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उस व्यक्ति के तवाफ़े इफ़ाज़ा का हुक्म जिसने हज्रे अस्वद के बराबर होने के चुछ क़दमों के बाद उसकी नीयत की

22-07-2019

प्रश्न 280555

मैं पहले प्रश्न कर चुका हूँ, लेकिन मैं अपने प्रश्न को और अधिक स्पष्ट करना चाहता हूँ और मुझे आशा है कि इसका उत्तर देंगे। मैं तवाफ़े इफ़ाज़ा के पहले चक्कर में हरे रंग के निशान – हज्रे अस्वद – से आगे बढ़ गया और मैंने लगभग 4 क़दम की दूरी के बाद ही तवाफ की नीयत में प्रवेश किया। मैंने तकबीर कही और मुझे पता है कि तकबीर कहना सुन्नत है, लेकिन तवाफ़ की नीयत मैंने तकबीर के समय शुरू की जबकि मैं हरे निशान से आगे गुज़र गया था। मैंने तवाफ को बाधित करने का इरादा किया, क्योंकि मैंने तवाफ़ में प्रवेश करने की नीयत में देरी कर दी थी, और मैंने पहले चक्कर को निरस्त और दूसरे चक्कर को पहला चक्कर मान लिया। लेकिन पहले चक्कर के बाद और दूसरे चक्कर के उसमें प्रवेश करने पर, मैं सोच रहा था कि इसे पहला चक्कर मान लूँ लेकिन मैंने पहला चक्कर नहीं दोहराया, और दूसरा चक्कर तवाफ़ करने लगा। हालांकि मेरे मन में ये विचार आ रहे थे कि मैं उसे पहला चक्कर मान लूँ, लेकिन मैंने सभी चक्कर पूरे कर लिए और मैं इरादा कर रहा था कि पहले चक्कर के बदले एक आठवें चक्कर कि वृद्धि कर लूँ, लेकिन मैंने सात ही चक्कर पूरे किए। तो क्या वह चक्कर जिसे मैंने बाधित करने का इरादा किया था वह अमान्य हो गयाॽ और इसी तरह वह चक्कर जिसके बारे में, मैं सोच रहा था कि वह पहला या दूसरा चक्कर हो वह अमान्य है, और मैं यह समझूँ कि मैंने सिर्फ 5 चक्कर तवाफ किए हैंॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

फ़ुक़हा (धर्मशास्त्रियों) ने तवाफ़ के विषय में मतभेद किया है कि क्या उसके लिए उसकी शुरुआत में एक विशिष्ट नीयत (इरादा) करना शर्त (आवश्यक) है, अथवा यह कि एहराम के समय उम्रा या हज्ज की नीयत पर्याप्त हैॽ इस बारे में दो कथन हैं :

पहला कथन : हज्रे अस्वद (काले पत्थर) के बराबर (या सामने) होते समय विशिष्ट नीयत करना शर्त है। यह हनाबिला का मत है।

इब्ने क़ुदामा रहिमहुल्लाह ने कहा : “इस तवाफ़ का तरीक़ा तवाफ़े क़ुदूम (आगमन के तवाफ़) के समान है, सिवाय इसके कि उससे ज़ियारत के तवाफ़ की नीयत करेगा और उसे नीयत के द्वारा निर्धारित करेगा। तथा उसमें ‘रमल’ और इज़तिबाअ नहीं है। इब्ने अब्बास  रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने कहाः (पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन सात चक्करों में रमल नहीं किया जिनमें आपने तवाफ़े इफ़ाज़ा किया।) इस तवाफ़ में नीयत शर्त है। यह इसहाक़, इमाम मालिक के शिष्य इब्नुल-क़ासिम और इब्नुल-मुंज़िर का कथन है।

तथा सौरी, शाफ़ेई और असहाबुर-राय का कहना है : यह उसके लिए पर्याप्त है, भले ही उसने उस फ़र्ज की नीयत नहीं की जो उस पर अनिवार्य थी।”

“अल-मुग्नी (3/391)” से उद्धरण समाप्त हुआ।

इस आधार पर, जिसने चार क़दम के बाद नीयत की है, अगर वह उस समय तक हज्रे अस्वद के बराबर ही था तो इसमें कोई समस्या नहीं है। क्योंकि हरे निशान के बराबर में होना एक अनुमानित मामला है, चुनाँचे लोग क़ुछ क़दम आगे और पीछे होते हैं, और हर एक यही समझता है कि वह हज्रे अस्वद के बराबर है।

