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वुज़ू के दौरान नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की प्रतिष्ठा के माध्यम से दुआ मांगना

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प्रकाशन की तिथि : 25-02-2015

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प्रश्न

करता हूँ कि वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के गौरव व प्रतिष्ठा से मेरे पाँव को (पुल) सिरात पर जमा दे। इसी तरह नमाज़ में उदाहरण के तौर पर मैं दुआ करता हूँ : रब्बिग-फिर ली वर्-हमनी व सामेहनी बि-जाहि नबिय्यिका अलैहिस्सलातो वस्सलाम’’ (मेरे पालनहार, अपने नबी की प्रतिष्ठा से मुझे क्षमा कर दे, मुझ पर दया कर और मुझे माफ़ कर दे)। तो क्या इस तरह की दुआ करना जायज़ है या नहीं? ज्ञात रहे कि इस तरीक़े से दुआ करने की मेरी आदत बन गई है, क्योंकि मैं यह आस्था रखता हूँ कि अल्लाह सर्व शक्तिमान अपने प्यारे पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के वसीला से मांगने वाले की दुआ को अस्वीकार नहीं करेगा।
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
अल्लाह तआला से यह दुआ करना कि वह अपने बंदे के पैर को सिरात पर स्थिर रखे, एक अच्छी दुआ है, उसमें कोई आपत्ति की बात नहीं है। हम अल्लाह तआला से दुआ करते हैं कि वह हम सभी के पाँवों को स्थिर कर दे।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

लेकिन इस दुआ में दो रूप से त्रुटि आ गई है :

प्रथम :

आपका वुज़ू के अंदर पैरों को धोते समय इस दुआ का आदी होना :

मेरे प्रश्न कर्ता भाई, आपको पता है कि वुज़ू एक इबादत है, और मुसलमान को इस बात की अनुमति नहीं है कि वह इबादत के तरीक़े को बदल दे, या उसमें वृद्धि करे या उसमें कमी करे। बल्कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का पूर्ण अनुसरण और अनुपालन यह है कि हम बिना किसी वृद्धि और कमी के उसी तरह करें जिस तरह आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने किया है ।

इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह ‘‘मजमूउल फतावा’’ (22/510) में फरमाते हैं :

‘‘किसी के लिए यह अनुमति नहीं है कि वह लोगों के लिए गैर-मसनून (अनियमित) दुआएं और अज़कार मसनून (धर्म संगत) क़रार दे, और उन्हें स्थायी उपासना कृत्य बना दे जिसकी लोग पाबंदी करें, जिस तरह कि वे पाँच समय की नमाज़ों की पाबंदी करते हैं। बल्कि यह एक ऐसा धर्म गढ़ना है जिसकी अल्लाह ने अनुमति नहीं दी है।’’ अंत।

तथा वुज़ू के अंगों को धोते समय दुआ करना नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का तरीक़ा नहीं था। इस बारे में एक हदीस भी वर्णित है, परंतु वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सहीह साबित नहीं है।

हाफिज़ इब्नुस्सलाह कहते हैं :

‘‘इसके बारे में कोई हदीस सहीह नही है।’’ अंत। इसी तरह इसे हाफिज़ इब्ने हजर ने ‘‘अत-तल्खीसुल हबीर’’ (1/297) में उल्लेख किया है।

तथा इब्नुल क़ैयिम ने ‘‘अल-मनारूल मुनीफ’’ (पृष्ठ: 45) में फरमाया :

''जहाँ तक हर अंग पर ज़िक्र करने के बारे में गढ़ी हुई हदीस का संबंध है, तो वह बातिल (झूठ और असत्य) है।'' अंत हुआ।

इमाम नववी ने वुज़ू में अंगों के धोने की दुआ के बारे में फरमाया : ‘‘अंगों को धोने की दुआ का कोई आधार नहीं है।’’

‘‘अल-फुतूहातुर रब्बानिय्या’’ (2/27-29)

तथा ‘‘फतावा शैख मुहम्मद बिन इबराहीम’’ (2/49) में वर्णित है :

''कुछ लोग यह समझते हैं कि हर अंग का एक विशिष्ट ज़िक्र है, और इस बारे में कुछ हदीसें रिवायत की जाती हैं, लेकिन वे कदापि सहीह नहीं हैं, बल्कि वे झूठ हैं।’’ अंत हुआ।

तथा ‘‘दुरूस लिश्शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन बाज़’’ (दर्स संख्या/3, केसिट/ 2) में आया है :

‘‘इन सब का कोई आधार नहीं है, और इस बारे में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कुछ भी सुरक्षित नहीं है, इसलिए इन अंगों को धोते समय इन दुआओं को पढ़ना ऐच्छिक नहीं है, बल्कि एच्छिक केवल दो चीज़ें हैं : सर्व प्रथम : शुरू में बिस्मिल्लाह पढ़ना। दूसरा: फारिग होने के बाद शहादत पढ़ना। वुज़ू के अंदर यही इतनी दुआ धर्म संगत है।’’ अंत हुआ।

तथा यह नहीं कहा जायेगा कि : आमाल की फज़ीलतों में ज़ईफ हदीस पर अमल किया जा सकता है।

क्योंकि इस नियम पर सब की सर्व सहमति नहीं है, कुछ लोग इसमें विवाद करते है। फिर यह बात भी है कि ज़ईफ हदीस पर अमल करने की शर्त यह है कि वह सख्त ज़ईफ न हो। जबकि यह शर्त यहाँ पर नहीं पाई जाती है। जैसाकि इब्ने अल्लान ने ''अल-फुतूहातुर्रब्बानिय्या'' (2/29) में इसकी तह्क़ीक़ (अनुसंधान) की है।

तथा सुयूती रहिमहुल्लाह ने इस मुद्दे के बारे में एक पत्रकिा लिखा है जिसका नाम ''अल-इगज़ाओ अन दुआइल आज़ा'' रखा है जिसमें इस बारे में वर्णित हदीस के सख्त ज़ईफ होने, और उस पर अमल करने के योग्य न होने का उल्लेख किया है, चाहे आमाल के फजायल में ही क्यों न हो।

तथा प्रश्न संख्या (45730) का उत्तर देखें।

दूसरी त्रुटि : आपका दुआ के अंदर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के गौरव व प्रतिष्ठा के माध्यम से दुआ करना है।

इसमें कोई संदेह नही कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का पद बहुत महान है, लेकिन अल्लाह तआला ने उसके द्वारा अपनी ओर वसीला लेना दुआ के क़बूल होने के कारणों में से नहीं बनाया है।

तथा पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इसके द्वारा अल्लाह की ओर वसीला लेने का हमें मार्ग दर्शन नही किया है, - जबकि आप ने कोई भलाई नहीं छोड़ी मगर उससे हमे अवगत करा दिया - ।

इससे पता चला कि यह दुआ धर्म संगत और वैध नहीं है।

इसका वर्णन प्रश्न संख्या (23265) के उत्तर में बीत चुका है।

इसलिए मेरे भाई, आप नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत की पैरव करने के इच्छुक बनें, और उसमें किसी प्रकार की वृद्धि या कमी न करें और धर्म में नई पैदा कर ली गई चीज़ों से दूर रहें। जैसाकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमें इसकी वसीयत की है, आप ने फरमाया :

''अतः तुम मेरी सुन्नत और मेरे बाद हिदायत के मार्ग पर चलने वाले ख़ुलफा-ए-राशिदीन की सुन्नत को लाज़िम पकड़ो, उसे दृढ़ता से थाम लो और उसे दाँतों से जकड़ लो। और धर्म में नयी ईजाद कर ली गयी चीज़ों (नवाचार) से बचो, क्योंकि धर्म में हर नई ईजाद कर ली गई चीज़ बिद्अत है, और हर बिद्अत गुमराही (पथ भ्रष्टता ) है।''

इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 4607) ने रिवायत किया है अरै अल्बानी ने सहीह अबू दाऊद में इसे सही कहा है।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर