हम आशा करते हैं कि आप साइट का समर्थन करने के लिए उदारता के साथ अनुदान करेंगे। ताकि, अल्लाह की इच्छा से, आपकी साइट – वेबसाइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर - इस्लाम और मुसलमानों की सेवा जारी रखने में सक्षम हो सके।
क्या महिलाओं के लिए ईद की नमाज़ अनिवार्य हैॽ यदि यह अनिवार्य है, तो क्या वह उसे घर पर पढ़ेगी या नमाज़-स्थल (ईदगाह) मेंॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
ईद की नमाज़ महिलाओं के लिए अनिवार्य नहीं है, लेकिन यह उनके लिए सुन्नत है। और वे इसे मुसलमानों के साथ नमाज़-स्थल में पढ़ेंगी; क्योंकि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन्हें ऐसा करने का आदेश दिया है।
सहीहैन (यानी सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम) वगैरह में उम्मे अतिय्यह रज़ियल्लाहु अन्हा से वर्णित है कि उन्होंने कहा : ''हमें आदेश दिया गया (और एक रिवायत में यह शब्द आया है किः हमें आदेश दियाः अर्थात पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने) कि हम ईदैन में (ईद की नमाज़ अदा करने के लिए) किशोर लड़कियों और महिलाओं को बाहर ले जाएं। तथा आप ने आदेश दिया कि मासिक धर्म वाली औरतें मुसलमानों के नमाज़ की जगह से अलग थलग रहें।'' इसे बुखारी (1/93) और मुस्लिम (890) ने रिवायत किया है। तथा एक अन्य रिवायत के शब्द यह हैं : ''हमें आदेश दिया गया कि हम किशोर लड़कियों और पर्दा में रहने वाली औरतों को बाहर निकालें।''
तथा तिर्मिज़ी की रिवायत में है किः ''अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कुंवारियों, किशोर लड़कियों तथा एकांत में रहने वाली महिलाओं और मासिक धर्म वाली औरतों को दोनों ईदों में नमाज़ के लिए बाहर निकालते थे। लेकिन मासिक धर्म वाली महिलाएं नमाज़-स्थल से अलग रहती थीं और मुसलमानों की दुआओं में उपस्थित रहती थीं।'' उनमें से एक महिला ने कहाः हे अल्लाह के रसूल, अगर उसके पास जिलबाब (चादर) न हो तो क्या करेॽ आप ने फरमयाः ''उसकी बहन को चाहिए उसे अपनी चादर उधार दे दे।'' इस हदीस को रिवायत करने में बुखारी व मुस्लिम सहमत हैं।
तथा नसाई की रिवायत में हैः हफ्सा बिन्त सीरीन ने कहा : ''उम्मे अतिय्यह जब भी अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का जिक्र करती थीं तो वह अवश्य कहती थीं: मेरे पिता आप पर क़ुर्बान हों। तो मैंने कहाः क्या आपने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को ऐसा और ऐसा कहते हुए सुना हैॽ तो उन्होंने कहाः हाँ, मेरे पिता आप पर कुर्बान हों। आपने फरमायाः ''किशोर लड़कियों तथा एकांत में रहने वाली महिलाओं और मासिक धर्म वाली औरतों को चाहिए कि वे बाहर निकलें। चुनांचे वे ईद की नमाज़ और मुसलमानों की दुआओं में उपस्थित रहें, लेकिन मासिक धर्म वाली महिलाओं को चाहिए कि नमाज़-स्थल से अलग रहें।'' इसे बुखारी 1/84 ने रिवायत किया है।
उपर्युक्त बातों के आधार पर, यह स्पष्ट हो जाता है कि महिलाओं का ईद की नमाज़ के लिए बाहर निकलना मुअक्कदा सुन्नत है, लेकिन इस शर्त के साथ कि वे पर्दा करके निकलें, न कि श्रृंगार का प्रदर्शन करते हुए, जैसा कि दूसरे प्रमाणों से यह ज्ञात होता है।
जहाँ तक विवेक व समझबूझ रखने वाले बच्चों के ईद और जुमा की नमाज़ और इनके अलावा अन्य नमाज़ों के लिए निकलने की बात है, तो यह एक ऐसी चीज़ है जो अच्छी तरह से ज्ञात है और इस विषय में वर्णित बहुत सारे प्रमाणों के आधार पर धर्मसंगत है।
और अल्लाह ही तौफीक़ (शक्ति) प्रदान करने वाला है।