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यदि किसी व्यक्ति ने व्यभिचार किया है, या चोरी की है, या शराब पी है, तो क्या उसकी तौबा और अच्छे कर्म उस पर शरई ह़द नाफ़िज़ किए बिना स्वीकार किए जाएँगेॽ

15-11-2020

प्रश्न 300832

जो व्यक्ति अल्लाह की सीमाओं को, जैसे कि व्यभिचार, धर्म को बुरा-भला कहना (धर्म का अपमान) और इसके अलावा अल्लाह की अन्य सीमाएँ पार करता है, और उस पर शरई ह़द लागू नहीं किया जाता है, क्या उसका कार्य स्वीकार किया जाएगाॽ क्या इबादतों, अच्छे कर्मों, दुआ और नमाज़ वग़ैरह की स्वीकृति उस पर शरई ह़द (दंड) लागू करने के साथ संबंधित है, या कि यदि उस पर शरई ह़द लागू नहीं किया गया है, फिर भी उसकी इबादत सही (मान्य) होती हैॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सर्व प्रथम :

जो व्यक्ति किसी घोर पाप जैसे व्यभिचार, या चोरी, या मद्यपान या अल्लाह की पनाह धर्मत्याग से पीड़ित है, तो उसे पाप को छोड़ कर, उस पर पछतावा करके, उस पाप को दोबारा न करने का संकल्प करके और लोगों के हड़प किए हुए हुक़ूक़ को वापस करके, यदि कोई हो, अल्लाह सर्वशक्तिमान के समक्ष तौबा करना चाहिए।

और जो व्यक्ति तौबा (पश्चाताप) करता है, अल्लाह उसकी तौबा को स्वीकार करता है, चाहे उसका पाप और अपराध कितना भी गंभीर क्यों न हो। क्योंकि सर्वशक्तिमान अल्लाह के लिए किसी पाप को क्षमा करना कठिन नहीं है।

सर्वशक्तिमान अल्लाह ने फरमाया :

وَالَّذِينَ لَا يَدْعُونَ مَعَ اللَّهِ إِلَهًا آخَرَ وَلَا يَقْتُلُونَ النَّفْسَ الَّتِي حَرَّمَ اللَّهُ إِلَّا بِالْحَقِّ وَلَا يَزْنُونَ وَمَنْ يَفْعَلْ ذَلِكَ يَلْقَ أَثَامًا * يُضَاعَفْ لَهُ الْعَذَابُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ وَيَخْلُدْ فِيهِ مُهَانًا * إِلَّا مَنْ تَابَ وَآمَنَ وَعَمِلَ عَمَلًا صَالِحًا فَأُولَئِكَ يُبَدِّلُ اللَّهُ سَيِّئَاتِهِمْ حَسَنَاتٍ وَكَانَ اللَّهُ غَفُورًا رَحِيمًا   [سورة الفرقان : 68-70] 

“और जो लोग अल्लाह के साथ किसी दूसरे पूज्य को नहीं पुकारते और न उस प्राण को जिसे अल्लाह ने वर्जित किया है, बिना अधिकार के क़त्ल करते हैं, और न ही वे व्यभिचार करते हैं। और जो ऐसा करेगा वह पाप का सामना करेगा। क़ियामत के दिन उसके लिए यातना दोगुनी कर दी जाएगी तथा वह अपमानित होकर सदैव उसी में रहेगा। सिवाय उन लोगों के जो तौबा करें और ईमान लाएँ और नेक कार्य करें, ऐसे लोगों के गुनाहों को अल्लाह तआला नेकियों में बदल देता है, अल्लाह बहुता क्षमा करने वाला, दया करने वाला है।" (सूरतुल फुरक़ान: 68-70).

इस आयत में अल्लाह ने शिर्क (बहुदेववाद), हत्या और व्यभिचार का उल्लेख किया है और फिर बताया है कि जो कोई भी तौबा कर ले और ईमान ले आए और अच्छे कार्य करे, तो अल्लाह उसकी तौबा को स्वीकार करता है और उसके बुरे कर्मों को नेकियों में बदल देता है।

तथा अल्लाह तआला ने फरमाया :

وَإِنِّي لَغَفَّارٌ لِمَنْ تَابَ وَآمَنَ وَعَمِلَ صَالِحًا ثُمَّ اهْتَدَى  [سورة طه : 82].

