِلَتْ قُلُوبُهُمْ وَإِذَا تُلِيَتْ عَلَيْهِمْ آيَاتُهُ زَادَتْهُمْ إِيمَانًا وَعَلَى رَبِّهِمْ يَتَوَكَّلُونَ الَّذِينَ يُقِيمُونَ الصَّلَاةَ وَمِمَّا رَزَقْنَاهُمْ يُنْفِقُونَ أُولَئِكَ هُمُ الْمُؤْمِنُونَ حَقًّا لَهُمْ دَرَجَاتٌ عِنْدَ رَبِّهِمْ وَمَغْفِرَةٌ وَرِزْقٌ كَرِيمٌ   [سورة الأنفال: 2-4].

“वास्तव में, ईमान वाले वही हैं कि जब अल्लाह का ज़िक्र किया जाता है, तो उनके दिल काँप उठते हैं और जब उनके समक्ष उसकी आयतें पढ़ी जाती हैं, तो वे (आयतें) उनके ईमान को और अधिक कर देती हैं, और वे अपने पालनहार पर भरोसा रखते हैं। वे लोग जो नमाज़ को स्थापित करते हैं तथा हमने उन्हें जो कुछ प्रदान किया है, उसमें से खर्च (दान) करते हैं। वही लोग सच्चे ईमान वाले हैं। उनके लिए उनके रब के पास बड़े दर्जे हैं तथा क्षमा और सम्मानित आजीविका है।” (सूरतुल अनफालः 2-4)

तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सहाबा कहा कहते थे : आओ एक घड़ी ईमान ले आएँ! फिर वे अल्लाह सर्वशक्तिमान का ज़िक्र करते थे।

शैखुल-इस्लाम इब्ने तैमिय्यह रहिमहुल्लाह ने कहा : “मुआज़ बिन जबल रज़ियल्लाहु अन्हु एक आदमी से कहते थे : हमारे साथ बैठो, हम ईमान ले आएँ, हम अल्लाह तआला को याद करें।

अबुल-यमान ने रिवायत किया : हमसे सफवान ने शुरैह़ बिन उबैद के माध्यम से हदीस बयान की, कि अब्दुल्लाह बिन रवाह़ा अपने साथियों में से एक आदमी का हाथ पकड़ते और कहते : हमारे साथ आओ, हम एक घड़ी ईमान ले आएँ (अल्लाह का ज़िक्र करें)। क्योंकि हम ज़िक्र की मजलिस में हैं।” मजमूउल-फ़तावा (7/225) से उद्धरण समाप्त हुआ।

2- जितना अधिक बंदा अल्लाह की ब्रह्मांडीय निशानियों पर विचार करेगा; उसका हृदय अल्लाह के प्रति महिमा और गौरव व सम्मान से भर जाएगा। इसी कारण अल्लाह ने हमें इस मनन-चिंतन और सोच-विचार के लिए आह्वान किया है। अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फरमाया :

وَفِي أَنْفُسِكُمْ أَفَلا تُبْصِرُونَ   [الذاريات :21].

“और तुम्हारी आत्माओं में (भी निशानियाँ हैं), क्या तुम्हें दिखाई नहीं देताॽ” (सूरतुज़-ज़ारियात :21).

क़तादह रहिमहुल्लाह ने कहा : जो कोई भी अपने बारे में विचार करता है,  वह जानता है कि उसके जोड़ इबादत के लिए नरम किए गए हैं।

तथा सर्वशक्तिमान अल्लाह ने फरमाया :

وَكَذَلِكَ نُرِي إِبْرَاهِيمَ مَلَكُوتَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَلِيَكُونَ مِنَ الْمُوقِنِينَ [الأنعام : 75].

“इसी तरह हम इबराहीम को आकाशों और धरती का राज्य दिखाते हैं, ताकि वह पूर्ण विश्वास करने वालों में से हो जाएँ।” (सूरतुल अनआम : 75).

यह इंगित करता है कि ब्रह्मांड में पाई जाने वाली अल्लाह की निशानियों में मनन-चिंतन करने से ईमान और यक़ीन (विश्वास) में वृद्धि होती है।

इमाम अबू बक्र इब्नुल-अरबी अल-मालिकी रहिमहुल्लाह ने कहा : “सर्वशक्तिमान अल्लाह ने क़ुरआन की बहुत सारी आयतों में अपनी निशानियों में चिंतन करने और अपनी रचनाओं (प्राणियों) से उपदेश ग्रहण करने का आदश दिया ​​है। इससे वह यक़ीन (विश्वास) में वृद्धि करना, ईमान में बढ़ोतरी, और दिलों को एकेश्वरवाद पर सुदृढ़ करना चाहता है।

