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मैं जानना चाहता हूँ कि रमज़ान के आखिरी दस दिनों के दौरान मस्जिद में एतिकाफ़ कैसे किया जाता है, ज्ञात रहे कि मैं काम करता हूँ और मेरा काम दोपहर दो बजे समाप्त होता है। क्या मेरे लिए हर समय मस्जिद में रहना ज़रूरी हैॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
एतिकाफ़ करने वाले व्यक्ति का मस्जिद से बाहर निकलना, उसके एतिकाफ़ को अमान्य कर देता है, क्योंकि एतिकाफ़ का मतलब अल्लाह की आज्ञाकारिता के लिए मस्जिद में ठहरना है।
लेकिन अगर वह एक अपरिहार्य कारण (अर्थात किसी आवश्यक काम) के लिए बाहर निकलता है, तो कोई हर्ज नहीं है, जैसे कि शौच क्रिया, वुज़ू, ग़ुस्ल करना, खाना लाना अगर उसके पास मस्जिद में खाना लाने के लिए कोई नहीं है, तथा इसी तरह के अन्य मामले जिन्हें टाला नहीं जा सकता और जिन्हें मस्जिद में करना संभव नहीं है।
बुखारी (हदीस संख्या : 2092) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 297) ने आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : “अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब एतिकाफ़ की स्थिति में होते थे, तो घर में प्रवेश नहीं करते थे, सिवाय मनुष्य की आवश्यकता (शौच क्रिया) के लिए।”
इब्ने क़ुदामा रहिमहुल्लाह ने “अल-मुग़्नी” (4/466) में कहा :
मनुष्य की आवश्यकता से अभिप्राय पेशाब और शौच करने की आवश्यकता है, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति को इनके करने की आवश्यकता होती है। इसी के अर्थ में भोजन और पेय की आवश्यकता भी है। यदि उसके पास कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जो उसे भोजन और पेय ला सके, तो वह ज़रूरत पड़ने पर उन्हें लेने के लिए बाहर जा सकता है... तथा हर वह चीज़ जो उसके लिए अपरिहार्य है और उसे मस्जिद में नहीं किया जा सकता है, तो वह उसके लिए बाहर जा सकता है और इसकी वजह से उसका एतिकाफ़ अमान्य नहीं होगा, बल्कि वह अपने एतिकाफ़ पर है जब तक वह उसे करने में एक लंबा समय नहीं लेता है।” उद्धरण समाप्त हुआ।
एतिकाफ़ करने वाले का अपना काम करने के लिए बाहर निकलना, एतिकाफ़ के विपरीत कार्य है। (अर्थात एतिकाफ़ को अमान्य कर देता है)।
स्थायी समिति से पूछा गया :
क्या एतिकाफ़ करने वाले के लिए किसी बीमार व्यक्ति की ज़ियारत (दौरा) करना, या किसी आमंत्रण (दावत) को स्वीकार करना या अपने परिवार की ज़रूरतों को पूरा करना या जनाज़ा (अंतिम संस्कार) में शामिल होना या काम पर जाना जायज़ हैॽ
तो उसने उत्तर दिया :
सुन्नत का तरीक़ा यह है कि एतिकाफ़ करने वाला अपने एतिकाफ़ के दौरान किसी बीमार की ज़ियारत न करे, दावत स्वीकार न करे, न अपने परिवार की ज़रूरतें पूरी करे, न किसी जनाज़ा में हाज़िर हो और न ही मस्जिद से बाहर अपने काम के लिए जाए। क्योंकि आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से वर्णित है कि उन्होंने फरमाया : “एतिकाफ़ करने वाले के लिए सुन्नत यह है कि वह किसी बीमार की ज़ियारत न करे, किसी जनाज़ा में हाज़िर न हो, किसी महिला को न छुए और न उससे संभोग करे, तथा किसी ज़रूरत के लिए बाहर न निकले सिवाय इसके कि वह उसके लिए आवश्यक हो।” इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 2473) ने रिवायत किया है। उद्धरण समाप्त हुआ।
फतावा अल-लजनह अद-दाइमह (10/410)