"और निःसंदेह मैं उस व्यक्ति को माफ़ी प्रदान करने वाला हूँ जो तौबा कर ले, ईमान ले आए और नेक काम करे, फिर हिदायत (मार्गदर्शन) को अपनाए।" (सूरत ताहा : 82)

दूसरी बात :

जो व्यक्ति इन घोर पापों में से किसी चीज़ में पड़ गया और तौबा कर लिया : उसके लिए आवश्यक नहीं है कि वह शरई ह़द (दंड) लागू करने की माँग करे। बल्कि उसके लिए बेहतर यह है कि वह अपने मामले को गुप्त रखे और अपने और अपने पालनहार के बीच तौबा करे, तथा अधिक से अधिक अच्छे कार्य करे; क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : “इस गंदगी से बचो, जिससे अल्लाह सर्वशक्तिमान ने मना किया है। फिर जो कोई इससे पीड़ित हो जाए, तो उसे चाहिए अल्लाह सर्वशक्तिमान की पर्दापोशी के साथ उसे छिपा दे।” इस हदीस को बैहक़ी ने रिवायत किया है और अलबानी ने “अस-सिलसिला अस-सहीहा” (हदीस संख्या : 663) में इसे सहीह कहा है।

तथा बुखारी (हदीस संख्या : 4894) ने उबादह बिन सामित रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि : “वह कहते हैं कि हम नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सेवा में उपस्थित थे। तो आपने फरमाया : “क्या तुम मुझसे इस बात पर बैअत करोगे कि तुम अल्लाह के साथ किसी चीज़ को साझी नहीं ठहराओगे और न व्यभिचार करोगे और न चोरी करोगे।” तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सूरतुन्निसा की आयतें पढ़ीं - सुफयान अक्सर इस हदीस के शब्द में यह कहते थे कि आपने यह आयत पढ़ी - “फिर तुम में से जो व्यक्ति इस शर्त को पूरा करेगा, तो उसका प्रतिफल अल्लाह पर है। और जो इनमें से किसी चीज़ में पड़ गया और उसपर उसे दंड मिल गया, तो वह उसके लिए कफ़्फ़ारा (प्रायश्चित) हो जाएगा। तथा जो इनमें से कुछ कर बैठा और अल्लाह ने उसे छिपा लिया, तो उसका मामला अल्लाह के हवाले है। यदि अल्लाह चाहे, तो उसे यातना दो, और अगर चाहे तो उसे क्षमा कर दे।”

तथा मुस्लिम (हदीस संख्या : 2590) ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्होंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत किया कि आपने फरमाया : “अल्लाह तआला इस दुनिया में जिस बंदे के ऐब (दोष) को छिपाता है, अल्लाह क़ियामत के दिन भी उसके ऐब (दोष) को छिपाएगा।”

इमाम अहमद (हदीस संख्या : 21891) ने नुऐम बिन हज़्ज़ाल से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : “हज़्ज़ाल रज़ियल्लाहु अन्हु ने माइज़ बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु को नौकरी पर रखा। हज़्ज़ाल के पास एक लौंडी थी, जिसका नाम फातिमा था और उसकी शादी हो गई थी। वह उनकी बकरियाँ चराया करती थी। माइज़ उसके साथ कुकर्म में लिप्त हो गए। फिर उन्होंने हज़्ज़ाल को बताया। हज़्ज़ाल ने उन्हें धोखा दिया और कहा : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास चलकर आपको इस घटने के बारे में बताओ। हो सकता है तुम्हारे बारे में क़ुरआन में कोई हुक्म अवतरित हो जाए। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन्हें संगसार करने का आदेश जारी किया। जब उन्हें संगसार किया जाने लगा औ पत्थर की मार (चोट) से उन्हें तकलीफ़ पहुँची, तो वह तेज़ी से भाग खड़े हुए। अचानक एक आदमी ने ऊँट के जबड़े की हड्डी या ऊँट के पैर की हड्डी के साथ उनका सामना किया और उसे उनपर दे मारी, जिससे उनकी मृत्यु हो गई। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “ऐ हज्ज़ाल, तेरा बुरा हो (तुझ पर अफ़सोस है) अगर तो इसे अपने कपड़े से छिपा लेता, तो तेरे लिए बेहतर होता।” अल-मुसनद की तहक़ीक़ करने वालों ने कहा : यह हदीस ‘सहीह लि-ग़ैरिही’ है।

तथा सहीह मुस्लिम (हदीस संख्या : 1695) में है कि जब माइज़ रज़ियल्लाहु अन्हु नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आए और उन्होंने अपने व्यभिचार को स्वीकार किया और कहा : “मुझे पवित्र कर दीजिए” (अर्थात शरई ह़द क़ायम करके), तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनसे कहा : (तुम्हारा बुरा हो, वापस जाओ और अल्लाह से क्षमा माँगों और उसके समक्ष तौबा करो।”

नववी रहिमहुल्लाह ने कहा : “इस हदीस में, तौबा करने से प्रमुख एवं घोर पापों के दोष के समाप्त हो जाने का प्रमाण है, और इस बात पर सभी मुसलमानों की सहमति है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