तथा इब्नुल-क़ासिम ने मालिक से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : उम्मुद्-दर्दा से कहा गया : अबुद्-दर्दा का सबसे अधिक काम क्या थाॽ उन्होंने कहा : उनका सबसे अधिक काम मनन-चिंतन करना था। उनसे कहा गया : क्या आप सोच-विचार को कोई कार्य समझते हैंॽ उन्होंने कहा : हाँ। वही यक़ीन है।

तथा इब्नुल-मुसैयिब से ज़ुहर और अस्र के बीच नमाज़ पढ़ने के बारे में कहा गयाॽ

तो उन्होंने कहा : यह इबादत नहीं है। इबादत तो अल्लाह की हराम (निषिद्ध) ठहराई हुई चीज़ से बचना और अल्लाह के मामले के बारे में सोचना है।

तथा अल-हसन ने कहा : एक घंटा के लिए सोच-विचार करना, एक रात क़ियाम करने (इबादत में बिताने) से बेहतर है।” अहकामुल-क़ुरआन” (2/351) से उद्धरण समाप्त हुआ।

3- ईमान में वृद्धि, सर्वशक्तिमान अल्लाह के प्रति रूचि तथा उसकी इबादत से प्रेम और उससे आनंदित होने के कारणों में से : बंदे का अपने ऊपर अपने नफ़्स, अपने परिवार और अपने धन में अल्लाह की नेमतों पर मनन-चिंतन करना है। क्योंकि इसके परिणामस्वरूप प्रेम पैदा होता है और वह धन्यवाद के लिए आह्वान करता है तथा इबादत को आत्मा पर हल्का कर देता और आसान बना देता है।

बंदे का अपने पालनहार के प्रति प्रेम जितना अधिक होता है, उतना ही वह इबादत का स्वाद व आनंद महसूस करता है।

इब्नुल-क़ैयिम रहिमहुल्लाह ने कहा : “प्रेमी को अपने प्रिय की सेवा करने और उसकी आज्ञाकारिता में अपने व्यवहार से आनंद मिलता है। और प्यार जितना मज़बूत होता है, आज्ञाकारिता और सेवा का आनंद उतना ही अधिक पूर्ण होता है। इसलिए बंदे को अपने ईमान और अल्लाह के प्रति अपने प्रेम को इस पैमाने के साथ नापना चाहिए और देखना चाहिए कि क्या वह उसकी सेवा में उसी तरह आनंद महसूस करता है, जिस प्रकार प्रेमी अपने प्रिय की सेवा से आनंदित होता है, या फिर उसे नापसंद करने वाला होता है, उसकी सेवा बोरियत, ऊब और घृणा के साथ करता हैॽ यही बंदे के ईमान और उसके अल्लाह से प्रेम की कसौटी है।

कुछ पूर्वजों ने कहा : मैं नमाज़ में प्रवेश करता हूँ तो उससे बाहर निकले की चिंता उठाए होता हूँ और जब मुझे पता चलता है कि मैं उससे बाहर हूँ, तो मेरा सीना तंग हो जाता है।

यही कारण है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “मेरी आँख की ठंढक नमाज़ में बना दी गई है।” और जिसके आँख की ठंढक किसी चीज़ में होती है; तो वह चाहता है कि उसे न छोड़े और उससे बाहर न निकले;  क्योंकि बंदे के आँख की ठंढक : उसका आनंद और उसके जीवन का उससे सुखद होना है।

कुछ पूर्वजों ने कहा : जब रात आती है, तो मैं उससे खुश हो जाता हूँ। क्योंकि मैं जिससे प्यार करता हूँ, उससे मुनाजात करने, उसकी सेवा के साथ एकांत में होने और उसके सामने विनम्रता से, मुझे जीवन का आनंद मिलता है और मेरी आँखें ठंडी हो जाती हैं।

और जब फ़ज्र उदय होती है, तो मैं व्यथित हो जाता हूँ। क्योंकि मैं उसकी वजह से दिन के दौरान उससे विचलित (ग़ाफ़िल) हो जाता हूँ!!

अतः प्रेमी के लिए अपने प्रिय की सेवा करने और उसकी आज्ञा मानने से अधिक आनंददायक कोई चीज़ नहीं है।

तथा उनमें से कुछ ने कहा : मैंने बीस साल तक नमाज़ से पीड़ा सहन किया, फिर मैंने बीस साल तक उसका आनंद लिया।

यह स्वाद और सेवा का आनंद; सबसे पहले अरुचि, अप्रिय चीज़ों और थकान पर धैर्य रखने से मिलता है।

यदि वह उसपर धैर्य रखता है, और अपने धैर्य में सच्चा होता है, तो वह उसे इस आनंद की ओर ले जाता है।

अबू यज़ीद ने कहा : मैंने अपने नफ़्स से अल्लाह की ओर चलने का आग्रह किया, जबकि वह रो रहा था। तो मैं निरंतर उससे आग्रह करता रहा यहाँ तक कि वह उसके अधीन हो गया इस हाल में कि वह हँस रहा था!!

