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रजब के महीने में उम्रा करना

26-01-2023

प्रश्न 36766

क्या रजब के महीने में उम्रा करने के विषय में कोई विशिष्ट फज़ीलत (पुण्य) वर्णित है ?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सबसे पहले :

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से - हमारे ज्ञान के अनुसार - रजब के महीने में उम्रा करने के बारे में कोई विशेष फज़ीलत (पुण्य), या उसके बारे में प्रोत्साहन प्रमाणित नहीं है। बल्कि उम्रा के बारे में विशेष फज़ीलत रमज़ान के महीने में, या हज्ज के महीने में साबित है और वे : शव्वाल, ज़ुल-क़ा’दा और ज़ुल-हिज्जा हैं।

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से यह प्रमाणित नहीं है कि आप ने रजब के महीने में उम्रा किया है, बल्कि आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने इसका खण्डन किया है, वह फरमाती हैं: "अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने रजब के महीने में कभी भी उम्रा नहीं किया।" इसे बुख़ारी (हदीस संख्या : 1776) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1255) ने रिवायत किया है।

दूसरा :

कुछ लोगों का विशिष्ट रूप से रजब के महीने में उम्रा करना दीन (इस्लाम धर्म) के अन्दर बिद्अत (नवाचार) में से है। क्योंकि किसी मुकल्लफ (बुद्धिमान और व्यस्क मुसलमान जो धार्मिक कर्तव्यों के पालन का योग्य हो) के लिये किसी इबादत को किसी निश्चित समय के साथ विशिष्ट करने की अनुमति नहीं है, सिवाय इसके कि शरीअत में उसका उल्लेख हुआ हो।

अल्लामा नववी के शिष्य इब्नुल अत्तार रहिमहुमल्लाह कहते हैं :

"मुझे यह बात पहुंची है कि मक्का - अल्लाह तआला उसके सम्मान में वृद्धि करे - के वासियों की रजब के महीने में बाहुल्यता के साथ उम्रा करने की आदत है, हालांकि मैं इसका कोई आधार नहीं जानता हूं। बल्कि एक हदीस में साबित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "रमज़ान में उम्रा करना हज्ज के बराबर है।" (बुखारी एंव मुस्लिम)"

शैख मुहम्मद बिन इब्राहीम रहिमहुल्लाह अपने फतावा (16 / 131) में कहते हैं :

"रजब के कुछ दिनों को किसी कृत्य (अमल) ज़ियारत इत्यादि के साथ विशिष्ट करने का कोई आधार नहीं है, क्योंकि इमाम अबू शामा ने अपनी पुस्तक "अल-बिदओ वल हवादिस" में प्रमाणित किया है कि इबादतों को ऐसे समयों के साथ विशिष्ट करना जिनके साथ शरीअत ने उन्हें निश्चित रूप से विशिष्ट नहीं किया है, उचित नहीं है। क्योंकि किसी समय को किसी दूसरे समय पर प्राथमिकता और प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं है, सिवाय उस समय के जिसे शरीअत ने किसी प्रकार की इबादत के साथ फज़ीलत प्रदान किया है, या उसके अन्दर सभी सत्कर्मों को फज़ीलत दी है। इसीलिए विद्वानों ने रजब के महीने को उसके अन्दर अधिक से अधिक उम्रा करने के द्वारा विशिष्ट करने का खण्डन किया है।" (शैख की बात समाप्त हुई)

लेकिन अगर कोई आदमी बिना किसी विशिष्ट फज़ीलत का एतिक़ाद रखते हुए, रजब के महीने में उम्रा के लिए जाये, और यह मात्र एक संयोग हो, या इसलिए जाये कि उसके लिए इसी समय यात्रा करना आसान हो सका, तो इसमें कोई हरज (गुनाह) की बात नहीं है।

बिद्अत
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