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कोरोना महामारी के प्रति एक मुसलमान के लिए क्या करना धर्मसंगत हैॽ

10-04-2020

प्रश्न 334353

इन दिनों में, जब कोरोना वायरस - कोविड-19 फैल रहा है, एक मुसलमान को क्या करना चाहिए और अल्लाह सर्वशक्तिमान हमें इस आपदा से कैसे छुटकारा देगाॽ अल्लाह आप लोगों को सर्वश्रेश्ठ बदला प्रदान करे।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

यदि विपत्ति और महामारी उतरती है, तो उसका उपचार सर्वशक्तिमान अल्लाह के समक्ष तौबा करने और उससे रोने-गिड़गिड़ाने, तथा मज़लूमों का हक़ लौटाने, साथ ही साथ अधिक से अधिक इस्तिग़फ़ार (क्षमायाचना) करने, तस्बीह (अल्लाह का महिमामंडन करने), नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दुरूद भेजने, अल्लाह से आफ़ियत (स्वास्थ्य एवं सुरक्षा) का सवाल करने, तथा रोकथाम और उपचार के कारणों को अपनाने में है, जैसे कि संगरोध (क्वारंटाइन अर्थात संक्रामक रोग को रोकने के लिए की गई व्यवस्था), तथा टीकाकरण और चिकित्सा उपचार, यदि ये उपलब्ध हों।

1- अल्लाह से तौबा करना और रोना-गिड़गिड़ाना :

इस संबंध में, सर्वशक्तिमान अल्लाह ने फरमाया है :

 وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا إِلَى أُمَمٍ مِنْ قَبْلِكَ فَأَخَذْنَاهُمْ بِالْبَأْسَاءِ وَالضَّرَّاءِ لَعَلَّهُمْ يَتَضَرَّعُونَ (42) فَلَوْلَا إِذْ جَاءَهُمْ بَأْسُنَا تَضَرَّعُوا وَلَكِنْ قَسَتْ قُلُوبُهُمْ وَزَيَّنَ لَهُمُ الشَّيْطَانُ مَا كَانُوا يَعْمَلُونَ

الأنعام : 42-43 

“हमने आपसे पहले समुदायों की ओर रसूल भेजे, फिर (उनकी अवज्ञा के कारण) हमने उन्हें तंगियों और विपत्तियों से ग्रस्त किया, ताकि वे विनम्र होकर गिड़गिड़ाएँ। फिर जब उनपर हमारा अज़ाब आया तो वे क्यों न गिड़गिड़ाएॽ परन्तु (तथ्य यह है कि) उनके हृदय कठोर हो गए और जो कुछ वे करते थे शैतान ने उसे उनके लिए सुसज्जित कर दिया।” (सूरतुल अन्आम : 42-43).

इब्ने कसीर रहिमहुल्लाह ने अपनी तफ़्सीर (3/256) में फरमाया : “अल्लाह ने फरमाया :   ولقد أرسلنا إلى أمم من قبلك فأخذناهم بالبأساء  “और हमने आपसे पहले बहुत से समुदायों की ओर रसूल भेजे, फिर (उनकी अवज्ञा के कारण) हमने उन्हें तंगियों से ग्रस्त किया” अर्थात : गरीबी और जीवन यापन में कष्ट और तंगी से ग्रस्त किया। والضراء  “और विपत्तियों से” अर्थात : रोगों, बीमारियों और पीड़ाओं से ग्रस्त किया।  لعلهم يتضرعون  “ताकि वे विनम्र होकर गिड़गिड़ाएँ” अर्थात : वे अल्लाह से प्रार्थना करें, उसके सामने गिड़गिड़ाएँ और विनम्रता प्रकट करें।

सर्वशक्तिमान अल्लाह ने फरमाया :  فلولا إذ جاءهم بأسنا تضرعوا  “फिर जब उनपर हमारा अज़ाब आया तो वे क्यों न गिड़गिड़ाएॽ” अर्थात् : जब हमने उन्हें उन चीज़ों से पीड़ित किया और आज़माया, तो उन्होंने क्यों न विनम्रता और विनय प्रकट करते हुए हमसे प्रार्थना की और हमसे रोए-गिड़गिड़ाएॽ ولكن قست قلوبهم “लेकिन उनके दिल कठोर हो गए थे” अर्थात उनमें नरमी और नम्रता नहीं पैदा हुई।   وزين لهم الشيطان ما كانوا يعملون  “और जो कुछ वे कर रहे थे, शैतान ने उसे उनके लिए सुशोभित कर दिया।” अर्थात : शिर्क और गुनाहों में से (जो कुछ वे करते थे उनके लिए सुशोभित कर दिया)।” उद्धरण समाप्त हुआ।

