हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
“ यह बात सभी नमाज़ों में, चाहे तरावीह की नमाज़ हो या फर्ज़ नमाज़ें, एक वांछित तत्व है, इसका प्रमाण नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह हफरमान है : “ तुम में से जो भी लोगों की इमामत कराए तो उसे चाहिए कि हल्की नमाज़ पढ़ाए क्योंकि उनमें कमज़ोर, छोटे (बच्चे) और ज़रूरतमंद लोग होते हैं।” अतः इमाम मुक़्तदियों का ध्यान रखेगा, और रमज़ान के क़ियाम (तरावीह की नमाज़) और अंतिम दस रातों में अतः इमाम को चाहिए कि उनकी स्थितियों को ध्यान में रखे, और उन्हें मस्जिद में आने पर और उपस्थित होने पर प्रोत्साहित करे। क्योंकि जब वह उन पर नमाज़ को लंबी करेगा तो उन्हें कष्ट में डाल देगा और उन्हें उपस्थित हाने से घृणित कर देगा। इसलिए उसके लिए उचित यह है कि उस चीज़ को ध्यान में रखे जो उन्हें नमाज़ में उपस्थित होने पर प्रोत्साहित करे और उनके अंदर नमाज़ की इच्छा और रूचि पैदा करे, चाहे नमाज़ को हल्की करके और उसे लंबी न करके ही क्यों न हो। क्योंकि ऐसी नमाज़ जिसमें लोग विनम्रता अपनाते हैं और इतमिनान (शांति) का अनुभव करते हैं चाहे वह थोड़ी ही सही, ऐसी नमाज़ से बेहतर है जिसमें विनम्रता नहीं होती है और उसमें आलस्य, ऊब और सुस्ती व काहिली पैदा होती है।” (समाप्त हुआ)