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क्या कोई निर्धारित दुआ है जो मुझे क़ुर्बानी के जानवर को ज़बह करते समय पढ़ना चाहिए?
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
जो आदमी क़ुर्बानी के जानवर को ज़बह करना चाहता है उसके लिए सुन्नत है कि वह ज़बह करते समय यह दुआ पढ़ेः
बिस्मिल्लाह, व अल्लाहु अक्बर, अल्लाहुम्मा हाज़ा मिनका व लक, हाज़ा अन्नी (और यदि वह दूसरे की क़ुर्बानी के जानवर को ज़बह कर रहा है तो कहेगाः हाज़ा अन फुलान) अल्लाहुम्मा तक़ब्बल मिन फुलान व आल फुलान (और [फलान] की जगह उस व्यक्ति का नाम ज़िक्र करे)।
इसमें अनिवार्य केवल ‘बिस्मिल्लाह’ कहना है, और जो उस से अधिक शब्द है वह मुस्तहब (वांछनीय) है, अनिवार्य नहीं है।
बुखारी (हदीस संख्याः 5565) और मुस्लिम (हदीस संख्याः1966) ने अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : ‘‘पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने दो काले-सफेद रंग के सींगदार मेंढ़े ज़बह किए, आप ने उन दोनों को अपने हाथ से ज़बह किए, और बिस्मिल्लाह अल्लाहु अक्बर कहे, और अपने पैर उनके गले पर रखे।’’
तथा मुस्लिम (हदीस संख्याः 1967) ने आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक सफेद-काले रंग का सींगदार मेंढ़ा लाने का आदेश दिया। चुनाँचे उसे लाया गया ताकि आप उसकी क़ुर्बानी करें। तो आप ने उनसे कहाः ऐ आयशा, छुरी लाओ। फिर आप ने कहा, इसे पत्थर पर रगड़कर तेज़ कर दो। चुनाँचे मैंने ऐसा ही किया। फिर आप ने उसे ले लिया और मेंढ़े को पकड़ कर उसे लिटाया, फिर उसे ज़बह किया फिर फरमायाः ‘‘बिस्मिल्लाह, अल्लाहुम्मा तक़ब्बल मिन मुहम्मद व आलि मुहम्मद व मिन उम्मति मुहम्मद’’ (अल्लाह के नाम से, ऐ अल्लाह, (इसे) मुहम्मद की ओर से और मुहम्मद की संतान और मुहम्मद की उम्मत की ओर से क़बूल करले) फिर आप ने उसकी क़ुर्बानी की।
तथा तिर्मिज़ी (हदीस संख्याः 1521) ने जाबिर बिन अब्दुल्लाह से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहाः मैं नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ ईदुल अज़्हा की नमाज़ में ईदगाह में उपस्थित था। जब आप ने अपना ख़ुत्बा (भाषण) समाप्त किया तो मिंबर से नीचे उतरे और एक मेंढ़ा लाया गया, तो रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसे अपने हाथ से ज़बह किया और फरमायाः बिस्मिल्लाह अल्लाहु अक्बर, हाज़ा अन्नी व अम्मन लम युज़ह्हि मिन उम्मती (अल्लाह के नाम से, अल्लाह सबसे बड़ा है, यह मेरी ओर से और मेरी अम्मत में से उस व्यक्ति की ओर से है जिसने क़ुर्बानी नहीं की है)। इसे अल्बानी ने सहीह तिर्मिज़ी में रिवायत किया है।
तथा कुछ रिवायतों में ‘‘अल्लाहुम्मा इन्ना हाज़ा मिन्का व लक’’ (ऐ अल्लाह, यह तेरी ओर से और तेरे ही लिए है) के शब्द की वृद्धि की है। देखिएः इर्वाउल गलील (1138), (1152)
(अल्लाहुम्मा मिन्का) : अर्थात् यह क़ुर्बानी एक अनुदान और जीविका है जो तेरी ओर से मुझे प्राप्त हुई है। (व लक) : अर्थात् विशुद्ध रूप से तेरे ही लिए है।
देखिएः अश-शर्हुल मुम्ते (7/429).