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कोरोना वायरस की महामारी के कारण कर्फ्यू की वजह से घर में ईद की नमाज़ अदा करने का हुक्म

21-05-2020

प्रश्न 339140

लॉकडाउन और कोरोना वायरस के कारण, क्या घर में तीन से अधिक पुरुषों के होने पर घर में ईद की नमाज़ अदा करना जायज़ हैॽ क्या यह घर में नमाज़ पढ़ने का एक वैध कारण (सही उज़्र) हैॽ यदि कोई व्यक्ति, संगरोध के कारण, अपने परिवार के साथ अपने घर में ईद की नमाज़ पढ़ता है, तो क्या उसे ख़ुत्बा देगा चाहिए या नहींॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सर्व प्रथम :

जिस व्यक्ति की ईद की नमाज़ छूट गई, या किसी बाधा के कारण उसके लिए उसमें शामिल होना संभव नहीं हो सका, तो उसके लिए जायज़ है कि वह उसे उसके परिचित (नियमित) तरीक़े के अनुसार : दो रकअत अतिरिक्त तकबीरों के साथ, अपने घर में पढ़ ले, भले ही वह अकेला हो। यही विद्वानों की बहुमत (जमहूर) का दृष्टिकोण है।

देखें : इब्ने क़ुदामह की “अल-मुग़्नी” (2/289).

तथा उसे निश्चित रूप से उसके वास्तविक तरीक़े के अनुसार पढ़ना चाहिए, यदि मामला छूटी हुई नमाज़ की क़ज़ा करने का न हो, बल्कि वही मूल नमाज़ हो, जिससे फ़र्ज़ (व्यक्तिगत दायित्व) की अदायगी, या फ़र्ज़े-किफ़ाया (सामुदायिक दायित्व) की पूर्ति होती है, जैसा कि वर्तमान समय में अधिकांश देशों में लोगों का मामला है।

दूसरा :

शाफेइया का मत यह है कि अकेले व्यक्ति के लिए ईद की नमाज़ अपने घर में अदा करना सुन्नत है। अतः उनके विचार के अनुसार वह उस व्यक्ति से संबंधित नहीं है जिसकी नमाज़ छूट गई हो।

मुज़नी ने इमाम शाफ़ेई रहिमहुल्लाह से “मुख़तसर अल-उम्म” (8/125) में उल्लेख किया है : “जो व्यक्ति अकेले नमाज़ अदा कर रहा है वह ईदैन की नमाज़ अपने घर में अदा करेगा, तथा यात्री, गुलाम (दास) और महिला भी।” उद्धरण समाप्त हुआ।

तथा देखें : अल-मजमू (5/26).

उनके विचार में, इन लोगो में से जो भी ईद की नमाज़ जमाअत के साथ पढ़ता है, उसके लिए खुत्बा देना सुन्नत है।

“मुग़्नी अल-मुहताज” (3/40) में कहा गया है : “नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आपके ख़ुलफ़ा-ए-राशेदीन के उदाहरण का पालन करते हुए, जमाअत के साथ दोनों ईद की नमाज़ पढ़ने के बाद, दो खुत्बे देना सुन्नत है। और जमाअत में यात्रियों और अन्य लोगों के बीच कोई अंतर नहीं है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

मालिकिय्या का दृष्टिकोण यह है कि जिसे ईद की नमाज़ अदा करने का आदेश नहीं दिया गया है, या जिसकी जमाअत के साथ नमाज़ छूट गई है, उसके लिए उसे पढ़ना मुस्तहब है, चाहे वह अकेला ही क्यों न हो।

अल-खरशी ने “शर्ह मुख़्तसर खलील” (2/104) में कहा है : “(मूल पाठ) तथा उस व्यक्ति का उसे क़ायम करना, जिसे उसका आदेश नहीं दिया गया है, या जिससे वह छूट गई है।

(शर्ह) अर्थात जिस व्यक्ति को अनिवार्य रूप से जुमे की नमाज़ का अदेश नहीं दिया गया है, या जिसकी इमाम के साथ ईद की नमाज़ छूट गई है, उसके लिए उसे अदा करना मुस्तहब है।

लेकिन क्या उसे जमाअत के साथ अदा किया जाएगा, या अकेलेॽ इसके बारे में दो मत हैं।” उद्धरण समाप्त हुआ।

कुछ विद्वानों ने उसे व्यक्तिगत रूप से (अकेले) अदा करना राजेह (उचित) कहा है। तथा देखें : हाशिया अद-दसूक़ी (1/401).

मालिकिय्या के यहाँ यह भी है कि : यदि वे उसे जमाअत के साथ पढ़ेंगे, तो उसे बिना खुत्बे के पढ़ेंगे।

अल-हत्ताब ने “मवाहिबुल-जलील” (2/198) में कहा है : “शहर में रहने वाले लोगों में से जिसकी (ईद की) नमाज़ छूट गई है, उसके लिए जमाअत के साथ नमाज़ के जायज़ होने पर : वह खुत्बा नहीं देगा; इसके बारे में कोई मतभेद नहीं है। यही हुक्म उस व्यक्ति पर भी लागू होता है जो किसी उज़्र की वजह से उससे पीछे रह गया है ...”

तथा इस नमाज़ को घरों में पढ़ने की वैधता को वह हदीस दर्शाती है जिसे बुख़ारी ने अपनी सहीह में मुअल्लक़न जज़्म के शब्द के साथ (अर्थात दृढ़ शब्दों में) रिवायत किया है। उन्होंने कहा : “अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु ने अज़-ज़ावियह नामी गाँव में रहने वाले में अपने आज़ाद किए हुए गुलाम इब्ने अबी उत्बह को आदेश दिया कि वह अपने परिवार और बेटों को इकट्ठा करके (शहर वालों की तरह ईद की नमाज़ पढ़ें)।” उद्धरण समाप्त हुआ।

इब्ने रजब ने “फ़त्हुल-बारी” (9/76) में कहा : “अनस से ईद की नमाज़ शहर में रहते हुए नहीं छूटी थी, बल्कि वह शहर से बाहर, उससे बहुत दूर रहते थे। इसलिए वह गाँवों में रहने वालों के हुक्म में हैं। इमाम अहमद ने - उनसे उल्लिखित एक वर्णन में इसकी ओर संकेत किया है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

तीसरा :

शैख अब्दुर-रहमान अल-बर्राक ने फ़तवा दिया है कि यदि महामारी और तालाबंदी के कारण देश (शहर) में ईद की नमाज़ अदा करना दुर्लभ (असंभव) हो जाए, तो उसका हुक्म उस व्यक्ति का हुक्म है जिसकी ईद की नमाज छूट गई। तो उसे घरों में उसके परिचित (नियमित) तरीक़े के अनुसार पढ़ा जाएगा।

उन्होंने कहा : “यदि किसी बाधा के कारण ईद की नमाज़ को आयोजित करना दुर्लभ (असंभव) हो जाए, जैसा कि इन दिनों में है, तो उसका हुक्म उस व्यक्ति का हुक्म है जिसकी यह नमाज़ छूट गई है, अर्थात ईद की नमाज़ ...

जहाँ तक इस कथन का संबंध है कि ईद की नमाज़ की क़ज़ा नहीं की जाती है, तो वह यहाँ लागू नहीं होता है; क्योंकि हमारी मौजूदा स्थिति में ईद की नमाज़ सिरे से पढ़ी ही नहीं जाएगी। इसलिए फ़र्ज़ की अदायगी नहीं होगी। लेकिन इस स्थिति में, ईद की नमाज़ को उस व्यक्ति की स्थिति पर क़यास किया जाएगा जिसकी वह नमाज़ छूट गई है, जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया। और अल्लाह ही सबसे अधिक जानता है।” संक्षेप के साथ शैख की वेबसाइट से उद्धरण समाप्त हुआ :

https://sh-albarrak.com/article/18234

सारांश यह कि :

1- जो व्यक्ति अकेले ईद की नमाज़ अदा करता है, वह उसे ख़ुत्बे के बिना पढ़ेगा।

2- जो व्यक्ति ईद की नमाज़ जमाअत के साथ पढ़ता है, तो शाफेइय्या के मतानुसार : उसके लिए उसके बाद दो खुत्बे देना सुन्नत है; खासकर जब मुसलमानों की सामान्य परिषदों में ईद की नमाज़ पढ़कर उसकी पर्याप्तता संपन्न नहीं हुई है।

जबकि मालिकिय्या और हनाबिला के दृष्टिकोण, तथा उन लोगों के अनुसार जो यह समझते हैं कि वर्तमान समय में उज़्र वाला व्यक्ति उस आदमी के समान है, जिसकी ईद की नमाज़ छूट गई हो : ईद की नमाज़ जमाअत के साथ बिना खुत्बे के पढ़ी जाएगी।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

ईदैन की नमाज़
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