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क्या क़ब्र का अज़ाब निरंतर जारी रहता है ॽ

19-12-2012

प्रश्न 7862

मेरा एक भाई था जिसका निधन हो गया, और वह कर्तव्यों में कोताही करने वाला था, वह अवज्ञा और बड़े पाप किया करता था, लेकिन मैं उस से बहुत प्यार करती थी, मैं ने क़ब्र की यातना के बारे में बहुत भयानक, भयावह और डरावनी चीज़ें पढ़ी हैं, तो क्या उसके ऊपर क़ब्र में यातना और अज़ाब निरंतर जारी रहेगा ॽ और क्या मैं अगर नेकियाँ करूँ और उनके सवाब उसे भेंट कर दूँ (बख्श दूँ ) जैसे - सदक़ा व खैरात या हज्ज, तो क्या उसके अज़ाब में कमी कर दी जायेगी ॽ कृपया, मुझे इस से अवगत करायें क्योंकि मैं उसके ऊपर बहुत दुःखी हूँ।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

जहाँ तक आपके भाई के अंजाम और ठिकाने का संबंध है तो उसका मामला अल्लाह के हवाले है, यदि वह चाहे तो उसे दंडित करे और चाहे तो उसे क्षमा कर दे। उसके के बारे में कोई निश्चित बात कहना संभव नहीं है, किंतु हम बिना किसी एतिबार के मात्र इस मुद्दे के बारे में बात करेंगे :

जहाँ तक इस मुद्दे का संबंध है कि क्या क़ब्र का अज़ाब स्थायी और निरंतर है या उसमें कटौती (कमी) या अवकाश होता रहता है ॽ

तो इब्ने तैमिय्या ने इस मुद्दे के बारे में फरमाया है :

उसका उत्तर यह है कि उसके दो प्रकार हैं :

एक प्रकार स्थायी है सिवाय इसके जो कुछ हदीसों में वर्णित है कि (नरसंघा में) दोनों फूँकों के बीच उनकी यातना में कमी कर दी जायेगी, जब वे अपनी क़ब्रों से उठ खड़े होंगे तो कहें गे:

يا ويلنا من بعثنا من مرقدنا [سورة يس : 52]

“हाय अफसोस, हमें हमारी आरामगाहों से किस ने उठा दिया।” (सूरत यासीनः 52)

तथा उसके स्थायी होने पर अल्लाह तआला का यह फरमान तर्क स्थापित करता है :

النار يعرضون عليها غدوا وعشيا [سورة غافر : 46]

“वे लोग आग के सामने सुबह व शाम पेश किए जाते हैं।” (सूरतुल मोमिनः 46).

तथा इस पर समुरह रज़ियल्लाहु अन्हु की पिछली हदीस भी तर्क स्थापित करती है जिसे बुखारी ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सपने के बारे में रिवायत किया है जिसमें यह वर्णित है कि “तो उसके साथ क़ियामत के दिन तक ऐसा ही किया जायेगा।”

तथा इब्ने अब्बास की हदीस में दोनों टेहनियों (डालियों) की कहानी में है कि शायद उन दोनों की यातना में कमी कर दी जाए जबतक कि वे दोनों सूखती नहीं हैं, तो यातना की कमी (राहत) को केवल उन दोनों के तर रहने पर लंबित किया गया है।

तथा रबी बिन अनस की हदीस में अबू आलिया के माध्यम से अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि : “फिर वह ऐसे लोगों के पास आए जिनके सिर को बड़े पत्थर (चट्टान) से कुचला जा रहा था, जब भी उसे कुचला जाता वह फिर उसी तरह लौट कर हो जाता, उनसे इस चीज़ में कमी नहीं जायेगी।” यह हदीस पहले गुज़र चुकी है।

तथा सहीह में उस आदमी की कहानी में जो दो चादरें पहन कर घमंड करते हुए चल रहा था, वर्णित है कि अल्लाह तआला ने उसे ज़मीन में धंसा दिया, तो वह क़ियामत के दिन तक उसमें धंसता (घुसता) रहेगा।

तथा बरा बिन आज़िब की हदीस में काफिर के बारे में है कि : “फिर उसके लिए जहन्नम की ओर एक खिड़की खोल दी जाती है, तो वह उसमें अपनी जगह को देखता रहता है यहाँ तक कि क़ियामत क़ायम हो जायेगी।” इसे इमाम अहमद ने रिवायत किया है, और उसके कुछ तरीक़ों में है कि : “फिर उसके लिए जहन्नम की ओर एक सूराख कर दिया जाता है, तो उसके पास क़ियामत के दिन तक उसकी पीड़ा और उसका धुँआं आता रहता है।

दूसरा प्रकार : एक अवधि तक रहने के बाद समाप्त हो जायेगा।

और वह कुछ अवज्ञाकारियों का अज़ाब है जिनके अपराध हल्के या छोटे हैं, तो उसे उसके अपराध के हिसाब से सज़ा दी जायेगी, फिर उसमें कमी कर दी जायेगी जैसेकि उसे एक अवधि के लिए जहन्नम में दंडित किया जायेगा फिर उसका अज़ाब समाप्त हो जायेगा।

तथा कभी कभार दुआ, या सदक़ा व खैरात, या इस्तिग़फार, या हज्ज के सवाब के द्वारा उसे अज़ाब से राहत मिल जाती है जो उसे उसके किसी रिश्तेदार या उनके अलावा की ओर से पहुँचती है . . .” किताब “अर्रूह” (पृष्ठ : 89).

उनकी अंतिम बात में प्रश्न के दूसरे अंश का उत्तर मौजूद है, हम अल्लाह से प्रार्थना करते हैंकि वह हमें अपनी रहमत से ढांप ले, तथा हमारे ईश्दूत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर अल्लाह की अपार दया और शांति अवतरित हो।

कब्र की सजा और उसकी नेमतें (परमानंद)
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