तथा सर्वशक्तिमान अल्लाह ने फरमाया :

 أَوَلَا يَرَوْنَ أَنَّهُمْ يُفْتَنُونَ فِي كُلِّ عَامٍ مَرَّةً أَوْ مَرَّتَيْنِ ثُمَّ لَا يَتُوبُونَ وَلَا هُمْ يَذَّكَّرُونَ

التوبة :126 

“क्या वे देखते नहीं कि प्रत्येक वर्ष वे एक या दो बार आज़माईश में डाले जाते हैॽ फिर भी न तो वे तौबा करते हैं और न सीख ग्रहण करते हैं।” (सूरतुत तौबा : 126)

विपत्ति किसी पाप के कारण ही आती है और वह केवल तौबा (पश्चाताप) ही के द्वारा दूर होती है। जैसा कि अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु ने अल्लाह से बारिश के लिए याचना करते हुए अपनी दुआ में फरमाय था।

हाफिज़ इब्ने हजर रहिमहुल्लाह ने “फ़त्हुल बारी” (2/497) में फरमाया : “ज़ुबैर बिन बक्कार ने वंशावली से संबंधित अपनी पुस्तक में इस बात का खुलासा किया है कि अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु ने इस घटना में क्या दुआ की थी और यह किस समय घटित हुआ था। चुनाँचे उन्होंने अपनी इसनाद के साथ उल्लेख किया है कि जब उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु को अल्लाह से बारिश की याचना करने के लिए दुआ करने के लिए कहा, तो उन्होंने कहा : ऐ अल्लाह, पाप के बिना कोई विपत्ति नहीं उतरी और वह तौबा (पश्चाताप) के बिना दूर नहीं हुई।” उद्धरण समाप्त हुआ।

2- जहाँ तक इस्तिग़फ़ार (क्षमा माँगने) का संबंध है, तो यह स्वास्थ्य, शक्ति और अच्छे जीवन का कारण है।

सर्वशक्तिमान अल्लाह ने फरमाया :

 وَأَنِ اسْتَغْفِرُوا رَبَّكُمْ ثُمَّ تُوبُوا إِلَيْهِ يُمَتِّعْكُمْ مَتَاعًا حَسَنًا إِلَى أَجَلٍ مُسَمًّى وَيُؤْتِ كُلَّ ذِي فَضْلٍ فَضْلَهُ

هود :3 

“अपने पालनहार से क्षमायाचना करो फिर उसकी ओर पश्चाताप करो। वह तुम्हें एक निश्चित अवधि तक (दुनिया में) अच्छी जीवन शैली का आनंद प्रदान करेगा। तथा वह हर श्रेष्ठता वाले को उसकी श्रेष्ठता का पूरा बदला देगा।” (सूरत हूद : 3)

तथा सर्वशक्तिमान अल्लाह ने फरमाया :

 وَيَا قَوْمِ اسْتَغْفِرُواْ رَبَّكُمْ ثُمَّ تُوبُواْ إِلَيْهِ يُرْسِلِ السَّمَاء عَلَيْكُم مِّدْرَارًا وَيَزِدْكُمْ قُوَّةً إِلَى قُوَّتِكُمْ وَلاَ تَتَوَلَّوْاْ مُجْرِمِينَ

هود :52 

''ऐ मेरी क़ौम के लोगो! अपने पालनहार से क्षमा याचना करो, फिर उसके समक्ष तौबा करो। वह तुमपर आकाश से मूसलाधार मेह बरसाएगा और तुममें शक्ति पर शक्ति की अभिवृद्धि करेगा। और तुम अपराधी बनकर मुँह न फेरो।" (सूरत हूद : 52).