हाफिज़ इब्ने हजर फरमाते हैं:

“उनके मामले से - अर्थात् माइज़ के मामले से जबकि उन्होंने व्यभिचार का इक़रार किया - से यह बात ग्रहण की जाती है कि उनके मामले के समान मामले से पीड़ित होने वाले के लिए वांछनीय है कि : वह अल्लाह तआला से तौबा करे और अपने ऊपर पर्दा डाले रहे और किसी से उसका उल्लेख न करे . . . इसी बात को इमाम शाफेई रज़ियल्लाहु अन्हु ने सुदृढ़ रूप से वर्णन किया है, उन्हों ने कहा : मैं उस व्यक्ति के लिए जिसने कोई पाप किया और अल्लाह ने उसके ऊपर पर्दा डाल दिया, यह पसंद करता हूँ कि वह उसे अपने ऊपर पर्दा डाल कर रखे और तौबा कर ले।”

"फत्हुल बारी" (12 /124) से उद्धरण समाप्त हुआ।

तथा “मतालिब ऊली अन्-नुहा" (6/168) में कहा गया है कि : “ (और जिसने कोई ऐसा काम किया) जो अनिवार्य कर देता है (किसी शरई ह़द को : तो वह अपने आप पर पर्दा डालेगा) वांछनीय रूप से, (तथा उसके लिए शासक के पास उसका इक़रार करना) अनिवार्य नहीं है, (और न ही सुन्नत है), क्योंकि हदीस में है कि : “अल्लाह पर्दापोशी करना वाला है और अपने बंदों में से पर्दापोशी करने वाले को पसंद करता है।” उद्धरण समाप्त हुआ

स्थायी समिति के विद्वानों ने कहा : “शरई ह़द वाले अपराध, यदि शरई हाकिम (शासक) तक पहुँच जाएँ और वे पर्याप्त सबूतों के द्वारा सिद्ध हो जाएँ : तो उन शरई हद़ों को क़ायम करना अनिवार्य है और वे तौबा करने से समाप्त नहीं होंगे, इस बात पर विद्वानों की सर्वसम्मति है। गामिदिय्यह महिला तौबा करने के पश्चात नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास अपने ऊपर शरई हद क़ायम करने का अनुरोध करते हुए आई, तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसके बारे में फरमाया : उसने ऐसी तौबा की है कि यदि मदीना के लोग वैसी तौबा कर लें तो वह उनके लिए पर्याप्त हो जाए।”, लेकिन फिर भी आफ सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसपर शरई हद़ क़ायम किया। और यह अधिकार केवल बादशाह (शासक) के लिए है।

लेकिन अगर सज़ा बादशाह (हाकिम) तक नहीं पहुँची है : तो मुसलमान बंदे को चाहिए कि अल्लाह की पर्दापोशी के साथ अपने पाप को गुप्त रखे और अल्लाह से सच्ची तौबा करे, आशा है कि अल्लाह उसकी तौबा को क़बूल फरमाए।”

“फतावा अल-लजनह अद-दाईमह” (22/15) से उद्धरण समाप्त हुआ।

तीसरा :

ऊपर जो कुछ उल्लेख किया गया है उससे स्पष्ट हो गया कि इनसान का अपने ऊपर पर्दा डालना इस बात से बेहतर है कि वह अपने ऊपर शरई हद को लागू करने का प्रयास करे। और इससे यह भी ज्ञात हो जाता है कि शरई ह़द को क़ायम करना, तौबा के लिए शर्त नहीं है और उसके बिना तौबा करना सही (मान्य) है। तथा अन्य अच्छे काम बिना शरई ह़द को क़ायम किए हुए और अधिक स्वीकार किए जाएँगे; क्योंकि इनके और शरई हद के बीच कोई संबंध नहीं है।

सारांश यह कि :

जिस व्यक्ति ने - उदाहरण के तौर पर - व्यभिचार किया है, तो उसके लिए मुस्तहब है कि वह अल्लाह की पर्दापोशी के साथ उसे गुप्त रखे और अपने और अपने पालनहार के बीच तौबा कर ले, तथा किसी को भी अपने अपराध के बारे में न बताए। अगर कोई व्यक्ति उसके बारे में जान जाता है, तो उसके लिए मुस्तहब (वांछनीय) है कि वह उसपर पर्दा डाल दे और उसे भी खुद पर पर्दा डालने के लिए आग्रह करे। यदि वह तौबा करता है तो अल्लाह उसकी तौबा को स्वीकार करेगा। तथा शरई हद़ को क़ायम न करने का उसकी तौबा पर या उसके शेष कामों पर कोई प्रभाव नहीं है।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

इस्लाम द्वारा निर्धारित दंड और न्यायिक सजा
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