लेकिन अगर उसे यकीन है कि उसने हज्रे अस्वद के बराबर होने के बाद नीयत की है, इस प्रकार कि वह हरे निशान से निकट था और उसके बाद कुछ क़दम चलकर फिर नीयत की, तो इस कथन के अनुसार उसका चक्कर सही (मान्य) नहीं है।

इस बुनियाद परः उसके लिए ज़रूरी है कि वह (तवाफ की) शुरुआत के सही स्थान पर वापस लौट जाए, या इस चक्कर को रद्द कर दे, और एक आठवें चक्कर की वृद्धि करे।

दूसरा कथनः यह है कि तवाफ के लिए किसी विशिष्ट नीयत की आवश्यकता नहीं है। अतः (हज्ज या उम्रा की) इबादत की नीयत प्रयाप्त है। जमहूर अर्थात हनफिय्या, मालिकिय्या और शाफेइय्या का यही मत है।

नववी रहिमहुल्लाह ने कहा : “(तीसरा मुद्दाः तवाफ की नीयत के बारे में) हमारे असहाब (साथियों) ने कहा : अगर तवाफ हज्ज या उम्रा के अलावा में हैः तो वह बिना नीयत के सही (मान्य) नहीं होगा, इसमें कोई मतभेद नहीं है, जैसे कि अन्य सारी इबादतों नमाज़ और रोज़ा आदि का मामला है।

अगर वह हज्ज या उम्रा का तवाफ हैः तो तवाफ की नीयत करना उचित है।

अगर उसने बिना नीयत के तवाफ कियाः तो इसके बारे में दो प्रसिद्ध रूप हैं, जिन्हें लेखक ने उनके प्रमाण सहित उल्लेख किए हैं :

(उन दोनों रूपों में सबसे सही): उसका सही (मान्य) होना है। इसी को उनके एक समूह ने निश्चित रूप से वर्णन किया है जिनमें इमामुल-हरमैन शामिल हैं।”

“अल-मजमू (8/16)” से उद्धरण समाप्त हुआ।

उन्होंने (8/18) में कहा : "(शाखा) हज्ज या उम्रा के तवाफ़ में नीयत के बारे में उनके मत।

हमने उल्लेख किया है कि हमारे निकट सबसे सही यह है कि उसकी (यानी नीयत की) शर्त नहीं है, और यही सौरी और अबू हनीफ़ा ने भी कहा है।

जबकि अहमद, इसहाक़, अबू सौर, इब्नुल-कासिम अल-मालिकी और इब्नुल-मुंज़िर ने कहा : वह बिना नीयत के सही (मान्य) नहीं है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

सुयूती रहिमहुल्लाह ने कहा :

“वे इबादतें जो कृत्य वाली हैं : उनके शुरू में नीयत करने को पर्याप्त समझा जाएगा, और उनके हर कृत्य में नीयत करने की जरूरत नहीं है, जैसे कि वुज़ू और नमाज़, और इसी तरह हज्ज; चुनाँचे सबसे सही मतानुसार, तवाफ़, सई और अरफ़ात में ठहरने के लिए अलग-अलग नीयत करने की आवश्यकता नहीं है।” सुयूती की पुस्तक “अल-अश्बाह वन-नज़ाइर” (पृष्ठः 27) से उद्धरण समाप्त हुआ।

तथा देखें : "अल-मौसूअतुल फ़िक़्हिय्या (29/125)".

शैख़ मुहम्मद अल-अमीन अश-शन्क़ीती रहिमहुल्लाह ने जमहूर विद्वानों के कथन को राजेह ठहराते हुए कहा :

“यह बात जान लो कि इन शा अल्लाह विद्वानों का सबसे स्पष्ट और सबसे सही कथन यह है कि : तवाफ़ के लिए एक विशिष्ट नीयत की आवश्यक्ता नहीं है; क्योंकि हज्ज की नीयत उसके लिए पर्याप्त है, इसी तरह हज्ज के अन्य सभी कार्य हैं, जैसे कि अरफा में ठहरना, मुज़दलिफा में रात बिताना, सई करना और कंकड़ी मारना। इन सभी में (विशिष्ट) नीयत की जरूरत नहीं है। क्योंकि हज्ज की इबादत की नीयत इन सभी कार्यों को शामिल है, और अधिकांश विद्वानों का यही मत है।

इसका प्रमाण स्पष्ट हैः क्योंकि इबादत की नीयत उसके सभी भागों को शामिल होती है। चुनाँचे जिस तरह नमाज़ के हर रुकूअ और सज्दे के लिए एक विशिष्ट नीयत की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि नमाज़ की नीयत उन सबको शामिल होती है, उसी तरह हज्ज के कार्यों में से हर कार्य के लिए एक विशिष्ट नीयत की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि हज्ज की नीयत उन सभी कृत्यों को शामिल होती है।

उन्होंने उसके लिए जिस चीज़ को प्रमाण बनाया है : यह है कि यदि वह अरफ़ा में भूलकर ठहर जाए, तो वह सर्वसम्मति से उसके लिए पर्याप्त होगा। यह बात नववी ने कही है।” “अज़वाउल बयान फ़ी ईज़ाहिल क़ुरआन (4/414)” से उद्धरण समाप्त हुआ।

शैख़ इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने फरमाया :

"यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, नीयत इबादत को करने की शुरुआत में होती है, और मुस्तहब यह है कि उसे नमाज़ के सभी हिस्सों में याद रखा जाए, ऐसा करना सर्वश्रेष्ठ है। ताकि नीयत कार्य के प्रत्येक भाग में उसके साथ संलग्न रहे, यही सबसे अच्छा है। लेकिन अगर यह नीयत नमाज़ के दौरान आपके स्मरण से अनुपस्थित हो जाए, तो क्या यह आपको नुकसान पहुंचाएगा या नहींॽ नहीं, यह आपको नुक़सान नहीं पहुँचाएगा, आप अपनी पहली नीयत पर बरक़रार हैं...

यहाँ से बुत-से विद्वानों ने, जिनमें शैख मुहम्मद अश-शन्क़ीती रहिमहुल्लाह शामिल हैं, इस बात को ग्रहण किया है कि तवाफ की नीयत या सई की नीयत करना शर्त (आवश्यक) नहीं है; क्योंकि तवाफ औऱ सई इबादत का एक हिस्सा हैं। चुनाँचे जिस तरह आप नमाज़ में रुकूअ या सज्दे की नीयत नहीं करते हैं, बल्कि नमाज़ की सामान्य नीयत पर्याप्त होती है, तो उसी तरह तवाफ़, सई और (हज्ज या उम्रा की) इबादत के अन्य सभी हिस्से भी हैं, जिस समय आपने मीक़ात के पास ‘लब्बैका उम्रह’ कहा, उसी समय आपने उम्रा के सभी कार्यों की नीयत कर ली।

इसमें लोगों के लिए विस्तार व सहजता भी है। चुनाँचे बहुत से लोग और विशेष रूप से भीड़ के दिनों में बैतुल-हराम में प्रवेश करते हैं और तवाफ़ करना शुरू कर देते हैं और उनके दिमाग़ से यह बात निकल जाती है कि उन्होंने ने उम्रा के तवाफ़ या किसी और तवाफ़ की नीयत की है। लेकिन जब हम यह कहते हैं कि तवाफ़ और सई नमाज़ में रुकूअ और सज्दे के समान हैं और सामान्य नीयत उन दोनों को शामिल हैः तो इसमें लोगों के लिए विस्तार और आसानी हो जाएगी।

यही बहुत से विद्वानों का दृष्टिकोण है, और इसी को हम भी चुनते हैं। क्योंकि सच्चाई यह है कि बहुत से लोग आश्चर्यचकित रह जाते हैं, खासकर जब वे लोगों की बड़ी संख्या देखते हैं। चुनाँचे वे तवाफ़ की नीयत से प्रवेश करते हैं और उन्हें यह आभास नहीं रहता है कि वह हज्ज के लिए है या उम्रा के लिए, लेकिन वे तवाफ़ की नीयत करते हैं क्योंकि वे तवाफ़ करने के लिए ही आते हैं, तो वे तवाफ़ करते हैं।”

शैख उसैमीन की “अल-काफ़ी” पर टिप्पणी से उद्धरण समाप्त हुआ। (1/348, शामिला लाइब्रेरी की स्वचालित नंबरिंग अनुसार)

इस कथन के आधार पर - और यही राजेह (सही) है - आपका तवाफ़ सही (मान्य) है और हर प्रकार की स्तुति अल्लाह तआला के लिए योग्य है। अतः इसके बारे में चिंता न करें और इसके बारे में वस्वसा करने से परहेज़ करें।

तथा प्रश्न संख्याः (227879) का उत्तर देखें।

और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

हज्ज और उम्रा का तरीक़ा
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