3 – जहाँ तक तस्बीह का संबंध है, तो अल्लाह ने सूचना दी है कि उसने यूनुस अलैहिस्सलाम को तस्बीह के द्वारा संकट से बचाया और यह संकेत दिया है कि वह इसके द्वारा मोमिनों को भी बचाएगा।

अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फरमाया :

  وَذَا النُّونِ إِذْ ذَهَبَ مُغَاضِبًا فَظَنَّ أَنْ لَنْ نَقْدِرَ عَلَيْهِ فَنَادَى فِي الظُّلُمَاتِ أَنْ لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ سُبْحَانَكَ إِنِّي كُنْتُ مِنَ الظَّالِمِينَ * فَاسْتَجَبْنَا لَهُ وَنَجَّيْنَاهُ مِنَ الْغَمِّ وَكَذَلِكَ نُنْجِي الْمُؤْمِنِينَ

الأنبياء: 87- 88

“और मछली वाला जब गुस्से की हालत में चल निकला, और यह समझा कि हम उसकी पकड़ नहीं करेंगे, फिर उसने अंधेरे में पुकारा : तेरे अलावा कोई सच्चा माबूद नहीं, तू पवित्र है। निःसंदेह मैं ही अत्याचारियों में से हूँ। फिर हमने उसकी दुआ स्वीकार की और उसे शोक से नजात दी, और इसी तरह हम ईमान वालों को नजात दिया करते हैं।” (सूरतुल अंबिया : 87-88).

तथा सर्वशक्तिमान अल्लाह ने फरमाया :                     

  فَلَوْلَا أَنَّهُ كَانَ مِنَ الْمُسَبِّحِينَ * لَلَبِثَ فِي بَطْنِهِ إِلَى يَوْمِ يُبْعَثُونَ

الصافات : 143 

“यदि वह तस्बीह करनेवालों में से न होता, तो उस (मछली) के पेट में उस दिन तक रहता, जब लोग उठाए जाएँगे।” (सुरतुस्साफ्फ़ात : 143)

अहमद (हदीस संख्या : 1462) और तिरमिज़ी (हदीस संख्या : 3505) ने सअद रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “मछली वाले (यानी यूनुस अलैहिस्सलाम) की दुआ जब उन्होंने मछली के पेट में रहते हुए दुआ की, यह थी : لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ سُبْحَانَكَ إِنِّي كُنْتُ مِنَ الظَّالِمِينَ “ला इलाहा इल्ला अन्ता सुब्हानक, इन्नी कुन्तो मिनज़्ज़ालेमीन” (तेरे अलावा कोई सच्चा पूज्य नहीं, तू पवित्र है, निःसंदेह मैं ही ज़ालिमों में से था), इन शब्दों के माध्यम से कोई भी मुसलमान किसी चीज़ के बारे में दुआ माँगे, तो अल्लाह तआला उसकी दुआ को स्वीकार करेगा।'' इसे अल्बानी रहिमहुल्लाह ने [''सहीहुल जामे'' (हदीस संख्याः 3383) में] सहीह क़रार दिया है।

इब्नुल-क़ैयिम रहिमहुल्लाह ने कहा : “इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया : पैगंबरों में से कोई पैगंबर संकट से पीड़ित नहीं हुआ, परंतु उसने तस्बीह (अल्लाह के महिमामंडन) के साथ मदद मांगी।” “अल-जवाबुल-काफ़ी” (पृष्ठ : 14) से उद्धरण समाप्त हुआ।

4 – जहाँ तक नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दुरूद भेजने की बात है, तो यह शोक और संकट के मोचन का सबसे बड़ा कारण है।

अहमद (हदीस संख्या : 21242) और तिरमिज़ी (हदीस संख्या : 2457) ने उबैय बिन कअब रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है और ये शब्द तिरमिज़ी के हैं, उन्होंने कहा : जब दो-तिहाई रात बीत जाती, तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उठते और फरमाते : “ऐ लोगो, अल्लाह को याद करो, अल्लाह को याद करो। काँपने वाली (क़यामत की घड़ी) आने ही वाली है (अर्थात पहला सूर फूँका ही जाने वाला है जिसके साथ सब लोग मर जाएँगे) और उसके पीछे-पीछे वह भी आ रही है जो पीछे आने वाली है (अर्थात दूसरा सूर भी फूँका ही जाने वाला है जिसकी आवाज़ पर सब प्रलय के लिए उठ खड़े होंगे)। मौत अपनी सख़्तियों के साथ आ गई है, मौत अपनी सख्तियों के साथ आ गई है।” उबैय रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं : मैंने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल, मैं आप पर अधिक दुरूद भेजता हूँ, तो मैं आप पर दुरूद भेजने के लिए अपनी दुआ (जप) का कितना हिस्सा निर्धारित कर लूँॽ आपने फरमाया : “जितना तुम चाहो।” मैंने कहा : एक चौथाईॽ आपने कहा : “जितना तुम चाहो। यदि इससे अधिक कर लो, तो यह तुम्हारे लिए बेहतर है।” मैंने कहा : आधाॽ आपने फरमाया : “जितना तुम चाहो। और अगर इससे अधिक कर लो, तो यह तुम्हारे लिए बेहतर है।” मैंने कहा : दो तिहाईॽ आपने फरमाया : “जितना तुम चाहो। और अगर इससे अधिक कर लो, तो यह तुम्हारे लिए बेहतर है।” मैंने कहा : मैं अपनी पूरी दुआ आप पर दुरूद के लिए विशिष्ट कर दूँॽ इस पर आपने फरमाया : “तब तो यह तुम्हारी सभी चिंताओं के लिए पर्याप्त होगा और तुम्हारे पाप क्षमा कर दिए जाएँगे।”

