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रमज़ान में दिन के दौरान उसने अपनी पत्नी को संभोग के लिए मजबूर किया, पर उसने प्रतिरोध किया फिर आत्मसमर्पण कर दिया, तो क्या उस औरत पर कफ्फारा अनिवार्य है?

14-04-2022

प्रश्न 265975

पिछले से पूर्व रमज़ान के महीने में फज्र की नमाज़ और क़ुरआन की तिलावत के बाद मेरे पति ने मुझ से संभोग कर लिया, उस समय हम रमज़ान के अंतिम दस दिनों में थे। हालांकि उसे अच्छी तरह से मालूम था कि मैं लैलतुल क़द्र को तलाश करने के लिए इन दिनों में एतिकाफ़ और काफ़ी संघर्ष करती हूँ। ज्ञात रहे कि इस से पहले उसने अपने आप को मुझसे दूर कर लिया था जबकि उसे मालूम था कि मैं उससे उस चीज़ की इच्छा करती हूँ जिसे अल्लाह ने उसके साथ मेरे लिए हलाल किया है। हालांकि हमारे और उसके बीच कोई बात चीत, प्यार और संभोग पूर्व क्रीड़ा प्रकट नहीं हुई थी, फिर भी उस दिन वह मेरे क़रीब हुआ। तथा मैं अल्लाह की सज़ा के डर से उसे रोकती रही, पर वह जारी रहा यहाँ तक कि उसने मुझे मजबूर कर दिया और मैं कमज़ोर पड़ गई और फिर संपूर्ण रूप से संभोग हो गया। स्पष्ट बात यह है कि मैं ने अंत में जानबूझ कर उसे यह काम पूरा करने के लिए छोड़ दिया। मेरी इच्छा यह थी कि उसे अल्लाह की सज़ा मिले। मेरा सवाल यह है कि क्या इस पाप का मेरे ऊपर कोई दोष होगा या इसका दोष और दण्ड केवल मेरे पति पर होगा? अल्लाह आप लोगों को हमारी ओर से अच्छा बदला प्रदान करे।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

यदि पति अपनी पत्नी को संभोग के लिए मजबूर कर दे तो पत्नी पर कोई क़ज़ा और कफ्फारा अनिवार्य नहीं है। इस बात का वर्णन प्रश्न संख्या (106532) के उत्तर में किया जा चुका है।

और यदि औरत पूरी तरह से बाज़ न रहे, उदाहरण के तौर पर औरत अपने पति की बात को इस डर से स्वीकार कर ले कि कहीं वह उससे नाराज़ न हो जाए या उसकी उसकी जिद को पूरा करने के लिए ऐसा करे, या अपने पति की उत्तेजना की वजह से अपनी इच्छा (वासना) का विरोध न कर सके, तो इन सभी हालतों में वह मजबूर नहीं समझी जाएगी, बल्कि वह उसका अनुपालन करनेवाली है। इसलिए उसके ऊपर क़ज़ा और कफ्फारा के साथ साथ अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ला से तौबा (पश्चाताप) करना भी ज़रूरी है।

शैख़ इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह कहते हैं :

“उस (महिला) पर अनिवार्य है कि वह उससे पूरी तरह से बचे और अलग रहे और उसे ऐसा करने में सक्षम न होने दे, चाहे वह क्रोध प्रकट करे या खूश हो।

और यदि वे दोनों यह काम करें और जानबूझ कर करें तो दोनों पर तौबा करना अनिवार्य है, और दोनों पर उस दिन की क़ज़ा के साथ साथ कफ्फारा भी अनिवार्य है, तथा जो कुछ दोनों ने किया है उस पर सच्ची तौबा अनिवार्य है।

और यदि पति ने पत्नी के साथ बल प्रयोग और मार पीट करते हुए या बांध कर इस प्रकार विवश और मजबूर किया है कि उसमें कोई संदेह नहीं रह जाताः तो इस पाप का दोष केवल पति पर होगा और पत्नी पर कुछ भी नहीं होगा।

परन्तु औरत मात्र नापसंद करे, और फिर पति का अनुपालन करेः तो वह मजबूर नहीं समझी जाएगी,  बल्कि अनिवार्य यह है कि वह पूरी तरह से उसका इन्कार करे। और औरत स्यवं जानती है कि वह कैसे बचेगी और उससे बाज़ रहेगी, सिवाय इसके कि उस (पति) ने उसे इस तरह बलपूर्वक मजबूर किया हो कि उसके पास उससे बचने की कोई उपाय न रह गई हो, और अल्लाह को खूब पता है कि उसके लिए बचने का कोई उपाय नहीं है।” थोड़े बदलाव के साथ “फतावा नूरुन अलद् दर्ब” से समाप्त हुआ।

http://www.binbaz.org.sa/noor/4591

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

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