अल्लाह की ओर चलने वाला हमेशा विपत्तियों, आलस्य और पलटाव की चपेट में होता है यहाँ तक कि वह इस स्थिति तक पहुँचता है।

फिर उस समय; वह अपने अल्लाह की ओर चलने में खुशी, अपने परिश्रम में आनंद, तथा अपने आलस्य व सुस्ती और उससे रुकने में पीड़ा और यातना महसूस करता है। चुनाँचे आप देखेंगे कि उसपर सबसे सख़्त और गंभीर चीज़, उसके समय का कुछ नुकसान और उसका अल्लाह की ओर चलने से रुक जाना होता है।

और कष्टप्रद प्यार के अलावा इसका कोई रास्ता (तरीक़) नहीं है।” “तरीक़ुल हिजरतैन“ (2 / 697-698) से उद्धरण समाप्त हुआ।

4- अल्लाह की तौफ़ीक़ और सहायता का एक सबसे बड़ा कारण : सर्वशक्तिमान अल्लाह से सवाल करना और उसका सहारा लेना है। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुआज़ रज़ियल्लाहु अन्हु को सिखाया कि वह यह दुआ करें : “अल्लाहुम्मा अ-इन्नी अला ज़िक्रिका व शुक्रिका व ह़ुस्नि इबादतिका” (ऐ अल्लाह, तू अपने ज़िक्र, अपने शुक्र और अच्छे ढंग से अपनी इबादत पर मेरी मदद कर)।

अबू दाऊद (हदीस संख्या : 1522) और नसाई (हदीस संख्या : 1303) ने मुआज़ बिन जबल रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “ऐ मुआज़, अल्लाह की क़सम! मैं तुमसे प्यार करता हूँ, अल्लाह की क़सम! मैं तुमसे प्यार करता हूँ। फिर आप ने कहा : ऐ मुआज़, मैं तुम्हें वसीयत करता हूँ कि तुम हर नमाज़ के बाद यह दुआ पढ़ना न छोड़ना : “अल्लाहुम्मा अ-इन्नी अला ज़िक्रिका व शुक्रिका व ह़ुस्नि इबादतिका” (ऐ अल्लाह, तू अपने ज़िक्र, अपने शुक्र और अच्छे ढंग से अपनी इबादत पर मेरी मदद कर)।

5- यह बात अच्छी तरह ज्ञात होना चाहिए कि इन सब के साथ-साथ भरपूर परिश्रम, दृढ़ता व स्थिरता और धैर्य का होना ज़रूरी है। अतः जिसने परिश्रम और भरपूर प्रयास किया और कष्ट सहन किया, उसे इबादत का आनंद मिलेगा।

सर्वशक्तिमान अल्लाह ने फरमाया :

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اصْبِرُوا وَصَابِرُوا وَرَابِطُوا وَاتَّقُوا اللَّهَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ  ]سورة آل عمران : 200 [

“ऐ ईमान वालो! तुम धैर्य से काम लो और (अपने दुश्मन की तुलना में) अधिक धैर्य दिखाओ, तथा जिहाद के लिए तैयार रहो और अल्लाह से डरते रहो, ताकि तुम सफल हो सको।” (सूरत आल इमरान : 200)

तथा अल्लाह ने फरमाया :

وَالَّذِينَ جَاهَدُوا فِينَا لَنَهْدِيَنَّهُمْ سُبُلَنَا وَإِنَّ اللَّهَ لَمَعَ الْمُحْسِنِينَ  ] العنكبوت :69 [

“तथा जिन लोगों ने हमारी ख़ातिर भरपूर प्रयास किया, हम अवश्य ही उन्हें अपने मार्ग दिखा देंगे और निःसंदेह अल्लाह सदाचारियों के साथ है।” (सूरतुल-अनकबुत : 69)

मुहम्मद बिन अल-मुनकदिर ने कहा : मैंने चालीस साल तक अपने नफ़्स के साथ कष्ट सहन किया यहाँ तक कि वह मेरे लिए सीधा हो गया।

तथा साबित अल-बुनानी ने कहा : मैंने बीस साल तक क़ियामुल्लैल (रात की नमाज़) पर अपने नफ़्स के साथ कष्ट सहन किया और मैंने बीस साल तक उसका आनंद लिया।

6- उसका समाधान करने में उसके लिए सबसे बड़ी मददगार चीज़, किसी चीज़ का उसके विपरीत चीज़ के साथ उपचार करना है; चुनाँचे जो व्यक्ति कंजूस है, तो उसका तरीक़ा यह है कि वह खर्च करने पर अपने नफ़्स से संघर्ष करे और उसे उसके पास जो कुछ भी है, उसके साथ उदारता करने और धीरे-धीरे कंजूसी छोड़ने पर परोत्साहित करे। तथा जो व्यक्ति कायर है, वह अपने नफ़्स को धैर्य और साहस पर अभ्यस्त करे, और उसे सत्य कहने और करने तथा उसके मार्ग में सहनशीलता से काम लेने पर उभारे। तथा जो व्यक्ति बकवादी, बहुत बात करने वाला, झूठ में घुसने वाला है, वह अपनी ज़बान को रोक ले, उसपर नियंत्रण रखे और उसका निरीक्षण करता रहे।

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया :

“मेरे पास जो भी माल होता है, मैं उसे तुमसे बचाकर नहीं रखता हूँ। निश्चय जो व्यक्ति (माँगने से) बचता है, अल्लाह उसे (माँगने से) सुरक्षित रखता है। और जो धैर्य रखने का प्रयास करता है, अल्लाह उसे धैर्यवान बना देता है। तथा जो बेनियाज़ी चाहता है, अल्लाह उसे बेनियाज़ कर देता है। और तुम्हें सब्र (धैर्य) से बेहतर और अधिक विस्तृत अल्लाह का कोई अनुग्रह नहीं दिया गयाय़।” इसे बुख़ारी (हदीस संख्या : 6470) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1053) ने रिवायत किया है।

तथा अबुद्-दर्दा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “ज्ञान सीखने से प्राप्त होता है, और सहनशीलता सहन करने से प्राप्त होती है। जो व्यक्ति भलाई तलाश करता है, वह उसे प्रदान कर दी जाती है और जो बुराई से बचता है, वह उससे बचा लिया जाता है।”

इसे तबरानी ने “मो’जमुल औसत” (हदीस संख्या : 2663) में तथा अन्य ने रिवायत किया है और अलबानी ने इसे हसन कहा है।

7- तथा उसके साधनों में से : पापों और अवज्ञाओं का त्याग करना है। क्योंकि ये बंदे और उसके पालनहार के बीच ओट और पर्दा हैं, तथा जीविका और भलाई से वंचित किए जाने का एक कारण हैं।

एक व्यक्ति ने इबराहीम बिन अदहम से कहा : मैं रात के समय इबादत करने में सक्षम नहीं हो पाता हूँ। इसलिए मेरे लिए कोई दवा बताँएॽ

उन्होंने कहा : तुम दिन के दौरान उसकी अवज्ञा मत करो, वह तुम्हें रात में अपने सामने खड़ा करेगा। क्योंकि तुम्हारा रात में उसके समाने खड़ा होना सबसे बड़े सम्मान व प्रतिष्ठा में से है, और पापी व्यक्ति उस सम्मान के लायक़ नहीं है।

तथा एक आदमी ने हसन अल-बसरी से कहा : ऐ अबू सईद : मैं स्वास्थ्य की अवस्था में रात बिताता हूँ, और मैं रात को क़ियाम करना चाहता हूँ और मैं अपने वुज़ू का पानी तैयार रखता हूँ, तो क्या बात है कि मैं क़ियाम नहीं कर पाता हूँॽ

हसन ने कहा : तुम्हारे पापों ने तुम्हें बाँध दिया है।

तथा हसन रहिमहुल्लाह ने फरमाया : निःसंदेह कोई व्यक्ति पाप करता है, तो उसके कारण वह रात को इबादत करने और दिन के दौरान रोज़ा रखने से वंचित कर दिया जाता है।

तथा फ़ुज़ैल बिन अयाज़ ने कहा : यदि आप रात में इबादत करने और दिन में रोज़ा रखने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं, तो जान लें कि आप वंचित हैं, आपके पाप ने आपको बाँध दिया है।

8- आज्ञाकारिता पर सहायक और उसे आसान बनाने वाली चीजों में से : अल्लाह ने आज्ञाकारियों के लिए जो महान प्रतिफल और भरपूर बदला तैयार किया है, उसे पढ़ना, सादाचारियों की जीवनियों का अध्ययन करना और अल्लाह के प्रेमियों की इबादतों से अवगत होना है। इसके लिए देखें : अल-मुंज़िरी की पुस्तक “अत-तर्ग़ीब वत-तर्हीब”, अद-दुमयाती की पुस्तक “अल-मतजरुर-राबेह फी सवाबिल अमल अस-सालेह”, इब्नुल जौज़ी की किताब “सिफ़तुस-सफ़्वह” तथा ज़हबी की पुस्तक “सियर आलाम अन-नुबला”।

हम अल्लाह से अपने लिए और आपके लिए तौफ़ीक़ (सामर्थ्य) और सत्यता का प्रश्न करते हैं।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

हृदय को विनम्र करने वाले तत्व
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