अहमद की हदीस के शब्द इस प्रकार हैं : उबैय बिन कअब रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपने पिता के माध्यम से रिवायत किया कि उन्होंने कहा : एक आदमी ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल, आपका क्या विचार है यदि मैं अपनी पूरी दुआ (जप) आप पर दुरूद के लिए नियत कर दूँॽ आपने फरमाया : “तब तो अल्लाह तुम्हारी दुनिया एवं आख़िरत की समस्त चिंताओं के प्रति तुम्हारे लिए काफी (पर्याप्त) हो जाएगा।”

इस हदीस को अलबानी तथा मुसनद इमाम अहमद के अनुसंधान कर्ताओं ने हसन कहा है।

शैखुल-इस्लाम इब्ने तैमिय्यह रहिमहुल्लाह से इस हदीस की व्याख्या के बारे में पूछा गया, जैसाकि इब्नुल-क़ैयिम ने “जलाउल अफ़हाम” (पृष्ठ : 79) में उद्धृत किया है, तो उन्होंने कहा : “उबैय बिन कअब रज़ियल्लाहु अन्हु की एक दुआ (जप) थी, जिसके साथ वह अपने लिए दुआ करते थे। उन्होंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से पूछा : क्या वह उसमें से एक चौथाई हिस्सा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दुरूद भेजने के लिए विशिष्ट कर देंॽ इस पर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “अगर तुम इससे अधिक कर लो, तो यह तुम्हारे लिए बेहतर है।” फिर कहा : आधाॽ तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमया : “अगर तुम इससे अधिक कर लो, तो यह तुम्हारे लिए बेहतर है।” यहाँ तक कि उन्होंने कहा : मैं अपनी पूरी दुआ आपके लिए विशिष्ट कर दूँॽ अर्थात : मैं अपनी दुआ का पूरा समय आप पर दुरूद पढ़ता रहूँ। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाय : “तब तो यह तुम्हारी सभी चिंताओं के लिए पर्याप्त होगा और तुम्हारे पाप क्षमा कर दिए जाएँगे।” क्योंकि जो कोई भी नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर एक बार दुरूद पढ़ता है, अल्लाह उसके बदले उस पर दस रहमतें भेजता है, और जिस पर स्वयं अल्लाह रहमत भेजे, तो वह उसकी चिंता के लिए पर्याप्त हो जाएगा और उसके पाप को क्षमा कर देगा।” उद्धरण समाप्त हुआ।

5- जहाँ तक आफ़ियत (सुरक्षा) का सवाल करने का संबंध है, तो यह सुबह और शाम धर्मसंगत है, जबकि महामारी फैलने पर ऐसा करना सुनिश्चित हो जाता है।

अहमद (हदीस संख्या : 4785), अबू दाऊद (हदीस संख्या : 5074) और इब्ने माजा (हदीस संख्या : 3871) ने अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब सुबह करते और जब शाम करते तो इन दुआओं का पढ़ना नहीं छोड़ते थे :

  اللهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ الْعَافِيَةَ فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ، اللهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ الْعَفْوَ وَالْعَافِيَةَ فِي دِينِي وَدُنْيَايَ وَأَهْلِي وَمَالِي، اللهُمَّ اسْتُرْ عَوْرَاتِي، وَآمِنْ رَوْعَاتِي، اللهُمَّ احْفَظْنِي مِنْ بَيْنِ يَدَيَّ، وَمِنْ خَلْفِي، وَعَنْ يَمِينِي، وَعَنْ شِمَالِي، وَمِنْ فَوْقِي، وَأَعُوذُ بِعَظَمَتِكَ أَنْ أُغْتَالَ مِنْ تَحْتِي 

