गुरुवार 20 जुमादा-1 1446 - 21 नवंबर 2024
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यदि ज़मीन का भाव गिर जाए तो क्या उसमें ज़कात देय है ॽ

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प्रकाशन की तिथि : 09-01-2013

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प्रश्न

मैं ने एक ज़मीन खरीदी थी, मेरा इरादा यह था कि जब उसका भाव चढ़ जायेगा तो उसे बेच दूँगा, परंतु ज़मीन मंदी होगई और उसका भाव गिर गया। यह ज़मीन मेरे पास दस वर्ष तक बाक़ी रही, और उसका भाव नहीं बढ़ा, तो क्या मेरे ऊपर उसमें ज़कात अनिवार्य है ॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

वह ज़मीन जिसे उसके मालिक ने इस उद्देश्य से खरीदा है कि एक समय के बाद जब उसका भाव बढ़ जायेगा तो उसे बेच देगा, तो इसमें ज़कात अनिवार्य है क्योंकि वह व्यापारिक सामान में से है, और व्यापारिक सामान का साल बीतने पर उस क़ीमत से मूल्यांकन किया जायेगा जिसके वह बराबर है,उस क़ीमत की परवाह किए बिना जितने में वह खरीदा गया है, और उसकी ज़कात निकाली जायेगी। उसमें अनिवार्य ज़कात की मात्रा दसवें हिस्से का एक चौथाई भाग (यानी 2.5 प्रतिशत) है।

तथा प्रश्न संख्या (38886) का उत्तर देखें।

तथा शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया : मेरे पास ज़मीन का एक टुकड़ा है और मैं उसे बेचने के लिए ज़मीन की क़ीमतों के बढ़ने की प्रतीक्ष कर रहा था और वह कई साल पड़ी रही,तो क्या मैं उसकी ज़कात निकालूँ ॽ

तो उन्हों ने उत्तर दिया : “जिस आदमी ने लाभ के लिए ज़मीन खरीदी, फिर ज़मीन का भाव गिर गया और वह मंदी होगई, और भाव चढ़ने तक उसे बाक़ी रखा, तो वह हर साल उसकी ज़कात निकालेगा ; क्योंकि वह व्यापारिक सामान में से है, और यदि उसके पास उसकी ज़कात निकालने के लिए पैसा नहीं है और कोई खरीदार नहीं पाता है,तो वह ज़कात अनिवार्य होने के समय उसकी क़ीमत को आंक ले और उसकी ज़कात नोट करके रख ले, दूसरे साल भी उसकी क़ीमत की ज़कात का आंकन करे, फिर तीसरे साल भी इसी तरह करे, और जब भी उसे बेचे तो सभी ज़कात को जिसका उसने मूल्यांकन किया था, निकाल दे।” अंत हुआ।

“मजमूउल फतावा” (18/225).

तथा उनसे यह भी प्रश्न किया गया कि : एक आदमी ने व्यापार के उद्देश्य से एक ज़मीन खरीदी,लेकिन उसके क़ब्ज़े में एक लंबी अवधि तक बाक़ी रही, तो क्या उस पर ज़कात अनिवार्य है ॽ

तो उन्हों ने उत्तर दिया : “यदि किसी आदमी ने व्यापार के लिए कोई ज़मीन खरीदी है तो उसके ऊपर हर साल ज़कात अनिवार्य है, चाहे उसकी क़ीमत बढ़ जाए या कम हो जाए,और चाहे उसका बाज़ार गरम हो जाय या उसमें मंदी आ जाए, हर वर्ष वह उसकी वह क़ीमत लगाए जिसके बराबर वह पहुँच रही है, फिर यदि उसके पास माल (पैसा) है तो उस माल से जो उसके पास है उसकी ज़कात निकालेगा, और यदि उसके पास माल नहीं है,तो हर साल उसके साल की ज़कात लिख कर रख ले, और जब उसे बेचे तो पिछले (सभी) सालों की ज़कात निकाले।”

“लिक़ा अल-बाब अल-मफ्तूह” (15/15) से समाप्त हुआ।

और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर