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उम्रा के लिए तवाफ करते समय मेरा वुज़ू टूट गया और मुझे पता नहीं था कि मुझे क्या करना चाहिए। अतः मैं तवाफ से बाहर निकला और वुज़ू करके फिर से तवाफ किया और फिर सफ़ा और मरवा के बीच सई की। तो क्या मेरा यह कार्य सही है? और मुझे क्या करना चाहिए था?
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
आपने वुज़ू और तवाफ़ को दोबारा करके बहुत अच्छा किया। तथा आपने सबसे अच्छा और सबसे अधिक सावधानी का तरीक़ा अपनाया। अधिकतर उलमा इस बात की ओर गए हैं कि नमाज़ की तरह तवाफ़ के सही होने के लिए अशुद्धता से पवित्र होना शर्त है। तो जिस तरह पवित्रता रहित आदमी की नमाज़ सही नही है यहाँ तक कि वह वुज़ू करले, उसी तरह तवाफ़ भी (बिना वुज़ू के सही नहीं) है।
इब्ने क़ुदामा रहिमहुल्लाह कहते हैं :
(इमाम अहमद के प्रसिद्ध कथन के अनुसार, तवाफ़ के शुद्ध होने के लिए नापाकी से पवित्रता हासिल करना शर्त है। और यही मालिक और शाफेई का कथन है।)
जमहूर उलमा ने इस कथन के लिए कई प्रमाणों से तर्क स्थापित किया है। जिनमें से कुछ ये हैं :
1 – नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : ‘‘अल्लाह के घर का तवाफ़ नमाज़ है, परंतु तुम इसमें बात-चीत कर सकते हो।’’ इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्याः 960) ने रिवायत किया है और अलबनी ने इर्वाउल गलील (हदीस संख्याः 121) में सहीह क़रार दिया है।
2 – सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम में आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से साबित है कि उन्होंने फरमाया : ‘‘जब आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने तवाफ का इरादा किया तो वुज़ू किया।’’ और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : ‘‘मुझसे अपने मनासिक (हज्ज व उम्रा के कार्य) सीख लो।’’ इसे मुस्लिम (हदीस संख्याः 1297) ने रिवायत किया है।
“फतावा शैख़ इब्ने बाज़” (17/213-214).
3 – सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम में प्रमाणित है कि जब हज्ज के समय आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा मासिक धर्म से हो गईं, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनसे फरमाया : (तुम वह सब काम करो जो हाजी लोग करते हैं, सिवाय इसके कि तुम अल्लाह के घर का तवाफ न करो यहाँ तक कि तुम पाक हो जाओ।’’
शैख़ इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह से सवाल किया गया : मेरी एक संबंधी महिला ने रमज़ान में उम्रा किया, जब वह हरम में दाखिल हुई तो लघु अशुद्धता से पीड़ित होगई, उसने गोज़ कर दिया और अपने घर वालों को यह बताने में उसे लज्जा महसूस हुई कि वह वुज़ू करना चाहती है। फिर उसने तवाफ़ किया और तवाफ पूरा करके अकेले ही जाकर वुज़ू किया और फिर सई की। तो क्या उसके ऊपर दम (बलि) अनिवार्य है या कफ्फारा (प्रायश्चित्त)ॽ
तो शैख़ ने उत्तर दिया :
उसका तवाफ़ सही नहीं है, क्योंकि नमाज़ की तरह तवाफ़ के सही होने के लिए पवित्रता (यानी वुज़ू) शर्त है। इसलिए उसे मक्का वापस जाकर बैतुल्लाह का तवाफ़ करना चाहि, और उसके लिए मुस्तहब है कि फिर से सई करे। इसलिए की अक्सर उलमा के निकट तवाफ़ से पहले सई करना जायज़ नहीं है। और फिर पूरे सिर से बाल काट कर हलाल हो जाए। और अगर वह विवाहिता थी और उसके पति ने उसके साथ संभोग किया है, तो उस (महिला) पर एक दम (जानवर की बलि) अनिवार्य है जिसे मक्का में ग़रीबों के लिए ज़बह किया जाएगा। और उस महिला पर अनिवार्य है की वह उसी मीक़ात से एक नया उम्रा करे, जहाँ से उसने पहले उम्रा का एहराम बाँधा था। क्योंकि पहला उम्रा संभोग के कारण ख़राब हो गया। अतः उसे चाहिए की वे सारे कार्य करे जो हमने उल्लेख किए हैं। फिर वह उसी मीक़ात से एक नया उम्रा करे जहाँ से उसने पहले उम्रा के लिए एहराम बाँधा था। चाहे तो वह तत्काल उम्रा करे या अपनी क्षमता के अनुसार दूसरे समय पर करे। और अल्लाह ही तौफीक़ देने वाला है।’’ उद्धरण समाप्त हुआ।
“फतावा शैख़ इब्ने बाज़” (17/214-215).
तथा शैख़ से यह भी पूछा गया कि : एक आदमी ने तवाफ आरंभ किया तो उसकी हवा ख़ारिज हो गई, क्या उसके लिए तवाफ को रोकना आवश्यक है या वह उसे जारी रखेॽ
तो शैख़ ने जवाब दिया :
यदि तवाफ़ करते समय, हवा छूटने या पेशाब या वीर्यपतन या शर्मगाह छूने या इसी जैसी अन्य चीज़ों के कारण किसी मनुष्य की पवित्रता समाप्त हो जाए, तो नमाज़ की तरह उसका तवाफ भी बाधित हो जाएगा। अतः वह आदमी जाकर वुज़ू करेगा, फिर पुनः तवाफ शुरू करेगा, यही सही मत है। हालाँकि इस मस्अला में मतभेद है, परंतु तवाफ और नमाज़ दोनों में सही मत यही है, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का कथन है : ‘‘जब तुममें से कोई व्यक्ति नमाज़ में गोज़ कर दे, तो उसे चाहिए कि वापस जाकर वुज़ू करे और नमाज़ को दोहराए।’’ (इसे अबू दाऊद ने रिवायत किया है और इब्ने खुजैमा ने सहीह कहा है)। और तवाफ सामान्य रूप से नमाज़ ही के प्रकार में से है .... उद्धरण समाप्त हुआ।
“मजमूओ फतावा शैख इब्ने बाज़” (17/216-217)
कुछ विद्वानों का विचार यह है कि (लघु) अशुद्धता से पवित्रता (यानी वुज़ू करना) तवाफ के लिए शर्त नहीं है। यह अबू हनीफा रहिमहुल्लाह का मत है, और इसी को शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह ने भी अपनाया है। इन लोगों ने पहले कथन के प्रमाणों का निम्नलिखित जवाब दिया है :
जहाँ तक (बैतुल्लाह का तवाफ नमाज़ है) वाली हदीस का संबंध है, तो उन्होंने इसका यह जवाब दिया है कि : यह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कथन से साबित नहीं है। बल्कि यह इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा का कथन है। इमाम नववी ‘‘अल-मजमूअ’’ में कहते हैं : ‘‘सही बात यही है की यह रिवायत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा पर मौक़ूफ है, (यानी इब्ने अब्बास का कथन है)। बैहक़ी और उनके अलावा अन्य हुफ्फाज़ (हदीस के विद्वानों) ने इसी तरह उल्लेख किया है।) उद्धरण समाप्त हुआ।
जहाँ तक नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के अमल का संबंध है कि आपने पवित्रता यानी वुज़ू की हालत में तवाफ़ किया, तो उन्होंने इसका यह जवाब दिया है की : आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह अमल अनिवार्यता पर दलालत नहीं करता है। बल्कि यह केवल मुस्तहब (वांछनीय) होने पर दलालत करता है। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यह अमल किया है, परंतु यह कहीं भी प्रमाणित नहीं है कि आपने अपने सहाबा को इसका आदेश दिया है।
तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से यह कहना किः (तुम वह सब काम करो जो हाजी लोग करते हैं, सिवाय इसके कि तुम बैतुल्लाह का तवाफ न करो यहाँ तक कि तुम पवित्र हो जाओ।) तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन्हें तवाफ से इसलिए रोका था क्योंकि वह मासिक धर्म की अवस्था में थीं और मासिक धर्म वाली महिला के लिए मस्जिद में प्रवेश करना वर्जित है।
शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या कहते हैं :
जो लोग तवाफ के लिए वुज़ू को अनिवार्य क़रार देते हैं उनके पास बिलकुल कोई प्रमाण नहीं है; क्योंकि किसी ने भी नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सहीह इसनाद या ज़ईफ़ इसनाद के साथ यह उल्लेख नहीं किया है कि आपने तवाफ के लिए वुज़ू का आदेश दिया है। जबकि ज्ञात रहना चाहिए कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ एक बड़े जन-समूह ने हज्ज किया था। तथा आपने अनेक बार उम्रा किया और आपके साथ लोग भी उम्रा करते थे। यदि तवाफ के लिए वुज़ू अनिवार्य होता, तो आप इसे सार्वजनिक तौर पर बयान किए होते। और अगर आप ने उसे बयान किया होता, तो मुसलमान लोग उसका आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से अवश्य उल्लेख करते, उसे नज़रअंदाज़ नहीं करते। लेकिन सहीह (हदीस) में साबित है की जब आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने तवाफ किया, तो वुज़ू किया। और अकेले यह अमल (तवाफ के लिए वुज़ू की) अनिवार्यता पर दलालत नहीं करता। क्योंकि आप हर नमाज़ के लिए वुज़ू करते थे, तथा आपका फरमान है : ‘‘मैं बिना पवित्रता (वुज़ू) के अल्लाह का ज़िक्र करना नापसंद करता हूँ।’’ .... उद्धरण समाप्त हुआ। ।
‘‘मजमूउल-फतावा’’ (21/273).
इस कथन - यानी तवाफ के लिए वुज़ू की शर्त न लगाने – के मज़बूत होने और दलीलों के इसकी संभावना रखने के बावजूद, मनुष्य के लिए उचित नहीं है कि वह बिना वुज़ू के तवाफ करे। और यह इसलिए कि वुज़ू की हालत में तवाफ करना निःसंदेह सबसे श्रेष्ठ, सबसे सावधानीपूर्ण और सबसे अधिक भारमुक्त करनेवाला है। और इससे मनुष्य जमहूर उलमा के विरोध से बच जाता है।
परंतु मनुष्य, वुज़ू का ध्यान रखने में गंभीर कष्ट के कारण इस कथन पर अमल कर सकता है। और ऐसा हज्ज के मौसम में होता है, या जब आदमी बीमार या बूढ़ा हो और सख्त भीड़-भाड़ और धक्कमपेल के साथ उसके लिए अपनी पवित्रता को सुरक्षित रखना कठिन हो . . इत्यादि।
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह जमहूर विद्वानों की दलीलों का जवाब देने के बाद कहते हैं :
इस आधार पर : राजेह मत जिस पर ह्रदय सन्तुष्ट होता है, यह है कि : तवाफ में छोटी नापाकी से पवित्र होना (अर्थात् बा-वुज़ू होना) शर्त नहीं है। परंतु बिना किसी संदेह के यही सर्वश्रेष्ठ और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अनुसरण करने में अधिक पूर्ण है। तथा मनुष्य के लिए उचित नहीं है कि वह इस बारे में जमहूर उलमा के मतभेद की वजह से इसमें कमी करे। लेकिन कभी-कभी इनसान उस मत को अपनाने पर मजबूर हो जाता है जिसकी ओर शैखुल-इस्लाम गए हैं, उदाहरण के तौर पर : यदि अधिक भीड़-भाड़ में अपने तवाफ़ के दौरान उसका वुज़ू टूट जाए, तो यह कहना कि उसके लिए अनिवार्य है कि वह जाकर वुज़ू करे और फिर इस सख्त भीड़-भाड़ में वापस आए, विशेषकर जब उसके ऊपर तवाफ के चक्कर का कुछ ही भाग बाक़ी बचा हो : इसमें गंभीर कष्ट पाया जाता है। और जिसमें गंभीर कष्ट हो और उसके बारे में कोई शरई प्रमाण स्पष्ट न हो : तो यह उचित नहीं है कि हम लोगों पर उसे अनिवार्य कर दें, बल्कि हम उस चीज़ का पालन करेंगे जो सबसे सरल और सबसे आसान हो। क्योंकि बिना किसी स्पष्ट सबूत के लोगों के लिए ऐसी चीज़ अनिवार्य ठहराना जिसमें कष्ट पाया जाता है, अल्लाह के इस कथन के विरुद्ध है :
يريد الله بكم اليسر ولا يريد بكم العسر
البقرة : 185
(अल्लाह का इरादा तुम्हारे साथ आसानी का है वह तुम्हारे साथ सख्ती नहीं चाहता।’’ (सूरतुल-बक़राः 185)। उद्धरण समाप्त हुआ।
‘‘अश-शर्हुल मुम्ते’’ (7/300).
जहाँ तक सई का संबंध है : तो इसके लिए वज़ू शर्त नहीं है। यही चारों इमामों; अबू हनीफा, मालिक, शाफेई और अहमद का मत है। बल्कि मासिक धर्म वाली महिला के लिए सफा व मरवा के बीच सई करना जायज़ है, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मासिक धर्म वाली महिला को केवल तवाफ करने से रोका है। चुनाँचे आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा को जब मासिक धर्म आ गया, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनसे फरमाया : (तुम वह सब काम करो जो हाजी लोग करते हैं, सिवाय इसके कि तुम बैतुल्लाह का तवाफ़ न करो यहाँ तक कि तुम पवित्र हो जाओ।)
देखिए : अल-मुग़्नी (5/246)
शैख़ इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह कहते हैं : यदि किसी ने अशुद्धता (बिना वुज़ू) की हालत में सई की, या जनाबत (वीर्यपात) की हालत में सई की, या महिला ने मासिक धर्म की अवस्था में सई की : तो उनकी यह सई काफी होगी। परंतु सबसे अच्छा यही है कि वह पाकी की हालत में सई करे।
‘‘अश-शर्हुल मुम्ते’’ (7/310, 311)।
और अल्लाह ही सब से अधिक ज्ञान रखता है।