“अल्लाहुम्मा इन्नी अस-अलुकल आफ़ियह, फ़िद्दुन्या वल-आख़िरह, अलाहुम्मा इन्नी अस-अलुकल अफ़्वा वल आफ़ियह फ़ी दीनी व दुन्याया व अह्ली व माली, अल्लहुम्मस्-तुर औराती व आमिन रौआती, अल्लहुम्मह़्-फ़ज़्नी मिन् बैने यदय्या व मिन् ख़ल्फ़ी व अन् यमीनी व अन् शिमाली व मिन् फ़ौक़ी, व अऊज़ो बि-अज़मतिका अन् उग़ताला मिन् तह़्ती”

(ऐ अल्लाह! मैं तुझसे दुनिया और आख़िरत में आफ़ियत (सुरक्षा) का सवाल करता हूँ। ऐ अल्लाह! मैं तुझसे माफ़ी और अपने दीन, अपनी दुनिया, अपने परिवार और अपने धन में तुझसे आफ़ियत (सुरक्षा) का सवाल करता हूँ। ऐ अल्लाह! मेरी पर्दे वाली चीज़ (खामियों) पर पर्दा डाल दे और मेरी घबराहटों को सुकून (शांति) में बदल दे। ऐ अल्लाह! मेरे सामने से, मेरे पीछे से, मेरे दाएँ से, मेरे बाएँ से तथा मेरे ऊपर से मेरी ह़िफ़ाज़त कर, और इस बात से मैं तेरी अ़ज़मत (माहनता) की शरण चाहता हूँ कि मैं अचानक अपने नीचे से विनष्ट कर दिया जाऊँ।”

तथा अहमद (हदीस संख्या : 20430) और अबू दाऊद (हदीस संख्या : 5090) ने अब्दुर्रहमान बिन अबी बक्रह से रिवायत किया है कि उन्होंने अपने पिता से कहा : ऐ मेरे पिता, मैं आपको हर सुबह यह दुआ पढ़ते हुए सुनता हूँ :

 اللَّهُمَّ عَافِنِي فِي بَدَنِي، اللَّهُمَّ عَافِنِي فِي سَمْعِي، اللَّهُمَّ عَافِنِي فِي بَصَرِي، لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ 

“अल्लाहुम्मा आफ़िनी फ़ी बदनी, अल्लाहुम्मा आफ़िनी फ़ी सम्ई, अल्लाहुम्मा आफ़िनी फ़ी बसरी, ला इलाहा इल्ला अन्त” (ऐ अल्लाह मेरे शरीर को स्वास्थ्य एवं सुरक्षा प्रदान कर, ऐ अल्लाह मेरे कान को स्वास्थ्य प्रदान कर, ऐ अल्लाह मेरी दृष्टि को स्वास्थ्य प्रदान कर। तेरे अलावा कोई सच्चा पूज्य नहीं।” आप इसे तीन बार दोहराते हैं जब आप सुबह करते हैं और तीन बार जब आप शाम करते हैं।” तो उन्होंने कहा : मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को यह दुआ करते हुऐ सुना है। इसलिए मुझे पसंद है कि मैं आपकी सुन्नत (तरीक़े) का पालन करूँ।”

इस स्थान पर उपयोगी दुआओं में से इन हदीसों में वर्णित दुआएँ भी हैं :

तिरमिज़ी ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : “अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम दुआ करते थे तो फरमाते :

 اللَّهُمَّ مَتِّعْنِي بِسَمْعِي وَبَصَرِي وَاجْعَلْهُمَا الوَارِثَ مِنِّي، وَانْصُرْنِي عَلَى مَنْ يَظْلِمُنِي، وَخُذْ مِنْهُ بِثَأْرِي 

“अल्लाहुम्मा मत्ते’नी बि-सम्ई व बसरी, वज्-अल्हुमल-वारिसा मिन्नी, वन्-सुर्नी अला मन् यज़लिमुनी, व ख़ुज़ मिन्हु बि-सा’री” (ऐ अल्लाह मुझे मेरे कान और आँख से लाभ पहुँचा और उन्हें (मेरी मृत्यु तक) स्वस्थ और सुरक्षित रख। और जो मुझपर अत्याचार करे उसके विरुद्ध मेरा सहयोग कर और उससे मेरा बदला ले।”

 وَاجْعَلْهُمَا الوَارِثَ مِنِّي  “और उन्हें मेरा उत्तराधिकारी बना दे” अर्थात् उन्हें तब तक स्वस्थ एवं सुरक्षित रख जब तक मैं मर नहीं जाता।

अहमद (हदीस संख्या : 13004), अबू दाऊद (हदीस संख्या : 1554) और नसई (हदीस संख्या : 5493) ने अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम यह दुआ पढ़ा करते थे :

 اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنَ البَرَصِ، وَالْجُنُونِ، وَالْجُذَامِ، وَمِنْ سَيِّئِ الْأَسْقَامِ 

“अल्लाहुम्मा इन्नी अऊज़ो बिका मिनल-बरसे, वल-जुनूने, वल-जुज़ामे, व मिन-सैयेइल-असक़ामे” (ऐ अल्लाह! मैं बर्स, पागलपन, कोढ़ (कुष्ठ) और समस्त बुरी बीमारियों से तेरी शरण लेता हूँ)।

तथा अहमद (हदीस संख्या : 528), अबू दाऊद (हदीस संख्या : 5088), तिरमिज़ी (हदीस संख्या : 3388)  और इब्ने माजा (हदीस संख्या : 5493) ने उसमान बिन अफ्फान रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फरमाते हुए सुना : “जो व्यक्ति तीन बार :

 بِسْمِ اللَّهِ الَّذِي لَا يَضُرُّ مَعَ اسْمِهِ شَيْءٌ، فِي الْأَرْضِ، وَلَا فِي السَّمَاءِ، وَهُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ 

"बिस्मिल्लाहिल्लज़ी ला यज़ुर्रो म'अ़स्मिहि शैउन् फ़िल् अर्ज़ि वला फ़िस्समा, व हुवस्स-मीउल् अ़लीम" (मैं उस अल्लाह के नाम के द्वारा शरण चाहता हूँ जिसके नाम के साथ धरती और आकाश में कोई चीज़ नुक़सान नहीं पहुँचा सकती और वह सुनने वाला, जानने वाला है) पढ़े, तो उसपर अचानक कोई संकट नहीं आएगी यहाँ तक कि सुबह हो जाए, तथा जो व्यक्ति तीन बार इसे सुबह के समय पढ़े तो शाम होने तक उसे अचानक कोई मुसीबत नहीं पहुँचेगी।”

6- जहाँ तक संगरोध (क्वारंटाइन) और चिकित्सा उपचार (दवा-इलाज) जैसे कारणों के अपनाने का संबंध है, तो हमारे पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के मार्गदर्शन से इसका पता चलता है, जैसे कि आपने दवा-इलाज कराने का आदेश दिया है, बीमारी के विरुद्ध प्रतिरक्षा बनाने का संकेत दिया है, स्वस्थ के पास रोगी को न लाने तथा उस देश की यात्रा न करने का निर्देश दिया है जहाँ ताऊन फैला हुआ हो।

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “दवा-दारू (इलाज) कराओ। क्योंकि अल्लाह ने कोई बीमारी नहीं रखी है मगर उसके लिए दवा (रोगनिवारण) भी रखी है सिवाय एक बीमारी के। वह बुढ़ापा है।” इसे अहमद (हदीस संख्या : 17726), अबू दाऊद (हदीस संख्या : 3855), तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 2038) और इब्ने माजा (हदीस संख्या : 3436) ने रिवायत किया है और अलबानी ने इसे “सहीह अबी दाऊद” में सहीह के रूप में वर्गीकृत किया है।

तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जिस व्यक्ति ने सुबह के समय सात अजवा खजूरे खा लीं, उसे उस दिन न तो कोई ज़हर नुकसान पहुँचाएगा और न कोई जादू।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 5769) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 2057) ने रिवायत किया है।

तथा बुखारी (हदीस संख्या : 5771) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 2221) ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “बीमारी से पीड़ित को स्वस्थ के पास न लाया जाए।”

तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जब तुम किसी भूमि में ताऊन (प्लेग) के प्रकोप के बारे में सुनो, तो उसमें प्रवेश न करो। लेकिन जब यह महामारी किसी भूमि में फैल जाए और तुम उसी स्थान पर हो, तो वहाँ से बाहर न निकलो।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 5728) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 2218) ने रिवायत किया है।

हम अल्लाह सर्वशक्तिमान से प्रार्थना करते हैं कि वह हमारे ऊपर से संकट और महामारी को टाल दे।

और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

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