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मैं यह जानना चाहता हूँ कि अज्र व सवाब में वृद्धि के लिए रमज़ान के प्रतिष्ठित महीने के दौरान कौन-सा कार्य करना मुस्तहब (वांछनीय) है .. जैसे कि अज़कार, इबादतें और मुस्तहब कार्य .. मैं उनमें से : तरावीह की नमाज़, क़ुरआन की अधिक से अधिक तिलावत, ज़्यादा से ज़्यादा इस्तिग़फ़ार और रात की नमाज़ के बारे में जानती हूँ .. लेकिन मैं कुछ ऐसी दुआओं के बारे में जानना चाहती हूँ जिन्हें मैं अपने दैनिक कार्यों के दौरान; खाना बनाते हुए या घर के काम-काज करते हुए, दोहराती रहूँ। क्योंकि मैं नहीं चाहती हूँ कि मेरा अज्र बर्बाद हो।
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
अल्लाह तआला आपको इस मुबारक महीने के दौरान अच्छे और नेक काम करने के लिए इस फिक्र और चिंता के लिए अच्छा बदला प्रदान करे।
आपने जिन अच्छे कामों का उल्लेख किया है, उनमें यह भी शामिल किया जा सकता है : सद्क़ा, खाना खिलाना, उम्रा के लिए जाना और एतिकाफ करना, जो ऐसा करने में सक्षम हैं।
जहाँ तक उन शब्दों (दुआओं) का संबंध है जिन्हें आप काम करने के दौरान दोहरा सकती हैं, उनमें : तस्बीह (सुबहानल्लाह कहना), तह्लील (ला इलाहा इल्लल्लाह कहना), तकबीर (अल्लाहु अक्बर कहना), इस्तिग़फ़ार करना, दुआ करना और मुअज़्ज़िन का जवाब देना, है। इसलिए आपकी ज़बान अल्लाह तआला की याद में व्यस्त रहनी चाहिए। तथा इन मामूली शब्दों (अज़कार) में जिन्हें आप बोलती हैं, महान अज्र व सवाब को गनीमत समझें। क्योंकि आपके लिए हर तस्बीह (ला इलाहा इल्लल्लाह कहना) सद्क़ा है, हर तहमीद (अल-हम्दुलिल्लाह कहना) सद्क़ा है, हर तकबीर (अल्लाहु अक्बर कहना) सद्क़ा है और हर तह्लील (ला इलाहा इल्लल्लाह कहना) सद्क़ा है।
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “प्रति दिन सुबह होते ही तुमहारे हर जोड़ पर एक सदक़ा (दान) अनिवार्य है। चुनाँचे हर तस्बीह (सुबहानल्लाह कहना) एक सदक़ा है, हर तहमीद (अल-हम्दुलिल्लाह कहना) एक सदक़ा है, हर तहलील (ला इलाहा इल्लल्लाह कहना) एक सदक़ा है, हर तकबीर (अल्लाहु अक्बर कहना) एक सदक़ा है। भलाई का आदेश देना एक सदक़ा है, बुराई से रोकना एक सदक़ा है। और इन सभी चीज़ों से दो रकअतें पर्याप्त हो जाती है, जिन्हें वह चाश्त के समय पढ़ लेता है।” इसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 720) ने रिवायत किया है।
तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “दो शब्द हैं जो जुबान पर (उच्चारण में) हल्के, (क़यामत के दिन) मीज़ान (तराज़ू) में भारी और महाकृपालु अल्लाह को सबसे प्रिय (पसंदीदा) हैं : “सुब्हानल्लाह व बि-हमदिही, सुब्हानल्लाहिल-अज़ीम” इसे बुख़ारी (हदीस संख्या : 6682) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 2694) ने रिवायत किया है।
तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरामाया : “जिसने “सुब्हानल्लाहिल-अज़ीम व बि-हमदिही” कहा, उसके लिए जन्नत में खजूर का एक पेड़ लगाया जाएगा।” इसे तिरमिज़ी (हदीस संख्या : 3465) ने रिवायत किया है और अल्बानी ने सहीह तिरमिज़ी में इसे सहीह के रूप में वर्गीकृत किया है।
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जिसने कहा : अस्तगफ़िरुल्लाहल-अज़ीम अल्लज़ी ला इलाहा इल्ला हुवा अल-हय्युल-क़य्यूम व अतूबो इलैहि (मैं उस महान अल्लाह से क्षमा याचना करता हूँ, जिसके अलावा कोई सच्चा पूज्य नहीं है, जो जीवित है और हर चीज़ का संभालने वाला है, और मैं उसी की ओर लोटता हूँ) तो उसे क्षमा कर दिया जाएगा, अगरचे वह युद्ध के मैदान से भाग कर आया हो।” इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 1517) और तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 3577) ने रिवायत किया है और अलबानी ने सही अबू दाऊद में इसे सहीह के रूप में वर्गीकृत किया है।
तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “धरती पर कोई भी मुसलमान ऐसा नहीं है जो किसी चीज़ के लिए अल्लाह तआला से दुआ करता है, मगर अल्लाह तआला उसे वह चीज़ प्रदान कर देता है, या उसी के समान उससे कोई बुराई दूर कर देता है, जबतक कि वह गुनाह, या रिश्ते-नाते काटने की दुआ न करे। यह सुनकर लोगों में से एक व्यक्ति ने कहा : “फिर तो हम और अधिक दुआएँ करेंगे।" आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "अल्लाह उससे भी अधिक देने वाला है।” इसे तिरमिज़ी (हदीस संख्या : 3573) ने रिवायत किया है और अल्बानी ने सहीह तिर्मिज़ा में इसे सहीह के रूप में वर्गीकृत किया है।
तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जब तुम मुअज़्ज़िन को अज़ान देते हुए सुनो, तो उसी तरह कहो जित तरह वह कहता है। फिर मेरे ऊपर दुरूद भेजो, क्योंकि जिसने मेरे ऊपर एक बार दुरूद भेजी अल्लाह उसके बदले उस पर दस रहमतें भेजेगा। फिर मेरे लिए अल्लाह से वसीला माँगो। क्योंकि यह स्वर्ग में एक स्थान है जो अल्लाह के किसी बंदे के लिए ही उचित है और मुझे आशा है कि वह मैं ही हूँ। अतः जिसने मेरे लिए वसीला माँगा उसके लिए मेरी शफाअत अनिवार्य हो गई।” इसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 384) ने रिवायत किया है।
तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "जिस आदमी ने अज़ान सुनने के बाद यह दुआ पढ़ी :
اللَّهُمَّ رَبَّ هَذِهِ الدَّعْوَةِ التَّامَّةِ وَالصَّلاةِ الْقَائِمَةِ آتِ مُحَمَّدًا الْوَسِيلَةَ وَالْفَضِيلَةَ وَابْعَثْهُ مَقَامًا مَحْمُودًا الَّذِي وَعَدْتَهُ
"अल्लाहुम्मा रब्बा हाज़ेहिद्दा'वतित्ताम्मह वस्सलातिल क़ाईमह आति मुहम्मद-निल वसीलता वल फज़ीलता वब्-अस्हु मक़ामन मह्मूदा अल्लज़ी व-अद्तह"
तो उसके लिए क़ियामत के दिन मेरी शफाअत (सिफारिश) अनिवार्य हो गई।" इसे बुख़ारी (हदीस संख्या : 614) ने रिवायत किया है।
अल्लाह तआला हमें और आपको लाभकारी ज्ञान और नेक कामों की तौफीक़ प्रदान करे।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।